लीजा रे इस रेयर कैंसर की थी शिकार, आज भी जारी है इलाज
नई दिल्ली:
लीजा रे आज 45 साल की हो गई. 4 अप्रैल 1972 में उनका जन्म कनाडा के शहर टोरंटो में एक बंगाली परिवार में हुआ. 16 साल की उम्र में ही मॉडलिंग शुरू की और कई बॉलीवुड फिल्मों जैसे वाटर, कसूर, हसंले खेलते और वीरप्पन में काम किया. मॉडलिंग और फिल्मों के अलावा उन्होंने बतौर टीवी होस्ट भी काम किया. साल 2012 में उन्होंने अपने बॉयफ्रेंड जेसन डेह्नी से शादी की.
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लेकिन साल 2009 में लीजा रे मल्टीपल माइलोमा नाम के कैंसर से गुजरी. यह एक रेयर कैंसर है. 2010 में लिजा रे ने स्टेम सेल ट्रांसप्लांट करवाकर इस कैंसर से मुक्ति पाई. लेकिन आज भी उनका इलाज जारी है, और वो सिर्फ जूस, स्मूदिज़ और सब्ज़ियां ही खाती हैं. इस ट्रांसप्लांट में उनके खून के सफेद ब्लड सेल्स में बनने वाले एंटीबॉडीस को फिर से रिकवर किया गया. यहां जानें आखिर क्या है मल्टीपल माइलोमा, और क्या हैं इसके लक्षण.
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क्या होता है मल्टीपल माइलोमा?
यह एक प्रकार का कैंसर है जो सफेद ब्लड सेल्स में होता है, इन्हें प्लाज्मा सेल्स भी कहते हैं. यह सेल्स बोन मैरो में बनते हैं और खून और लिम्फ टीशू में पाए जाते हैं. व्हाइट ब्लड सेल्स शरीर के इम्यून सिस्टम का हिस्सा होते हैं, जो बॉडी को इंफेक्शन और बीमारियों से बचाती है. शरीर में तीन प्रकार के व्हाइट ब्लड सेल्स होते हैं जैसे ग्रनूलोसाइट (नुट्रोफिल, इस्नोफीलिया और बेसोफिल), मोनोसाइट और लिम्फोसाइट्स (टी सेल्स और बी सेल्स). व्हाइट ब्लड सेल्स की जांच CBC (कम्प्लीट ब्लड सेल) द्वारा होती है. इस टेस्ट के जरिए ही शरीर में इंफेक्शन, सूजन, एलर्जी और ल्यूकेमिया का पता लगाया जाता है.
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मल्टीपल माइलोमा के लक्षण
क्योंकि व्हाइट ब्लड सेल्स बोन मैरो में बनती है, इसीलिए इस कैंसर में पीठ, हिप्स और खोपड़ी की हड्डियों में दर्द होता है. दर्द के साथ-साथ हड्डियां कमजोर होती है (यह एक तरह की ऑस्टियोपोरोसिस जैसे अवस्था है). इसके साथ ही हल्की चोट या स्ट्रेस के कारण हड्डियां टूटने का खतरा बना रहता है. इसके अलावा दिल संबंधी परेशानियां, किडनी में दर्द, जीभ में सूजन या दर्द, त्वचा का रंग बदलना और हाथों की पकड़ कमजोर होना शामिल हैं.
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मल्टीपल माइलोमा का इलाज
इस रेयर कैंसर का इलाज भी सर्जरी और रेडिएशन से संभव है. इस कैंसर के स्टेज के मुताबिक डॉक्टर यह निर्धारित करते हैं कि इलाज कैसे करना है. इसके साथ ही मल्टीपल माइलोमा का इलाज दवाइयों से भी संभव है, जिसे सीधे मुंह से या फिर इंजेक्शन के जरिए ब्लडसेल्स में दिया जाता है.
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