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This Article is From Apr 29, 2020

Lockdown में रोजी-रोटी के संकट, घरों में काम करने वाली मेड्स की मुश्किलें बढ़ीं

घरेलू कामगारों के लिए काम कर रहे संगठनों के अनुसार कुछ लोगों ने वेतन के साथ राशन से इनकी मदद की है लेकिन उनका प्रतिशत बहुत ही कम है.

Lockdown में रोजी-रोटी के संकट, घरों में काम करने वाली मेड्स की मुश्किलें बढ़ीं
महिलाओं को लॉकडाउन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.
नई दिल्ली:

लॉकडाउन के दौरान 'वर्क फ्रॉम होम' इनके लिए नहीं हैं और प्रधानमंत्री की अपील के बावजूद कइयों को पूरा वेतन भी नहीं मिल सका है , तिस पर घरेलू हिंसा की त्रासदी सो अलग. कुल मिलाकर घरेलू सहायिकाओं के लिये कोरोना वायरस महामारी भानुमति का ऐसा पिटारा लेकर आई है जिसमें से हर रोज एक नयी समस्या निकल रही है. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोनावायरस महामारी के कारण लागू लॉकडाउन के बीच घरेलू कामगारों को पूरा वेतन देने की अपील की थी.

घरेलू कामगारों के लिए काम कर रहे संगठनों के अनुसार कुछ लोगों ने वेतन के साथ राशन से इनकी मदद की है लेकिन उनका प्रतिशत बहुत ही कम है. कइयों का कहना है कि उन्हें सिर्फ मार्च का वेतन मिला है और अब आगे तभी मिलेगा, जब से उनका काम शुरू होगा. 

मयूर विहार की कई सोसायटी में काम करने वाली चिल्ला गांव की पद्मा ने कहा , ''हमें 20 मार्च से ही सोसायटी में आने से मना कर दिया गया था. मार्च की तनख्वाह तो जैसे तैसे मिल गई लेकिन अप्रैल में इक्के दुक्के को छोड़कर कोई वेतन नहीं दे रहा. पता नहीं आगे क्या होगा ?'' 

घरों में झाड़ू पोछा, सफाई, बर्तन करने वाली पद्मा का पति बेरोजगार है और उसी की कमाई से तीन बच्चों का भी लालन पालन होता है. उन्होंने कहा, ''राशन कार्ड पर 12 किलो चावल मिल गया सो गुजारा हो रहा है. सरकारी स्कूल में खाना मिल जाता है लेकिन रोज जाना मुश्किल है. मेरी बेटी बीमार रहती है और उसकी दवा का भी इंतजाम नहीं हो पा रहा.'' 

वहीं पटेल नगर में घरेलू सहायिका काम करने वाली मीरा सुबह से शाम तक कई घरों में काम करके छह हजार रूपये महीना कमा लेती थी लेकिन इस महीने हाथ में कुछ नहीं आया. 

उन्होंने कहा, ''एक तो कमाई नहीं और यह भी गारंटी नहीं कि सारे घरों में फिर काम मिल जायेगा. उस पर पति को शराब की लत और आजकल शराब नहीं मिल पाने से सारा गुस्सा मुझ पर फूटता है. समझ में नहीं आता कि कहां जाऊं ?''

वह कहती हैं, ''हमें पता है कि मोदीजी ने सभी को पूरा वेतन देने के लिये कहा है लेकिन वह देखने थोड़े ही आयेंगे कि मिला भी है या नहीं.'' 

घरेलू सहायिकाओं समेत असंगठित क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं के कल्याण के लिये देश में पिछले 48 साल से काम कर रहे 'सेल्फ इम्प्लायड वीमेंस एसोसिएशन (सेवा) ' की दिल्ली ईकाई की सहायक समन्वयक सुमन वर्मा ने बताया कि वर्तमान और भविष्य दोनों की चिंता इन महिलाओं को परेशान कर रही है.

उन्होंने कहा, ''कुछ लोगों ने इन्हें अप्रैल का वेतन देने से साफ मना कर दिया है. हम दिल्ली में आपदा प्रबंधन समिति में कार्यसमिति के सदस्य हैं और हम यह मसला उठायेंगे. अभी हमारी राष्ट्रीय घरेलू सहायिका समिति ने हाल ही में इस संबंध में अपील भी की थी कि इनका वेतन नहीं काटा जाये.'' 

दिल्ली में इनके साथ आठ से दस हजार घरेलू सहायिकायें रजिस्टर्ड हैं. वहीं पिछले दो दशक से घरेलू सहायिकाओं के अधिकारों के लिये काम कर रहे संगठन 'निर्माण' के डायरेक्टर आपरेशंस रिचर्ड सुंदरम ने कहा कि यह चिंतनीय है कि भारत ने अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के उस कन्वेंशन पर अभी तक सहमति नहीं जताई है, जो 'घरेलू कामगारों को सम्माननीय काम' के उद्देश्य से आयोजित किया गया था. 

उल्लेखनीय है कि इस कन्वेंशन में श्रम कानूनों में बदलाव कर घरेलू काम को भी राजकीय नियमन के अधीन लाए जाने का प्रस्ताव था. उन्होंने कहा, ''अब समय आ गया है कि इस संबंध में कोई नियम बनाया जाये. मौजूदा हालात में इनकी समस्यायें और उभरकर सामने आ रही हैं. कार्यस्थल के अलावा घर पर भी इनके साथ बहुत अच्छा बर्ताव आम तौर पर नहीं होता है.''

उन्होंने कहा, ''मौजूदा हालात में कुछ नियोक्ता तो इनका ख्याल रखकर पैसा राशन सब कुछ दे रहे हैं लेकिन उनका प्रतिशत बहुत कम है. कई मामलों में तो ऐसा भी हुआ कि दूर से काम पर आने वाली ये सहायिकायें अचानक लाकडाउन के कारण वेतन भी नहीं ले सकीं.'' 

सुंदरम ने कहा, ''कमाई का जरिया नहीं होना, कई मामलों में पति की बेरोजगारी या शराब की लत और बच्चों के भविष्य की चिंता से ये मानसिक अवसाद से भी घिरती जा रही हैं लेकिन इनकी परवाह करने वाला कौन है ?''

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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