Blogs | Sudhir Jain |शुक्रवार मार्च 4, 2016 12:52 PM IST अकादमिक रुझान के लेखकों-पत्रकारों से हमेशा उम्मीद रहती है, लेकिन इन सबको हम मुश्किल में पड़ता देख रहे हैं। उनकी विश्वसनीयता पर हमला, भौतिक धक्का-मुक्की का डर, देशद्रोह के भावनात्मक आरोपों का बढ़ता प्रजनन फिर भी उतने बड़े संकट नहीं है, जितना विद्वानों को फुसलाया जाना दिख रहा है।