साल 2002 दंगों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट के खिलाफ याचिका के मामले में जाकिया जाफरी ने SIT की जांच पर सवाल उठाए हैं. सुप्रीम कोर्ट में जाफरी ने कहा कि SIT ने जांच में प्रक्रिया का पालन नहीं किया. जाकिया की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा कि इस पूरे मामले में SIT ने CDR की जांच नहीं की, गवाहों से बात नहीं की, फोन की जांच नहीं की गई. आखिर किस आधार पर क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की गई. गुलबर्गा सोसायटी की घटना में विस्फोटक लाने और इस्तेमाल करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. अगर SIT गुलबर्गा मामले को ही देख रही थी तो SIT सभी मामलों को क्यों देख रही थी?
वही SIT की तरफ मुकुल रोहतगी ने याचिकाकर्ता की ओर से दी गई दलीलों को नकारते हुए कहा कि इस मामले में की गई शिकायत पर जांच में ऐसा कुछ भी नहीं मिला, जिसके आधार पर इस जांच को आगे बढ़ाया जाए. जिसके बाद SIT ने मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी गई.
सिब्बल ने कहा कि NHRC कि तरफ से दाखिल याचिका को देखें तो साफ हो जाता है कि SIT का मकसद सिर्फ गुलबर्गा ही नहीं था. धार्मिक भावनाएं भड़का कर लोग अपनी सत्ता की फसल के लिए उपजाऊ मिट्टी तैयार करते हैं. धार्मिक भावनाएं भड़काने की ऐसी घटनाएं ज्वालामुखी के लावा की तरह होती है. जहां भी लावा जाता है वहां सबकुछ जल जाता है. ऐसी घटनाएं भविष्य के लिए उन्माद की जमीन तैयार करती हैं. भावुक होते हुए सिब्बल ने कहा कि ऐसी ही घटनाओ में ही पाकिस्तान में उन्होंने अपने नाना नानी को खो दिया था.
सिब्बल ने कहा जब इस मामले की शिकायत कोर्ट ने दर्ज की तो इसके बाद कोर्ट ने कहा मामले की जांच करें. आरोपी पर मुकदमा चलाएं या क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करें. इसके बाद मामले की जांच सीलबंद रिपोर्ट के जरिए पेश की गई.
पीठ में शामिल जस्टिस ए एम खानविलकर ने कहा कि हम इस पर बात करें कि SIT ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस मामले में ऐसा कुछ नहीं है जिसमें आगे जांच की जाए. तब मजिस्ट्रेट ने भी इस मामले में जांच को आगे बढ़ाए जाने के आदेश नहीं दिए. जस्टिस खानविलकर ने कहा कि आपका कहना है कि इस मामले में धारा 161 के तहत बयान नहीं कराए गए. केवल प्रारंभिक जांच की गई है.
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सिब्बल ने कहा कि हमारी विरोध याचिका के बावजूद मजिस्ट्रेट ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की. जबकि हमने अपनी विरोध याचिका में निजी चैनल के स्टिंग के कुछ हिस्सों का उल्लेख भी किया था. यही हमारा विषय है जिसपर हम बात कर रहे है. जब तक आप सबूतों की जांच नहीं करेंगे तब तक कोई भी अदालत, चाहे मजिस्ट्रेट हो या हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकतीं कि साजिश थी या नहीं. 1984 के सिख विरोधी दंगों की जांच अभी जारी है.
जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की दलीलें सुनीं .
जाकिया जाफरी दिवंगत कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी हैं, जिनकी अहमदाबाद में गुलबर्ग सोसाइटी में हत्या कर दी गई थी. पिछली सुनवाई के दौरान जाकिया जाफरी की ओर से पेश कपिल सिब्बल ने कहा था जांच एजेंसियों ने गुजरात दंगों के मामले में आरोपियों की मदद की थी