आखिर Exit Poll से क्यों डर गया था चुनाव आयोग! जानिए 1998 से अब तक की पूरी कहानी

नाव आयोग ने 1998 के चुनाव में पहले चरण से आखिरी चरण तक किसी भी तरह के Exit Poll पर पाबंदी लगा दी थी. मीडिया संस्थानों ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताया था. बाद में इसके लिए कानून में संशोधन किया गया.

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नई दिल्ली:

देश में सात चरणों तक चले लोकतंत्र के महापर्व का आज सातवां और आखिरी चरण है. आखिरी वोट पड़ेगा और फिर 4 जून को आने वाले नतीजों को लेकर कयास लगने लगेंगे. क्या बीजेपी की अगुआई वाला एनडीए 400 पार जाएगा? या जैसे राहुल गांधी दावा कर रहे हैं विपक्ष का INDIA गठबंधन सबको हैरान कर देगा? हर बार वोटिंग खत्म होने के बाद और नतीजों से पहले एग्जिट पोल आते हैं. अलग-अलग न्यूज एजेंसियां कुछ भविष्यवाणियां करती हैं. कई बार यह भविष्यवाणियां इतनी सटीक रही हैं कि एकबारगी विश्वास नहीं हुआ. कई बार ये नतीजों से बिल्कुल उलट रहीं. बिल्कुल फेल. एग्जिट पोल के नतीजे पहले चुनाव के दौरान ही आ जाते थे. लेकिन इन पर सवाल उठे. मामला चुनाव आयोग और फिर सुप्रीम कोर्ट के पास भी पहुंचा. एग्जिट पोल की कहानी बड़ी दिलचस्प है. जानिए आखिर कब से और क्यों आखिरी वोट के बाद ही एग्जिट पोल के नतीजों के ऐलान का नियम बना..  

 जैसे कि आपको मालूम है कि Exit Poll से चुनाव में नतीजों से पहले राजनीतिक पार्टियों की हार-जीत और उनके जीत के अंतर का अनुमान लगाया जाता है. इसमें मतदान केंद्र पर मतदान कर बाहर आए मतदाताओं से बातचीत कर आंकड़े जुटाए जाते हैं. इस डेटा के आधार पर चुनावी चाणक्य चुनाव के आंकड़ों का अनुमान लगाते हैं. भारत में इस प्रक्रिया से जुटाई गई जानकारी को दिखाने के लिए चुनाव आयोग और कानून मंत्रालय ने नियम और कानून बनाए हैं. 

Exit Poll से संबंधित नियम और कानून

भारत में प्रतिनिधित्व अधिनियम कानून में धारा 124 (अ)  चुनावी प्रक्रिया शुरू होने के बाद किसी भी तरह के Exit Poll  प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक या मीडिया के किसी दूसरे माध्यम से प्रसारित करने पर रोक लगाता है. इस नियम के तहत आखिरी चरण का मतदान खत्म होने के 30 मिनट बाद तक Exit Poll पर बैन है. 

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यह नियम पढ़ने के बाद आपके मन में कुछ सवाल आए होंगे, जैसे..

  • इस कानून की क्या जरूरत थी ? 
  • चुनाव आयोग Exit Poll के इतना खिलाफ क्यों है ?
  • भारत में Exit Poll पर बैन कब से है ? 

आइए इन सवालों के जवाब जानते हैं. यह जानते हैं कि आखिर चुनाव के दौरान Exit Poll का Exit क्यों हुआ. 

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1998 का चुनाव और Exit Poll पर चुनाव आयोग की गाइडलाइन 

साल 1998. दिल्ली में फरवरी की गुलाबी ठंड में चुनावी माहौल अचानक से गरमा गया था. कांग्रेस ने इंद्र कुमार गुजराल के नेतृत्व वाली यूनाइटेड फ्रंट की सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद भारत में आम चुनाव की घोषणा हुई. इन चुनावों में राजनीतिक उलटफेरों से हटकर एक और दिलचस्प बात की चर्चा हुई. दरअसल चुनाव आयोग ने Exit Poll को लेकर सख्त रवैया अपना लिया था. चुनाव आयोग ने अनुच्छेद 324 के तहत 1998 के चुनाव में अखबार या टीवी चैनल पर 14 फरवरी से 7 मार्च तक Exit Poll प्रसारित करने पर रोक लगा दी. उससे पहले चरण से आखिरी चरण तक किसी भी तरह का Exit Poll करने पर रोक लगा दिया. इसके साथ यह भी निर्देश दिए गए कि जब कोई अखबार या टीवी चैनल Exit Poll चलाएगा तब उस पोल से जुड़ी जरूरी जानकारियां दर्शकों या पाठकों को देनी होंगी.   

