Madhya Pradesh: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh)स्कूल शिक्षा विभाग ने 9वीं और 10वीं की कक्षाएं 5 अगस्त से सप्ताह में दो बार खोलने की घोषणा की है. राज्य में 26 जुलाई से 11वीं और 12वीं की क्लास पहले ही प्रारंभ की जा चुकी हैं. हालांकि सीबीएसई और मिशनरी निजी स्कूलों ने कहा है कि सीमित तरीके से स्कूल खोलना आर्थिक रूप से संभव नहीं है, इसलिये वो स्कूल नहीं खोलेंगे. सरकार ने ये भी साफ किया है कि ऑनलाइन कक्षाएं जारी रहेंगी लेकिन इस सबके बीच ये पता लगा है कि जिन बच्चों को ऑनलाइन साधन सुलभ नहीं है वो लगभग निरक्षरता के दौर में जा रहे हैं. कई अध्ययन बताते हैं वंचित समूहों में ये आंकड़ा और ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है. हाल ही में MP के सीएम ने एक कार्यक्रम में बच्चों के साथ पढ़ाई के बारे में बारे में सवाल पूछे थे. सीएम ने एक लड़की आस्था से पूछा था कि कोरोना काल में स्कूल तो खुले फिर फिर आपने पढ़ाई कैसे की? इसके जवाब में आस्था ने कहा था कि ऑनलाइन क्लासेज के थ्रू और सेल्फ स्टडी ऑनलाइन क्लासेज के थ्रू जितना नॉलेज हमको चाहिए, वह मिल जाता था. ऑनलाइन क्लासेज में टीचर हमें अच्छे से एक्सप्लेन करते थे और जो भी 'क्वेरीज' होती थी वह भी बताते थे. मुख्यमंत्री जी के कार्यक्रम में तो ऑनलाइन की खूब तारीफ हुई] लेकिन इस ऑनलाइन दुनिया से एक दुनिया उन बच्चों की है जो ऑफलाइन हो रहे हैं. हालत यहां तक है कि ये बच्चे 'अक्षर' तक भूल रहे हैं
भोपाल से 630 किलोमीटर दूर, आदिवासी बहुल बालाघाट में ढीमर टोला में ज्यादातर मज़दूर रहते हैं. वहां पहुंचने पर पाया कि कुछ खेलने में जुटे हैं, कुछ किताबें पकड़े हैं. ये बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई से वंचित हैं. 10 साल का अतुल चौथी में हैं. बहन प्रियंका तीसरी में. इनके घर में मोबाइल नहीं है.एबीसीडी तक पढ़ना मुश्किल है. धार जिले के मनावर में 13 साल के तुषार सातवीं में हैं. कोरोना महामारी के कारण डेढ़ साल से स्कूल नहीं गए. ऑनलाइन पढ़ाई भी नहीं कर पाते क्योंकि एंड्रॉयड फोन नहीं है. परिवार की माली हालत 'तंग' है. पढ़ाई छूटने को है, वे पिता के साथ राखी बनाते हैं. तुषार ने बताया, 'हमारे पापा गरीब हैं. हम राखी बनाते हैं, मोबाइल ले भी लें तो रिचार्ज के पैसे नहीं हैं.' पिता दिनेश वानखेड़े बताते हैं कि दो साल से बेटा पढ़ नहीं पाया है. हमारे पास पैसे नहीं हैं, कैसे करेंगे.'
