Guru Tegh Bahadur Shaheedi Diwas 2021: जानें सिखों के नौवें गुरु क्यों कहलाते हैं हिंद की चादर, इन नेताओं ने भी किया नमन

Guru Tegh Bahadur Shaheedi Diwas: सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर ने अपने समुदाय के लोगों के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया. गुरु तेग बहादुर को 'हिंद की चादर' भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है भारत का ढाल.

Guru Tegh Bahadur Shaheedi Diwas 2021: जानें सिखों के नौवें गुरु क्यों कहलाते हैं हिंद की चादर, इन नेताओं ने भी किया नमन

गुरु तेग बहादुरजी के शहीदी दिवस पर जानें उनसें जुड़ी खास बातें

नई दिल्ली:

सिखों के नौवें गुरू, गुरु तेग बहादुर की शहादत इतिहास (Guru Tegh Bahadur Shaheedi Diwas 2021) में अतुल्यनीय है. वह एक महान विचारक, योद्धा, पथिक व अध्यात्मिक व्यक्तित्व के धनी थे, जिन्होंने धर्म, मातृभूमि और जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, इसीलिए उन्हें 'हिंद की चादर' कहा जाता है. गुरू तेग बहादुर ऐसे साहसी योद्धा थे, जिन्होंने न सिर्फ सिक्खी का परचम ऊंचा किया, बल्कि अपने सर्वोच्च बलिदान से हिंदू धर्म की हिफाजत भी की. उन्होंने मुगल बादशाह औरंगजेब की तमाम कोशिशों के बावजूद इस्लाम धर्म धारण नहीं किया और तमाम जुल्मों का पूरी दृढ़ता से सामना किया. गुरू तेग बहादुर के धैर्य और संयम से आग बबूला हुए औरंगजेब ने चांदनी चौक पर उनका शीश काटने का हुक्म जारी कर दिया. वह 24 नवंबर 1675 का दिन था, जब गुरू तेग बहादुर ने धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया. उनके अनुयाइयों ने उनके शहीदी स्थल पर एक गुरूद्वारा बनाया, जिसे आज गुरूद्वारा शीश गंज साहब के तौर पर जाना जाता है. उन्हें सबसे निस्वार्थ शहीद माना जाता है और उनकी शहादत को हर साल 24 नवंबर को गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस (Guru Tegh Bahadur Martyrdom Day 2021) के रूप में मनाया जाता है.

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सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर की शहीदी दिवस (Guru Tegh Bahadur Shaheedi Diwas) पर इन वरिष्ठ नेताओं ने किया नमन.

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) ने गुरु तेग बहादुर की शहीदी दिवस के मौके पर 'कू' (Koo App) करते हुए लिखा, 'सिखों के नौवें गुरु, हिंद दी चादर #GuruTegBahadur जी के शहीदी दिवस पर उनके चरणों में विनम्र श्रद्धांजलि!'

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर (Jairam Thakur) ने लिखा, 'सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर जी के शहीदी दिवस पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि! धर्म और मानवता की रक्षा के लिए उनका बलिदान हम सबको सदैव प्रेरित करता रहेगा.'

हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर (Manohar Lal) ने लिखा, 'हार और जीत यह आपकी सोच पर ही निर्भर है, मान लो तो हार है ठान लो तो जीत है, मानवीय मूल्यों, आदर्शों व सिद्धांतों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले सिखों के 9वें गुरु, गुरु तेग बहादुर जी को उनके शहीदी दिवस पर सादर नमन.'

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत (Tirath Singh Rawat) ने लिखा, 'धर्म और मानवता की रक्षा हेतु सर्वस्व समर्पित करने वाले सिख धर्म के 9वें गुरु, गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन.'

एनसीपी नेता सुप्रिया सुले (Supriya Sule) ने लिखा, 'शीख समाजाचे नववे गुरु, गुरु तेग बहादूर यांची आज पुण्यतिथी. यानिमित्ताने त्यांच्या स्मृतींना विनम्र अभिवादन.'

गुरु तेग बहादुर से जुड़ी खास बातें (Special Things Related To Guru Tegh Bahadur)

अमृतसर में जन्मे गुरु तेग बहादुर गुरु हरगोविन्द जी के पांचवें पुत्र थे. 8वें गुरु हरिकृष्ण राय जी के निधन के बाद, इन्हें 9वां गुरु बनाया गया था. इन्होंने आनन्दपुर साहिब का निर्माण कराया और ये वहीं रहने लगे थे.

गुरु तेग बहादुर बचपन से ही बहादुर, निर्भीक स्वभाव के और आध्यात्मिक रुचि वाले थे. मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुगलों के हमले के खिलाफ हुए युद्ध में उन्होंने अपनी वीरता का परिचय दिया. इस वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम तेग बहादुर यानी तलवार के धनी रख दिया.

उन्होंने मुगल शासक औरंगजेब की तमाम कोशिशों के बावजूद इस्लाम धारण नहीं किया और तमाम जुल्मों का पूरी दृढ़ता से सामना किया. औरंगजेब ने उन्हें इस्लाम कबूल करने को कहा तो गुरु साहब ने कहा 'शीश कटा सकते हैं, केश नहीं'.

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औरंगजेब के शासन के दौरान गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम में गैर-मुस्लिमों के जबरन धर्मांतरण का विरोध किया था.

दिल्ली में मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर 1675 में उनकी सार्वजनिक रूप से हत्या कर दी गई थी.

अपने त्याग और बलिदान के लिए वह सही अर्थों में 'हिन्द की चादर' कहलाए.

कश्मीर में हिंदुओं को जबरन मुस्लिम बनाने के वे सख्त विरोधी रहे और खुद भी इस्लाम कबूलने से मना कर दिया.

दिल्ली का मशहूर गुरुद्वारा शीश गंज साहिब जहां है, उसी स्थान पर उनकी हत्या की गई थी और उनकी अंतिम विदाई भी यहीं से हुई थी. वो जगह आज रकाबगंज साहिब के नाम से जानी जाती है.

साल 1665 में उन्होंने आनंदपुर साहिब शहर बनाया और बसाया. वह गुरुबाणी, धर्म ग्रंथों के साथ-साथ शस्त्रों और घुड़सवारी में भी प्रवीण थे.

उन्होंने 115 शबद भी लिखे, जो अब पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब का हिस्सा हैं.

गुरु तेग बहादुर जहां भी गए, स्थानीय लोगों के लिए सामुदायिक रसोई और कुएं स्थापित किए.

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आनंदपुर साहिब, प्रसिद्ध पवित्र शहर और हिमालय सटा एक वैश्विक पर्यटक आकर्षण स्थल, गुरु तेग बहादुर द्वारा स्थापित किया गया था.