सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल सी. वी. आनंद बोस पर छेड़छाड़ का आरोप लगाने वाली महिला कर्मचारी की याचिका पर केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकार को नोटिस जारी किया है. इस मामले पर अब तीन हफ्ते बाद सुनवाई होगी. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों को संवैधानिक छूट प्रदान करने संबंधी मामले से निपटने में अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि से सहयोग करने को कहा है.
सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 361 के उन प्रावधानों की समीक्षा करने पर सहमत हो गया जो राज्यपालों को किसी भी तरह के आपराधिक मुकदमे से ‘‘पूर्ण छूट'' प्रदान करते हैं. शीर्ष अदालत ने यह आदेश पश्चिम बंगाल राजभवन में संविदा पर कार्यरत उस महिला कर्मचारी की याचिका पर दिया है, जिसने राज्यपाल सी वी आनंद बोस पर छेड़छाड़ करने और अधिकारियों द्वारा उसे गलत तरीके से बंधक बनाए रखने का आरोप लगाया है.
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ ने पश्चिम बंगाल राजभवन की महिला की याचिका पर पश्चिम बंगाल सरकार को भी नोटिस जारी किया और याचिकाकर्ता को केंद्र सरकार को भी पक्षकार बनाने की अनुमति दी. शीर्ष अदालत ने इस मामले से निपटने में अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से सहायता करने को कहा.
महिला का नाम न्यायिक रिकॉर्ड से हटा दिया गया है. महिला की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने सुनवाई की शुरुआत में कहा, ‘‘ऐसा नहीं हो सकता कि कोई जांच ही न हो. सबूत अभी एकत्र किए जाने चाहिए. राज्यपाल के पद छोड़ने तक इसे अनिश्चित काल के लिए टाला नहीं जा सकता.''
याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 361 के खंड दो के तहत राज्यपालों को दी गई छूट जांच पर रोक नहीं लगा सकती और वैसे भी, ऐसे मामलों की जांच में समय का बहुत महत्व है.
पीठ ने राज्य सरकार और अन्य को नोटिस जारी करते हुए अपने आदेश में कहा, ‘‘याचिका में संविधान के अनुच्छेद 361 के खंड (2) के तहत राज्यपाल को दिए गए संरक्षण के दायरे से संबंधित मुद्दा उठाया गया है.''
यह अनुच्छेद राष्ट्रपति और राज्यपालों के संरक्षण से संबंधित है और इसका खंड दो कहता है- ‘‘राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के कार्यकाल के दौरान किसी भी न्यायालय में उनके विरुद्ध कोई भी आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी या जारी नहीं रखी जाएगी.''
महिला याचिकाकर्ता ने राज्यपालों को आपराधिक अभियोजन से छूट प्रदान करने के संबंध में विशिष्ट दिशा-निर्देश तैयार करने के निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया है.
याचिका में कहा गया है, ‘‘इस अदालत को यह तय करना है कि क्या याचिकाकर्ता जैसी पीड़िता के पास राहत पाने का कोई उपाय नहीं है, जबकि एकमात्र विकल्प आरोपी के पद छोड़ने तक इंतजार करना है और सुनवाई के दौरान यह देरी अतार्किक होगी और पूरी प्रक्रिया महज दिखावा बनकर रह जाएगी, जिससे पीड़िता को कोई न्याय नहीं मिलेगा.''
याचिका में पश्चिम बंगाल पुलिस से मामले की जांच कराने, महिला व उसके परिवार को सुरक्षा मुहैया कराने तथा उसकी प्रतिष्ठा को हुए नुकसान के लिए सरकार से मुआवजा दिलाने का भी अनुरोध किया गया है. (भाषा इनपुट के साथ)