नाम भले ही सोशल एंड एजुकेशनल सर्वे हो, लेकिन ये है जाति की गणना ही. जिसकी शुरुआत 2014 में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने करवाई थी. 2018 में मेंबर सेक्रेटरी हस्ताक्षर न होने की वजह से इसे तकनीकी तौर पर वैध नहीं पाया गया. इसके बाद पांच साल बीत गए लेकिन किसी ने इसे सार्वजनिक करने की कोशिश नहीं की. अब ओबीसी आयोग के अध्यक्ष जयप्रकाश हेगडे़ का कहना है कि वो रिपोर्ट को अंतिम रूप दे रहे हैं.