नवनीता देवसेन की लिखी ये कविता 'आदि अंत' जिसकी यात्रा नीले आसमान से काली मिट्टी तक अंततः उस एक सच पर थमती है कि 'तुम' हो न। इस कविता का हिन्दी भाषा में अनुवाद किया है उत्पल बैनर्जी ने।