लोगों को तय करना है कि आईटी सेल के तर्कों के हिसाब से सोचना है या अपने हिसाब से सोचना है. अभी कहा जा रहा है कि जामिया के छात्रों को बहकाया गया है, छात्रों का काम पढ़ना है, प्रदर्शन करना नहीं है. क्या आप वाकई यह मानते हैं कि छात्र सिर्फ बहकावे और उकसावे पर प्रदर्शन कर रहे हैं? पढ़ाई को लेकर जब दिल्ली यूनिवर्सिटी के एडहॉक शिक्षक प्रदर्शन करते हैं तब तो कोई नहीं बोलता. देश भर के करोड़ों नौजवान सरकारी नौकरी की परीक्षा और यूनिवर्सिटी की परीक्षा को लेकर भी आंदोलन करते हैं, लाठियां खाते हैं. कोई ध्यान नहीं देता है. जामिया मिल्लिया में रविवार की पुलिस की बर्बरता के पहले शुक्रवार को भी लाठी चार्ज हुआ. कैंपस में घुसकर आंसू गैस के गोले छोड़े गए. रविवार को अगर बाहरी लोग भड़का रहे थे तो फिर कैंपस के भीतर आंसू गैस के गोले दागते हुए पुलिस को यह ख्याल नहीं आया कि छात्रों को नुकसान हो सकता है. अगर जामिया के छात्रों ने रविवार को सभी से मदद नहीं मांगी होती तो किसी को पता भी नहीं चलता कि उन पर ऐसी बर्बरता हो रही है.