बैंक सीरीज़ का यह 9वां अक है. यह सीरीज सैलरी से शुरू हुई थी लेकिन जब धीरे धीरे महिला बैंकर खुलने लगीं और अपनी बात बताने लगीं तो हर दिन उनकी कोई दास्तां मुझे गुस्से और हैरानी से भर देता है कि आज के समय में क्या इतनी महिलाओं को जो प्रतिभाशाली है उन्हें कोई गुलाम बना सकता है. सैंकड़ों की संख्या में महिला बैंकरों ने अपना जो हाल बनाया है वो किसी भी प्रोफेसर किसी भी फेमिनिस्ट के लिए एक ऐसा दस्तावेज़ है जिस तक पहुंचने में उन्हें वर्षों लग जाएंगे.