यह देश के 'मेक इन इंडिया' का अभिन्न अंग हैं, जो कई औद्योगिक ईकाइयों में फैले हुए हैं, लेकिन फिर भी इनकी गिनती नहीं है। करीब साढ़े तीन करोड़ घरेलू कामगार, जिसमें बड़ी तादाद में महिलाएं शामिल हैं, अभी तक नजरअंदाज की जा रही हैं। नतीजन इनके कौशल और उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए किसी भी तरह की नीति तैयार नहीं की गई है। देखते हैं सुतपा देब की रिपोर्ट