क्यों BJP और कांग्रेस के लिए OBC हैं जरूरी? समझें: MP में क्यों उन्हें आरक्षण देने की मची है 'होड़'

ओबीसी मध्य प्रदेश में सबसे बड़ा वोटिंग ब्लॉक है, क्योंकि पिछले 19 सालों में तीन ओबीसी मुख्यमंत्री रहे हैं, जिनमें उमा भारती, बाबूलाल गौर और वर्तमान शिवराज सिंह चौहान शामिल हैं

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सुप्रीट कोर्ट ने मप्र के राज्य निर्वाचन आयोग को दिया आदेश (फाइल फोटो)

मध्य प्रदेश में होने वाले पंचायत चुनाव बिना ओबीसी (अन्य पिछड़ी जातियां) आरक्षण के कराए जाएंगे. सुप्रीट कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग को इस बाबत आदेश दे दिया है. कोर्ट के इस आदेश के एक दिन बाद राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निवेशकों को राज्य में आकर्षित करने के मकसद से की जा रही अपनी विदेश यात्रा को रद्द कर दिया है. सीएम 14 मई से 24 तक दौर पर जाने वाले थे. इस दौरान वे कानूनी विशेषज्ञों से परामर्श और समीक्षा याचिका की तैयारी करने वाले थे. 

इधर, कोर्ट के आदेश के बाद राज्य कांग्रेस प्रमुख और पूर्व सीएम कमलनाथ ने घोषणा की है कि स्थानीय निकाय चुनावों में कांग्रेस के 27 प्रतिशत टिकट ओबीसी उम्मीदवारों को आवंटित किए जाएंगे. वहीं, राज्य बीजेरी प्रमुख वीडी शर्मा ने घोषणा की कि पार्टी "योग्य" ओबीसी उम्मीदवारों को 27 प्रतिशत से अधिक टिकट देगी. हालांकि दोनों की प्राथमिकता शीर्ष अदालत में समीक्षा याचिका के माध्यम से 35% ओबीसी आरक्षण के लिए मार्ग प्रशस्त करना है.

ओबीसी वोटर्स का महत्व

बता दें कि ओबीसी मध्य प्रदेश में सबसे बड़ा वोटिंग ब्लॉक है, क्योंकि पिछले 19 सालों में तीन ओबीसी मुख्यमंत्री रहे हैं, जिनमें उमा भारती, बाबूलाल गौर और वर्तमान शिवराज सिंह चौहान (सभी भाजपा नेता) शामिल हैं. मध्य प्रदेश पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग द्वारा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश किए गए हालिया रिपोर्ट के अनुसार, एमपी में ग्वालियर-चंबल, बुंदेलखंड, विंध्य और मध्य एमपी क्षेत्रों में सबसे अधिक 51 प्रतिशत ओबीसी मतदाता हैं. राज्य की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 100 से अधिक के पास ओबीसी वोटों का  तय हिस्सा है, जो 2003 के बाद से काफी हद तक बीजेपी के पक्ष में रहा है, लेकिन 2018 के चुनावों में, ओबीसी वोट बैंक कांग्रेस की ओर भी काफी संख्या में ट्रांस्फर हो गया था. 

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