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चुनाव आयोग और मीडिया का पक्ष 

चुनाव आयोग के इन दिशा-निर्देशों को भारतीय मीडिया ने जमकर विरोध किया. मीडिया का कहना था की चुनाव आयोग द्वारा लगाया गया यह बैन अनुच्छेद 19.1 (अ) का उल्लंघन है, जो भारत में बोलने की आजादी को सुनिश्चित करता है. चुनाव आयोग और मीडिया के बीच का यह संघर्ष सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. फ्रंटलाइन पत्रिका के एडिटर एन राम ने एक याचिका दाखिल की. इस मामले में दोनों पक्षों ने तीन जजों के पीठ के के सामने अपनी बात रखी. पीठ का नेतृत्व सीजेआई मदन मोहन पुंछी कर रहे थे. 

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मीडिया का कहना था कि आम नागरिक के तौर पर हमे चुनाव के संबंधित अन्य लोगों और राजनेताओं का मत जानने का हक है. कोर्ट में वकील अनिल धवन ने कहा कि यह गाइडलाइन अनुच्छेद 19.1 का उल्लंघन करती है.

धवन ने सवाल उठाए कि क्या चुनाव आयोग अनुच्छेद 19.1(ब) के तहत यह बैन लगा सकता है और क्या यह बैन तब भी सही माना जाएगा अगर भारतीय मीडिया किसी बाहरी देश के मीडिया संस्थान द्वारा किए गए Exit Poll को अपने माध्यम से प्रसारित करती है. चुनाव नजदीक था इसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई चुनाव खत्म होने के बाद फिर शुरू करने का फैसला किया. 

सुप्रीम कोर्ट की फटकार  

साल 1999 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की Exit और Opinion पोल के खिलाफ दायर की गई दो याचिकाओं पर सुनवाई की. पांच न्यायाधीशों के संवैधानिक बेंच ने कहा कि चुनाव आयोग को अनुच्छेद 324 के तहत ऐसी गाइडलाइन बनाने का कोई अधिकार नहीं है.

इससे चुनाव आयोग की स्थिति बड़ी असहज हो गई. चुनाव आयोग को अपनी गाइडलाइन वापस लेनी पड़ी और मीडिया ने इसे भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की जीत बताया. 

Exit Poll पर पाबंदी के लिए कानून में संशोधन

इसके बाद 2004 के चुनाव में Exit और Opinion पोल पर बैन के लिए आयोग ने कानून मंत्रालय की शरण ली. छह राष्ट्रीय और 18 क्षेत्रीय दलों के समर्थन से चुनाव आयोग ने यह मांग रखी कि प्रतिनिधित्व अधिनियम कानून में धारा 126 (अ) में संशोधन किया जाए. इसके बाद 2010 में चुनाव की घोषणा के बाद और अंतिम चरण का मतदान खत्म होने से पहले तक Exit Poll पर पाबंदी लगा दी गई. इस साल भी चुनाव आयोग ने इस बारे में ट्विस्ट कर जानकारी दी थी.

हालांकि चुनाव आयोग इन पोल पर पूरी तरह से बैन चाहता है. साल 2013 में भी चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों से संपर्क कर इन पोल पर पूरी तरह से बैन लगाने के प्रयास किए.  चुनाव आयोग की मांग पर कानून मंत्रालय ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है. साल 2022 में तत्कालीन कानून मंत्री किरण रिजिजू ने इससे जुड़े सवाल पर कहा था कि ऐसे किसी भी प्रस्ताव पर अभी विचार नहीं हो रहा है. 

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