पश्चिम बंगाल vs केंद्र विवाद : केंद्र ने ममता सरकार पर साधा निशाना, दी सूट खारिज करने की दलील 

जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने बंगाल सरकार की ओर से पेश वकील कपिल सिब्बल से कहा कि वो केंद्र के हलफनामे पर कोई जवाब या दस्तावेज दाखिल कर सकते हैं.

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जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने मामले की सुनवाई की.
नई दिल्ली:

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में हलफनामा दाखिल कर पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार पर रेलवे कोल घोटाला मामले में आरोपियों को बचाने का आरोप लगाया है. सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने कहा कि बंगाल सरकार का सूट कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के बराबर है, इसलिए इसे खारिज किया जाना चाहिए. केंद्र ने कहा कि कई राज्यों या अखिल भारतीय प्रभाव वाले अपराध की केंद्रीय एजेंसी द्वारा जांच से संघीय ढांचे को नुकसान नहीं पहुंचेगा.

दरअसल, पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा केंद्र के खिलाफ दाखिल मूल वाद ( ऑरिजिनल सूट) पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था. ममता सरकार ने इस याचिका में आरोप लगाया है कि पश्चिम बंगाल में सहमति वापस लेने के बावजूद सीबीआई FIR दर्ज करके शासन के संघीय ढांचे का उल्लंघन कर रही है . ममता सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत राज्य द्वारा दायर मूल मुकदमे पर जल्द सुनवाई की मांग भी की थी. 

मामले में अपने हलफनामे में केंद्र ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा सामान्य सहमति वापस लेने से CBI के लिए अपराधों की जांच में कोई बाधा नहीं है. केंद्र ने पूछा कि समझ में नहीं आ रहा कि राज्य सरकार ऐसी जांच के रास्ते में क्यों आ रही है? सुप्रीम कोर्ट 16 नवंबर को अब मामले में सुनवाई करेगा.

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जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने बंगाल सरकार की ओर से पेश वकील कपिल सिब्बल से कहा कि वो केंद्र के हलफनामे पर कोई जवाब या दस्तावेज दाखिल कर सकते हैं. कि केंद्र ने ये हलफनामा बंगाल सरकार के उस सूट पर दाखिल किया है, जिसमें केंद्र पर संघीय ढांचे का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है. पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा सामान्य सहमति वापस लेने के बावजूद सीबीआई ने मामले दर्ज किए हैं.

केंद्र सरकार ने कहा है कि सीबीआई राज्य सरकार से 6 मामलों में FIR दर्ज करने की इजाजत मांगी थी लेकिन राज्य सरकार ने इससे इनकार कर दिया और सीबीआई ने ये केस दर्ज नहीं किए. केंद्र सरकार ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत सूट पश्चिम बंगाल द्वारा एक गलत धारणा रखते हुए दायर किया गया है कि सामान्य सहमति को वापस लेने की शक्ति संपूर्ण है. 

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केंद्र ने कहा, "रेलवे क्षेत्रों' में किए गए अपराधों, या सीमा पार अंतरराष्ट्रीय अवैध व्यापार से संबंधित अपराधों, या प्रत्यक्ष प्रशासनिक के तहत कर्मचारियों से संबंधित अपराधों या बहु-राज्य प्रभाव वाले अपराधों की जांच करने के संबंध में केंद्र सरकार का नियंत्रण है. यह अप्रासंगिक है कि संबंधित राज्य सरकार ने अपनी सहमति दी है या नहीं क्योंकि संविधान और DPSE अधिनियम स्पष्ट रूप से सीबीआई को ऐसे मामले में जांच करने की शक्ति प्रदान करता है.

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सीबीआई सूची 1 (संघ सूची) में प्रविष्टियों से संबंधित सभी अपराधों की जांच करने की हकदार है. इसके अलावा, यह हमेशा बड़ी अदालतों के लिए चुनिंदा मामलों में ऐसी अनुमति देने के लिए खुला है जहां यह पाया जाता है कि राज्य पुलिस प्रभावी रूप से निष्पक्ष और सही जांच नहीं करेगी. केंद्रीय सूची 1 में प्रविष्टियों से संबंधित विषय वस्तु की जांच करने का अधिकार केवल केंद्रीय एजेंसियों के पास है, न कि राज्य पुलिस को भी है.

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केंद्र ने कहा कि अगर राज्य पुलिस सशस्त्र बलों, रेलवे, परमाणु ऊर्जा, रेलवे, उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क से संबंधित विषयों के संबंध में किए गए अपराधों की जांच नहीं कर सकती है, तो क्या राज्य यह तर्क दे सकता है कि केंद्रीय एजेंसियां ​​भी इसकी जांच नहीं कर सकती क्योंकि उस विशेष राज्य द्वारा सहमति सामान्य वापस ले ली गई है?

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