सुपरबग से लड़ने में अनूठा एंटीबॉयोटिक कर सकता है मदद
भारतीय मूल के वैज्ञानिकों ने एक अनूठा एंटीबॉयोटिक विकसित किया है, जो औषधि प्रतिरोधी बैक्टेरिया को मारने में सक्षम है और अगले 30 बरसों में एंटीबॉयोटिक औषधि की नयी श्रेणी का मार्ग प्रशस्त कर सकता है.
यह सफलता‘ टेक्सोबैक्टिन’ आधारित वाणिज्यिक रूप से व्यवहार्य एक औषधि विकसित करने की दिशा में एक और बड़ा कदम हो सकता है.
‘ टैक्सोबैक्टिन’ एक प्राकृतिक एंटीबॉयोटिक है जिसकी खोज अमेरिकी वैज्ञानिकों ने 2015 में मिट्टी के नमूनों में की. इसे आगे चलकर स्थिति बदलने वाली सफलता के तौर पर देखा जा रहा है.
ब्रिटेन के लिंकन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक टेक्सोबैक्टिन का एक सरल और कृत्रिम प्रारूप बनाया जिसका उपयोग चूहे में जीवाणु के संक्रमण का इलाज करने में किया गया. इससे इस बारे में पहला सबूत मिला कि इस तरह के सरल प्रारूप का इस्तेमाल नई औषधि के आधार पर वास्तविक जीवाणु संक्रमण के इलाज में किया जा सकता है.
इसके बाद सिंगापुर आई रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोधार्थियों ने चूहे में जीवाणु संक्रमण के इलाज के लिए कृत्रिम प्रारूप का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया.
शोधार्थियों के मुताबिक यह अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2050 तक अतिरिक्त एक करोड़ लोगों की औषधि प्रतिरोधी संक्रमण या सुपरबग से प्रत्येक साल मौत होगी.
यूनिवर्सिटी ऑफ लिंकन स्कूल ऑफ फार्मेसी के ईश्वर सिंह ने बताया कि टेक्सोबैक्टिन की जब खोज की गई तब यह खुद में एक नयी औषधि के रूप में एक अहम सफलता थी, जो सुपरबग सहित किसी पता लगाए जाने योग्य प्रतिरोध के बगैर जीवाणु को मार सकता है, लेकिन प्राकृतिक टेक्सोबैक्टिन मानव उपयोग के लिए नहीं बनाया गया था.
देखें वीडियो - कहीं पानी में सुपरबग तो नहीं?
यह सफलता‘ टेक्सोबैक्टिन’ आधारित वाणिज्यिक रूप से व्यवहार्य एक औषधि विकसित करने की दिशा में एक और बड़ा कदम हो सकता है.
‘ टैक्सोबैक्टिन’ एक प्राकृतिक एंटीबॉयोटिक है जिसकी खोज अमेरिकी वैज्ञानिकों ने 2015 में मिट्टी के नमूनों में की. इसे आगे चलकर स्थिति बदलने वाली सफलता के तौर पर देखा जा रहा है.
ब्रिटेन के लिंकन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक टेक्सोबैक्टिन का एक सरल और कृत्रिम प्रारूप बनाया जिसका उपयोग चूहे में जीवाणु के संक्रमण का इलाज करने में किया गया. इससे इस बारे में पहला सबूत मिला कि इस तरह के सरल प्रारूप का इस्तेमाल नई औषधि के आधार पर वास्तविक जीवाणु संक्रमण के इलाज में किया जा सकता है.
इसके बाद सिंगापुर आई रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोधार्थियों ने चूहे में जीवाणु संक्रमण के इलाज के लिए कृत्रिम प्रारूप का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया.
शोधार्थियों के मुताबिक यह अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2050 तक अतिरिक्त एक करोड़ लोगों की औषधि प्रतिरोधी संक्रमण या सुपरबग से प्रत्येक साल मौत होगी.
यूनिवर्सिटी ऑफ लिंकन स्कूल ऑफ फार्मेसी के ईश्वर सिंह ने बताया कि टेक्सोबैक्टिन की जब खोज की गई तब यह खुद में एक नयी औषधि के रूप में एक अहम सफलता थी, जो सुपरबग सहित किसी पता लगाए जाने योग्य प्रतिरोध के बगैर जीवाणु को मार सकता है, लेकिन प्राकृतिक टेक्सोबैक्टिन मानव उपयोग के लिए नहीं बनाया गया था.
देखें वीडियो - कहीं पानी में सुपरबग तो नहीं?