कीटनाशी रसायनों से नहीं होता कैंसर का खतरा : शोध
नई दिल्ली:
कुछ वक्त पहले तक बहुत खबरें थी कि पेड़-पौधों पर छिड़कने वाले कीटनाशक रसायनों की वजह से लोग बीमार पड़ रहे हैं, लेकिन इस रिसर्च ने इस बात को पूरी तरह खारिज कर दिया है. इस अध्ययन में बताया गया कि फसलों पर इस्तेमाल होने वाले इन रसायनों से कैंसर का कोई खतरा नहीं.
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गुजरात के वापी शहर स्थित जय रिसर्च फाउंडेशन (जेआरएफ) ने अपने एक शोध में कहा कि कैंसर का कीटनाशक से कोई संबंध नहीं हैं. कीटनाशक और अन्य रसायनों पर तीन दशक से अधिक समय से रिसर्च कर रही जय रिसर्च फाउंडेशन (जेआरएफ) के निदेशक डॉ. अभय देशपांडे ने कीटनाशक से कैंसर होने के मिथक को महज भ्रांति बताया.
उन्होंने कहा, "अगर कीटनाशक की वजह से कैंसर होता तो सरकार कब का इस पर प्रतिबंध लगा चुकी होती. कैंसर के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं जिनमें हम इंसानों की बदलती जीवनशैली बहुत बड़ा कारण बन रही है."
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डॉ. देशपांडे ने कहा, "कीटनाशक दवाइयां कई प्रकार के कीट पतंगों और फंगस से फसल की सुरक्षा कर उत्पादन बढ़ाने में कारगर साबित हुई हैं. खाद्यान्नों उपलब्धता बढ़ने से आज हमारे देश की वर्तमान औसत जीवन प्रत्याशा उम्र 69 वर्ष के आसपास है जो 60 के दशक में करीब 42 वर्ष के आसपास थी."
डॉ. देशपांडे ने बताया कि एक कीटनाशक के मॉलिक्यूल को लैब से खेत तक आने में करीब 9 से 12 साल का वक्त लग जाता है जिसमें करीब 5000 करोड़ रुपये तक का निवेश होता है. एक कीटनाशक के असर को पानी में मौजूद काई (एलगी) से लेकर पशुओं के तीन पीढ़ी तक अध्ययन किया जाता है अगर इनमें से किसी भी प्राणी पर इसका विपरीत असर दिखता है तो कीटनाशक को स्वीकृति नहीं मिलती.
उन्होंने कहा कि कीटनाशक को सभी प्रकार के वातावरण में परखा जाता है और सभी में सुरक्षित साबित होने के बाद ही इसे स्वीकृति मिलती है. इसके बाद इसे देश और विदेश के कई स्वीकृत एजेंसियों द्वारा टेस्ट किया जाता है फिर इनके इस्तेमाल की अनुमति दी जाती है. भारत मे कीटनाशकों को सेंट्रल इंसेक्टिसाइड बोर्ड एंड रेजिस्ट्रेशन कमिटी द्वारा अनुमति प्रदान की जाती है. (इनपुट-आईएएनएस)
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डॉ. देशपांडे ने कहा, "कीटनाशक दवाइयां कई प्रकार के कीट पतंगों और फंगस से फसल की सुरक्षा कर उत्पादन बढ़ाने में कारगर साबित हुई हैं. खाद्यान्नों उपलब्धता बढ़ने से आज हमारे देश की वर्तमान औसत जीवन प्रत्याशा उम्र 69 वर्ष के आसपास है जो 60 के दशक में करीब 42 वर्ष के आसपास थी."
डॉ. देशपांडे ने बताया कि एक कीटनाशक के मॉलिक्यूल को लैब से खेत तक आने में करीब 9 से 12 साल का वक्त लग जाता है जिसमें करीब 5000 करोड़ रुपये तक का निवेश होता है. एक कीटनाशक के असर को पानी में मौजूद काई (एलगी) से लेकर पशुओं के तीन पीढ़ी तक अध्ययन किया जाता है अगर इनमें से किसी भी प्राणी पर इसका विपरीत असर दिखता है तो कीटनाशक को स्वीकृति नहीं मिलती.
उन्होंने कहा कि कीटनाशक को सभी प्रकार के वातावरण में परखा जाता है और सभी में सुरक्षित साबित होने के बाद ही इसे स्वीकृति मिलती है. इसके बाद इसे देश और विदेश के कई स्वीकृत एजेंसियों द्वारा टेस्ट किया जाता है फिर इनके इस्तेमाल की अनुमति दी जाती है. भारत मे कीटनाशकों को सेंट्रल इंसेक्टिसाइड बोर्ड एंड रेजिस्ट्रेशन कमिटी द्वारा अनुमति प्रदान की जाती है. (इनपुट-आईएएनएस)
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