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मध्य प्रदेश के ही कटनी के छोटी खिरहनी में रहने वाली आदिवासी बस्ती में बच्चे स्कूल नहीं खुलने के कारण कंचे खेलकर ही वक्त बिताते हैं. यहां के ज्यादातर परिवार मजदूरी करके गुजर बसर करते हैं. बच्चों को पढ़ाने के लिए इनके पास भी स्मार्टफोन नहीं नहीं है. संतोषी बाई बताती हैं, 'एक बच्चा चौथी क्लास में है तो एक तीसरी में है. 'टच वाले' मोबाइल नहीं है, ऐसे में क्या करें, खेलते रहते हैं. एक अन्य महिला चमेली बाई ने बताया कि तीन बच्चे हैं. एक का नाम लिखवाया है. ऑनलाइन पढ़ाई होती होगी लेकिन हमारे पास मोबाइल नहीं है.श्योपुर जिले में सलापुरा इलाके में रहने वाले सहारिया आदिवासियों की भी यही हालत है. बस्ती में रहने वाले कई बच्चों को पास मोबाइल नहीं है. 8वीं के छात्र गिरिराज कहते हैं, 'दो साल से पढ़ाई बंद हो गया. बंद मोबाइल भी नहीं है.' पिता मेगरा ने बताया कि ऑनलाइन पढ़ाई कहां से हो. मोबाइल ही नहीं है, कुछ पता भी नहीं है. नौवीं में पढ़ने वाले गणपत ने भी कहा, 'दो साल से स्कूल बंद है, पढ़ाई नहीं हो पा रही है हमारे पास इतना पैसा नहीं है कि बड़ा मोबाइल ले लें.'
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संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) का कहना है कि कोरोना संकट के कारण दुनिया के करीब 15.60 करोड़ बच्चे अब भी स्कूल नहीं जा पा रहे, इसमें से करीब 2.5 करोड़ बच्चे कभी स्कूल नहीं लौट पाएंगे. यूनिसेफ की रिमोट लर्निंग रिचेबिलिटी रिपोर्ट बताती है कि कोरोना महामारी की वजह से देश में करीब 15 लाख से ज्यादा स्कूल बंद रहे जिससे करीब 28.6 करोड़ बच्चों की शिक्षा प्रभावित हुई. स्कूल और ऑनलाइन शिक्षा से वंचित बच्चों में शिक्षा का स्तर भी गिरता जा रहा है, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की फील्ड स्टडी के मुताबिक बालाघाट के अतुल और प्रियंका जैसे कई बच्चे हैं. 5 राज्यों में 44 जिलों के 1,137 सरकारी स्कूलों के दूसरी और छठी तक पढ़ने वाले 16,067 छात्रों के सर्वे में पता चला कि कोरोना में स्कूल बंद होने से 82% बच्चे पिछली कक्षा में सीखा गणित भूल चुके हैं. औसतन 92% बच्चे किसी एक भाषा के कौशल में कमज़ोर हुए हैं. यही नहीं, 42% छात्रों की पढ़ने की क्षमता प्रभावित हुई है जबकि 40% छात्रों की लिखने की क्षमता प्रभावित हुई हैण् अजीम प्रेमजी फाउंडेशन ने ही ऑनलाइन पढ़ाई के मिथक पर जो सर्वे किया उसके अनुसार, 90% शिक्षकों ने माना कि ऑनलाइन अर्थपूर्ण मूल्यांकन मुश्किल है, 70% अभिभावकों ने कहा ऑनलाइन कक्षा बच्चों के सीखने के लिए प्रभावी नहीं है.60% से अधिक बच्चों की ऑनलाइन कक्षा तक पहुंच नहीं है.
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मध्यप्रदेश को लेकर ASER की रिपोर्ट बताती है कि सरकारी और निजी स्कूलों में 62.7% ऐसे छात्र हैं जिनके घर में स्मार्टफोन या टीवी है. इस सर्वे में पता चला है कि 2018 से 2020 के बीच 6-10 आयु वर्ग में स्कूल न जाने वाले बच्चों का अनुपात 1.8 % से बढ़कर 5.3 % हो गया है. यही नहीं, स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों में ग्रामीण इलाकों में महज 18.3 % बच्चों ने वीडियो रिकॉर्डिंग का उपयोग किया है, और 8.1 % ने लाइव ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लिया है. 2019-20 में लगभग पौने दो लाख बच्चों ने राइट टू एजुकेशन के तहत दाखिला लिया था लेकिन अब भविष्य अधर में हैं, अप्रैल 2020 में सरकार ने डिजिटल लर्निंग एन्हांसमेंट प्रोग्राम यानी 'डिजिलिप' बनाया गया और शिक्षकों से वीडियो सहित शिक्षण सामग्री व्हाट्सऐप पर भेजने को कहा गया लेकिन जिनको रोटी और कलम का चुनाव हो, वो बच्चे आखिर करते भी तो क्या? वो कोरोना के पहले शिकार बने और अब अशिक्षा के बनते जा रहे..