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This Article is From May 31, 2018

वर्ल्ड नो टबेको डे : बीड़ी पीने की लत से हंसता-खेलता परिवार तबाह, पढ़ाई छोड़ बच्चों को करना पड़ा काम

40 फीसदी कैंसर और 30 फीसदी दिल के दौरे तंबाकू की वजह से होते हैं. जो लोग धुएं रहित तंबाकू (चबाने वाले तंबाकू, गुटका) का उपयोग करते हैं उनमें मुंह के कैंसर (जीभ, गाल, जबड़े की हड्डी) का खतरा सबसे अधिक होता है.

वर्ल्ड नो टबेको डे : बीड़ी पीने की लत से हंसता-खेलता परिवार तबाह, पढ़ाई छोड़ बच्चों को करना पड़ा काम
वर्ल्ड नो टबेको डे : गले की नसों में महसूस हुआ खिंचाव, अस्पताल में भर्ती और फिर हंसता-खेलता परिवार तबाह
नई दिल्ली: 54 साल के बाबूलाल सैनी को कम उम्र में ही बीड़ी पीने की आदत लग गई. यह आदत 20 से ज्यादा सालों तक चली. साल 2005 में उन्हें गले में एक गांठ और नसों में खिंचाव महसूस हुआ. जांच करवाई तो पता चला कि उन्हें कैंसर है. कीमोथेरेपी, रेडिएशन, थेरेपी और सर्जरी से उनका इलाज तकरीबन एक साल तक चला. इस इलाज के दौरान सिर्फ उन्हें ही नहीं बल्कि उनके परिवार को भी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा, सिर्फ मानसिक ही नहीं बल्कि आर्थिक तौर पर भी कई तरह की परेशानियों को झेलना पड़ा. इस रोग ने ना सिर्फ उन्हें बेरोज़गार किया बल्कि बच्चों को पढ़ाई की उम्र में ही नौकरी कर घर की जिम्मेदारी उठाने पर मजबूर कर दिया. 

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सिर्फ बाबूलाल ही नहीं बल्कि ऐसे लाखों लोग हैं जो अपनी तंबाकू और धूम्रपान की आदत के चलते अपने घरों और परिवार वालों को इस मुसीबत में झोकने को तैयार हो रहे हैं. ऐसे दर्दनाक अनुभवों को जानने के बाद भी हर साल 2500 लोग तंबाकू की वजह से मर रहे हैं. आज वर्ल्ड नो टबेको डे (World No Tobacco Day) पर डॉक्टरों से जानिए कि कैसे तंबाकू और धूम्रपान की ये लत आपके शरीर को हर दिन नुकसान पहुंचा रही है.

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रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. निधि पाटनी का कहना है कि पूरी दुनिया में लगभग 70 लाख लोग तंबाकू खाने से मर रहे हैं. इनमें से 16 प्रतिशत कैंसर के मरीज सिर्फ भारत से हैं. इस आंकड़े के मुताबिक देश में हर दिन करीब 2500 लोग तंबाकू से अपनी जान खो रहे हैं. इतना ही नहीं देश में मौजूद कैंसर पीड़ितों में से पुरुषों में 45 फीसदी और 17 फीसदी महिलाएं हैं. 
 
world no tobacco day 2018

मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. ललित मोहन शर्मा ने बताया कि तंबाकू खाने से फेफड़ों, मुंह व गले, आहार नालिका, पेट, आंत और गर्भाशय सहित कई प्रकार के कैंसर होते हैं. तंबाकू उत्पादों में कई केमिकल्स ऐसे होते हैं जो डीएनए को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे कैंसर होता है. 40 फीसदी कैंसर और 30 फीसदी दिल के दौरे तंबाकू की वजह से होते हैं. जो लोग धुएं रहित तंबाकू (चबाने वाले तंबाकू, गुटका) का उपयोग करते हैं उनमें मुंह के कैंसर (जीभ, गाल, जबड़े की हड्डी) का खतरा सबसे अधिक होता है. इनके लक्षणों में मुंह का कम खुलना, बार-बार छाला होना, आवाज में बदलाव, लगातार खांसी और वजन का कम होना शामिल है. ज्यादातर रोगी 11 से 16 की उम्र के बीच तंबाकू खाना शुरू कर देते हैं. यदि आपके परिवार में एक व्यक्ति धुम्रपान करता है तो उसका धुआं अन्य परिवारजनों को भी नुकसान पहुंचाता है. 

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सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. नरेश लेडवानी ने बताया कि दुखद बात यहा है कि तंबाकू से होने वाले कैंसर रोगी में रोगी एडवांस स्टेज में डॉक्टर के पास पहुंचता है. ऐसे में उपचार मंहगा और जटिल होता है, लाभ कम. पिछले 5 सालों में अस्पताल में कुल 46,904 रोगियों में कैंसर रोग का निदान हुआ है, औसतन हर साल 9,380 नए मरीज़ों में कैंसर का निदान किया जा रहा है. इनमें सबसे ज्यादा कैंसर मुंह और गले का है, जिसका मुख्य कारण तंबाकू है.

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