जानलेवा कोरोनावायरस (Coronavirus) के संक्रमण के चलते कई देशों में लॉकडाउन है और मानो पूरी दुनिया थम सी गई है. कोरोनावायरस के लक्षणों के आधार पर मरीज का इलाज किया जाए रहा है, लेकिन अभी तक न तो इसकी दवाई बन पाई और न ही टीका ही विकसित किया जा सका है. हालांकि दुनिया भर के वैज्ञानिक और मेडिकल प्रोफेशनल इसके इलाज की अचूक दवा बनाने और टीका विकसित करने पर जोर-शोर से काम कर रहे हैं.
देश के एक शीर्ष वैज्ञानिक का कहना है कि कोविड-19 का टीका खोजने के लिए छह भारतीय कंपनियां काम कर रही हैं और वे इस महामारी का तोड़ ढूंढ़ने की वैश्विक दौड़ में शामिल हैं.
लगभग 70 तरह के टीकों का परीक्षण हो रहा है और कम से कम तीन टीके मानव परीक्षण के चरण में पहुंच चुके हैं, लेकिन नोवेल कोरोनावायरस का टीका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल के लिए 2021 से पहले तैयार होने की संभावना नहीं है.
कोरोनावायरस विश्वभर में 19 लाख से अधिक लोगों को बीमार कर चुका है और इनमें से 1,26,000 लोगों की जान ले चुका है.
भारतीय वैज्ञानिक भी इस महामारी का कोई सटीक उपचार ढूंढ़ने के वैश्विक प्रयासों में शामिल हैं.
ट्रंसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टिट्यूट फरीदाबाद के कार्यकारी निदेशक गगनदीप कांग ने कहा, "जाइडस कैडिला जहां दो टीकों पर काम कर रही है, वहीं सीरम इंस्टिट्यूट, बॉयलॉजिकल ई, भारत बायोटेक, इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स और मिनवैक्स एक-एक टीके पर काम कर रही हैं.
कांग 'कोअलिशन फॉर एपिडेमिक प्रिपेयर्डनेस इनोवेशंस (CPI)' के उपाध्यक्ष भी हैं जिसने एक हालिया अध्ययन में उल्लेख किया कि "कोविड-19 महामारी का तोड़ निकालने के क्रम में वैश्विक टीका अनुसंधान एवं विकास प्रयास स्तर और गति के लिहाज से अभूतपूर्व है."
विशेषज्ञों का कहना है कि लेकिन यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें परीक्षण के कई चरण और अनेक चुनौतियां हैं.
उन्होंने कहा कि नए कोरोनावायरस, सार्स कोविड-2 का टीका तैयार होने में 10 साल नहीं लगेंगे जैसा कि अन्य टीकों के तैयार होने में होता है, लेकिन इसके (कोरोनावायरस) टीके को सुरक्षित, प्रभावी और व्यापक रूप से उपलब्ध घोषित करने में कम से कम एक साल लग सकता है.
केरल स्थित राजीव गांधी जैव प्रौद्योगिकी केंद्र (आरजीसीबी) के मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी ई श्रीकुमार ने कहा, "टीके का विकास करना एक लंबी प्रक्रिया है, जिसमें प्राय: वर्षों लगते हैं और अनेक चुनौतियां होती हैं."
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) के हैदराबाद स्थित कोशिकीय और आण्विक जीव विज्ञान केंद्र के निदेशक राकेश मिश्रा ने कहा, "आम तौर पर, टीका विकसित करने में महीनों लगते हैं क्योंकि इसे विभिन्न चरणों से गुजरना होता है और फिर मंजूरी मिलने में भी समय लगता है. हमें नहीं लगता कि कोविड-19 का टीका इस साल आ पाएगा."
टीके का परीक्षण पहले जानवरों, प्रयोगशालाओं और फिर मानव पर विभिन्न चरणों में होता है.
श्रीकुमार ने कहा, "मानव परीक्षण के चरण में भी कई चरण होते हैं."
उन्होंने कहा कि पहले चरण में कुछ लोगों को शामिल किया जाता है जिसमें यह देखा जाता है कि टीका मानव के लिए सुरक्षित है या नहीं. दूसरे मानव चरण में सैकड़ा लोग शामिल होते हैं जिसमें बीमारी के खिलाफ टीके के प्रभाव को परखा जाता है. अंतिम चरण में हजारों लोगों को शामिल किया जाता है तथा निर्धारित अवधि में टीके के प्रभाव को और परखा जाता है जिसमें कई महीने लग सकते हैं.
श्रीकुमार ने कहा, "इसीलिए हमें नहीं लगता कि अब से कम से कम एक साल में कोई टीका आ पाएगा."
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