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This Article is From Jul 09, 2018

'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' के डॉक्टर हाथी बने कवि कुमार आजाद की पूरी कहानी, असित मोदी की जुबानी

'तारक मेहता का उल्टा चश्मा (Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah)' के डॉक्टर हंसराज हाथी का दिल का दौरान पड़ने से निधन हो गया है, शो के निर्माता असित कुमार मोदी से कवि कुमार आजाद के बारे में खास बातचीत.

'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' के डॉक्टर हाथी बने कवि कुमार आजाद की पूरी कहानी, असित मोदी की जुबानी
Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah: 'तारक मेहता क उल्टा चश्मा' में डॉ. हंसराज हाथी बनते थे कवि कुमार आजाद
नई दिल्ली: 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा (Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah)' के डॉक्टर हंसराज हाथी का दिल का दौरान पड़ने से निधन हो गया है, और पूरी एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री और 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' के फैन्स के बीच शोक की लहर है. बिहार के रहने वाला डॉ. हंसराज हाथी उर्फ कवि कुमार आजाद (Kavi Kumar Azad) असल जिंदगी में भी बेहद मस्तमौला इंसान थे, और वे पूरी जिंदादिली के साथ जिंदगी जीते थे. 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' के निर्माता असित कुमार मोदी से ज्यादा कवि कुमार आजाद के बारे में शायद ही कोई और शख्स जानता हो. कवि कुमार आजाद की इस दुखद विदाई पर असित कुमार मोदी ने उनसे जुड़ी कई बातें शेयर की.



जब डॉ. हंसराज हाथ उर्फ कवि कुमार आजाद के निधन के बारे में 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' के असित कुमार मोदी से बात की तो उन्होंने बताया, "कवि कुमार आजाद कमाल के एक्टर थे और बहुत ही सकारात्मक इंसान थे. उन्हें शो से बहुत ज्यादा प्यार था और अगर वे बीमार भी होते तो भी शूटिंग पर आते. आज सुबह उनका कॉल आया कि उनकी तबियत ठीक नहीं है और वे शूट पर नहीं आ सकेंगे. थोड़ा देर बाद ये बुरी खबर आ गई. हम लोग सकते में हैं."

असित कुमार मोदी से जब पूछा गया कि उन्होंने डॉ. हाथी के कैरेक्टर के लिए उन्हें कैसे चुना तो उन्होंने बताया, "पहले डॉ. हाथी का किरदार कोई और कर रहे थे. लेकिन उनके साथ डेट्स की प्रॉब्लम थी. फिर मैंने 'जोधा अकबर' में कवि कुमार आजाद को देखा. चालू पांडेय ने मुझे कवि से मिलवाया. इस तरह हमने उन्हें इस रोल के लिए कास्ट कर लिया."

असित मोदी याद करते हुए बताते हैं, "कवि कुमार आजाद हमेशा खुश रहते थे. वे नो कम्प्लेंट शख्स थे. वे खुद डॉक्टर का रोल कर रहे थे वे खुद बीमार थे. उन्हें सेहत से जुड़ी ढेर सारी शिकायतें थीं लेकिन फिर भी मस्त रहते थे. जब भी मुझसे मिलते तो कहते, असित भाई की जय हो."


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