यह बैंक सीरीज़ का बारहवां अंक हैं. हमारी सीरीज़ के बाद भी सरकारी बैंकों के अफसरों को देर रात तक बैंकों में रोका जा रहा है, उनसे सरकारी और प्राइवेट बीमा कंपनियों की पालिसी बेचने का टारगेट पूरा करवाया जा रहा है. अब धीरे-धीरे बैंकरों की आवाज़ निकलनी शुरू हुई है. वे अपनी सैलरी से भी आहत हैं. न सिर्फ सैलरी के रिवाइज़ होने की प्रक्रिया शुरू होने में देरी से परेशान हैं बल्कि वे केंद्रीय कर्मचारियों के बराबर सैलरी की मांग कर रहे हैं.