'90 बॉर्न किड्स' आज मिस कर रहे हैं पापा की ये बातें...

'90 बॉर्न किड्स' आज मिस कर रहे हैं पापा की ये बातें...

नई दिल्ली:

आज हम सब  उस शख्स के नाम जश्न मना रहे हैं जिनके ज़िक्र के बिना हमारी हिस्ट्री अधूरी है। जिनसे हमारा डीएनए और सरनेम हुबहू मैच करता है। जिनके होने या न होने से फर्क केवल हमारे वॉलेट पर ही नहीं, बल्कि सोच और परस्नैलिटी पर भी पड़ता है। इन शॉर्ट, आज फादर्स डे है।

फेसबुक से लेकर ट्विटर तक और विज्ञापनों से लेकर म्यूजिक चैनल की प्लेलिस्ट तक खासतौर से फादर्स डे की थीम पर तैयार की गई है। अगर आप '90 बॉर्न किड' की कैटेगरी में आते हैं तो ज़ाहिर है आपने फादर्स डे के नाम पर न केवल अपनी फेसबुक डीपी बदली और ट्विटर पर इमोश्नल पोस्ट डालकर लाइक्स और फॉलोवर्स बटोरे, बल्कि नैतिकता के आधार पर अपने पापा के लिए मज़ेदार आउटिंग प्लान की होगी या बढ़िया सा गिफ्ट तैयार रखा होगा। 

तो 'फादर्स डे' के इस पावन मौके पर हम आपको ले चलते हैं बैक प्लैश में और याद दिलाते हैं पापा जी की वो बातें जो 'तब' तो हमें बर्दाश्त नहीं होती थी, और 'अब' उन्हीं बातों को एक बार फिर सुनने का दिल करता है...

पढ़ाई कर ले
बचपन में जब भी पापा से सामना होता था, उनके मुंह से केवल एक ही बात निकलती थी, 'कॉम्पटीशन का जमाना है, पढ़ाई कर ले बेटा.' दिन में 10 बात अगर वो मुझसे कहते थे, तो उसमें से 7 बार तो पढ़ाई करने की नसीहत ही होती थी। अब जब अपनी नौकरी और सैलरी देखकर दुख होता है तो लगता है, काश उस वक्त पापा की बात मानकर सीरियस होकर एक बार भी पढ़ाई कर ली होती, तो शायद जेब में पैसे होते। तब उनकी बात समझ नहीं आई और अब समझकर भी कोई फायदी नहीं।

न्यूज़ लगाओ
बचपन में जब भी रविवार को या शाम को हम अपना पसंदीदा प्रोग्राम टीवी पर देखा करते थे  तभी पापा बीच में आकर चैनल बदलकर न्यूज़ लगाते थे। तब बड़ा गुस्सा आता था। सिर फोड़ने का मन करता था (नोट: अपना)।लेकिन आज जब दोस्तों के बीच किसी संवेदनशील मुद्दे पर  राय रखने पर तालियां बजती हैं या लोग हमारे जीके की तारीफ करते हैं, तो दिल को बड़ा सुकून मिलता है। तब पापा के लिए इज्जत और प्यार और भी बढ़ जाता है।
 

 
मेडिकल या इंजीनियरिंग कर, क्रिकेट में फ्यूचर नहीं है
वीडियो गेम खेलो तो प्रॉब्लम, क्रिकेट खेलो तो उससे भी प्रॉब्लम। क्रिकेट कोचिंग या गिटार क्लासेज़ में एड्मिश्न पाने के लिए मां से पापा की मिन्नतें करानी पड़ती थी। 12वीं के बाद होटल मैनेजमेंट या एयर होस्टेस या एनिमेशन कोर्स में दाखिले की योजना का ज़िक्र करो तब तो 'पापा के प्रकोप' से आपको कोई नहीं बचा सकता। ये परेशानी लगभग हर पिता-बच्चे के बीच होती है। एक तरफ बच्चा जहां नई फील्ड एक्सप्लोर करना चाहता है तो वहीं पिता जी उसे सेक्योर प्रोफेशन में भेजने की ठान लेते हैं। 

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कमरा है या पान की दुकान
हर कोई फिल्म 'फैन' के किरदार गौरव चानना की तरह भाग्यशाली नहीं होता। उसने पूरा कमरा अपने फेवरेट एक्टर की तस्वीरों से सजा रखा था, यहां तो एक छोटे से पोस्टर पर भी बवाल मच जाता है। वैसे भी गौरव चानना के पिता जैसे प्राणी फिल्मों में ही होते हैं। अपने कमरे में फेवरेट हीरो, हिरोईन, क्रिकेटर का पोस्टर लगाया नहीं कि पापा का गुस्सा फूट पड़ता है, सीधे पान की दुकान से हमारे कमरे के इंटीयर की तुलना शुरू हो जाती थी।  जबरन और मजबूरन हमें बेड के पीछे की दीवार पर पॉकेट मनी बचाकर  खरीदी गई पोस्टर हटानी पड़ती थी। 

नो नाइटआउट
स्कूल की ट्रिप पर जाने के लिए तो जैसे-तैसे करके, पढ़ाई का वास्ता देकर पापा को पटाना पड़ता था। लेकिन 12वीं की परीक्षा के बाद दोस्तों के साथ कोई ऑउटिंग प्लान करते ही पापा की डांट पड़ती थी। नाइटआउट का ज़िक्र करना तो दूर, शाम को घर से बाहर निकलते ही नसीहत चिपका दी जाती थी कि स्ट्रीट लाइट के जलने से पहले घर वापस लौटना है। आज जब हम नौकरीपेशा हैं, पापा के साथ नहीं रहते और कोई रोकने-टोकने वाला नहीं तो हम उन्हीं नसीहतों को मिस भी करते हैं। ऐहसास होता है आज इस बात का कि पापा को हमारी फिक्र होती थी, इसलिए हमारी सुरक्षा के लिए उन्होंने कड़े नियम कायदों में हमें बाध कर रखा था।  

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स्कूल के दोस्तों के सामने निक नेम से पुकारना
स्कूल फंक्शन के मौके पर, पेरेंट्स-टीचर मीटिंग के दौरान या फिर जब यार दोस्त घर पर आते थे, तब अगर पापा हमें हमारे घर के नाम से पुकारते थे, तब उससे ज्यादा एंबैरेसिंग हमारे लिए कुछ नहीं होता। आज कॉरपोरेट लाइफ में, जहां लोग सरनेम से ही पुकारते हैं, हम सामने वाले के मुंह से अपना वहीं 'घर वाला नाम' सुनने को तरस जाते हैं।

बोरिंग ट्रेनिंग 
गर्मी छुट्टियों के वक्त केवल मां की ट्रेनिंग कैंप ही चालू नहीं रहती, बल्कि पापा भी हमें कुछ मामलों को एक्सपर्ट बनाने में जुट जाते थे। बैंक में पैसे जमा कैसे करते हैं, फ्यूज़ कैसे ठीक करते हैं, कपड़े आयरन करना, एलपीजी सिलिंडर का रेगुलेटर बदलना, वगैरह वगैरह की ट्रेनिंग दी जाती है। तब तो ये सब सीखना बोरिंग लगता था, आज यही काम काम के लगते हैं। 

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