कांग्रेस ने शनिवार को दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम को पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी (आप) पर जनमत संग्रह करार दिया और कहा कि लोगों ने ‘‘छल और कपट'' की राजनीति को खारिज किया है. पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि दिल्ली में कांग्रेस को बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी, लेकिन उसका वोट प्रतिशत बढ़ा है तथा उसने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. उन्होंने उम्मीद जताई कि पांच साल बाद कांग्रेस दिल्ली की सत्ता में लौटेगी.
Congress Happy On Arvind Kejriwal Defeat: अरविंद केजरीवाल की दिल्ली से छुट्टी क्या हुई, हर कांग्रेस का नेता कुछ इसी तरह खुश नजर आने लगा है. ये भूलकर की कांग्रेस लगातार चौथी बार दिल्ली में एक भी सीट नहीं जीत पाई. उसका आंकड़ा जीरो का जीरो ही रहा. साथ ही 70 में से 67 सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई. वो भी तब, जब इस चुनाव में कांग्रेस ने अपने हर बड़े नेता को मैदान में उतारा और प्रचार करने खुद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और प्रियंका गांधी उतरे. हालांकि, बात सिर्फ दिल्ली तक ही सीमित नहीं है. 2004 में अमेठी से लोकसभा चुनाव जीतकर राहुल गांधी ने राजनीति में जोरदार एंट्री की. कांग्रेस की अगुवाई में लगातार दो बार यूपीए सरकार बनी और कई राज्यों में भी कांग्रेस बढ़ती गई. मगर साल 2011 के बाद हार का सिलसिला ऐसा शुरू हुआ कि गिने-चुने मौके पर ही कांग्रेस को जीत नसीब हुई.
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ऐसा नहीं है कि राहुल गांधी ने प्रयास नहीं किया. मगर कभी अपनों ने साथ नहीं दिया तो कभी जनता की नब्ज पकड़ने से चूक गए. बीजेपी के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों ने भी राहुल गांधी और कांग्रेस को कमजोर करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. पार्टी के अंदर भी राहुल गांधी को अपने फैसले मनवाने के लिए संघर्ष करना पड़ा. अभी हाल ही में हुए हरियाणा चुनाव में राहुल गांधी ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सलाह दी थी कि सपा और आम आदमी पार्टी को कुछ सीटें देकर गठबंधन में चुनाव लड़ें, लेकिन जीत मानकर चल रही कांग्रेस की हरियाणा टीम ने गठबंधन को टाल दिया और रिजल्ट हार. दिल्ली चुनाव में सहयोगी केजरीवाल ने कांग्रेस को खुद ही गठबंधन से बाहर कर दिया. नतीजा कांग्रेस को अकेले चुनाव लड़ना पड़ा और रिजल्ट आम आदमी पार्टी की हार. मतलब ये है कि राहुल गांधी अपनी पार्टी को भी उस ढंग से नहीं चला पा रहे, जैसा वो चाहते हैं और सहयोगी दल तो सहयोगी ठहरे. जहां फायदा देखते हैं कांग्रेस को साथ ले लेते हैं और देने की बात आती है तो उसे साइड कर देते हैं.
राहुल गांधी पर लगते हैं ये आरोप
इस सच्चाई के बावजूद क्या कांग्रेस और राहुल गांधी इस बात से इनकार कर सकते हैं कि लगातार चुनावों में मिल रही हार का एक बड़ा कारण पार्टी में मिस-मैनेजमेंट है. कांग्रेस छोड़कर गए कई बड़े नेताओं ने बताया कि राहुल गांधी मिलने का समय तक नहीं देते. हिमंता बिस्वा सरमा से लेकर संजय निरुपम ने राहुल गांधी के नेताओं के साथ व्यवहार से लेकर उनके आस-पास रहने वालों पर कई तरह के आरोप लगाए. राहुल गांधी पर ये भी आरोप लगते हैं कि चुनाव के दौरान तो वो नजर आते हैं, लेकिन उसके बाद गायब हो जाते हैं. अगर ये आरोप सच हैं तो राहुल गांधी को इस पर गंभीरता से विचार करना होगा और अगर गलत हैं तो भी उन्हें इस तरह के आरोपों को कमजोर करने के लिए ज्यादा से ज्यादा नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ वक्त बिताना होगा.
बार-बार बदलने से पार्टी को नुकसान?
इन सबसे भी ज्यादा कांग्रेस और राहुल गांधी को सबसे ज्यादा हार का सामना प्रमुख मुद्दों पर स्टैंड न लेने के कारण होता है. कांग्रेस पार्टी हर चुनाव में अलग तरह का स्टैंड लेती है और फिर उसे छोड़ देती है. पीएम मोदी ने भी आज बीजेपी मुख्यालय में इस बात का जिक्र किया. उन्होंने बगैर नाम लिए कहा कि कुछ लोग 2014 के बाद मंदिर जाने लगे थे. मगर जब एहसास हुआ कि इस मामले में बीजेपी को टक्कर नहीं दे सकते तो राह बदल ली. ये एक ऐसी बात है, जो कांग्रेस को सोचनी पड़ेगी. अगर वो किसी मुद्दे को उठाती है तो उसे उठाने से पहले उसे तय करना चाहिए कि क्या वो अगले 10-20-50 साल तक इस मुद्दे के पक्ष में खड़ी रह सकती है या नहीं. इसके लिए कांग्रेस ने एक कमेटी भी बनाई थी, लेकिन उसका कोई खास असर तो देखने को नहीं मिला.
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