सैलरी तो कम है ही, बैंकरों के तनाव का कारण है कि कम स्टाफ में तरह तरह के लक्ष्यों का थोप दिया जाना. कई जगह तो इंटरनेट की स्पीड इतनी कम है कि उससे भी वे काम नहीं कर पाते हैं. कुछ बैंकों की हमने टूटी हुई कुर्सियों की तस्वीरें देखीं. किसी को इस बात का सर्वे करना चाहिए कि बैंकों में काम करने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों के स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ रहा है. अगर ये सब सवाल महत्वपूर्ण नहीं होते तो एसोचेम जैसी उद्योगों की संस्था इस तरह का सर्वे क्यों करती कि कारपोरेट कंपनी में कितने मरीज़ कितने बीमार हैं.