लगातार मजदूरों की समस्याएं दिखाए जाने के बाद भी सरकारों पर बस इतना ही असर पड़ा है कि वह प्रेस कांफ्रेंस में उन चीजों पर बात करने लगी हैं जिन पर बात किए जाने की जरूरत है. जमीन पर अभी भी हमारा मजदूर उसी तरह विस्थापित है. उसके सम्मान और आत्मभिमान को कुचला जा रहा है. मजदूरों की जो तस्वीरें आ रही हैं लग नहीं रहा है कि 50-55 दिन बीत जाने के बाद भी, हो सकता है कि सरकार की नीतियों में कुछ कमियां रह जाएं लेकिन वो करुणा का प्रदर्शन नजर नहीं आ रहा है. क्या आपको लगता है कि हमारी व्यवस्थाओं ने इन 50-55 दिनों में इस तरह से देखा है, सीखा है? हम समझते हैं कि अब व्यवस्थाओं के भीतर क्षमता नहीं बची है. हो सकता है कि वो थक गई हों.