पहाड़ दरक रहे, जंगल डूब रहे... मानसून के इस हाहाकारी समय में कैसे होती है वन्यजीवों और जंगलों की सुरक्षा? जानें

मानसून सीजन में रिजर्व फॉरेस्ट में वन्यजीवों की सुरक्षा कैसे की जाती है? आईए जानते हैं कि मानसूनी सीजन में रिजर्व फॉरेस्ट की सुरक्षा कैसे होती है?

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मानसून के इस हाहाकारी मौसम में वन्यजीव और जंगल की कैसे होती है निगरानी, जानिए.
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  • मानसून सीजन में वन विभाग द्वारा ऑपरेशन मानसून के तहत वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए विशेष अभियान चलाए जाते हैं.
  • जंगलों में पैदल पेट्रोलिंग, ट्रेंड हाथियों पर सवारी, ऑल टेरेन व्हीकल और ड्रोन से निगरानी की जाती है.
  • उत्तराखंड में छह नेशनल पार्क, सात वाइल्ड लाइफ सेंचुरी, चार कंजर्वेशन रिजर्व और एक बायो स्फीयर रिजर्व हैं.
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Operation Monsoon: देशभर में मानसून की बारिश ने हर जगह तबाही मचा रखी है. पहाड़ से लेकर मैदान तक हर जगह मानसून की बारिश से हाहाकार मचा है, नदियां उफान पर है, पहाड़ दरक रहे हैं. लोग अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए घर-द्वार, गांव-कस्बा छोड़ कर सुरक्षित ठिकानों पर रह रहे हैं. लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि ज्यादातर इंसान तो उफनाती नदियों से बचकर निकल जाता है. लेकिन जानवरों का क्या होता होगा. मानसून सीजन में रिजर्व फॉरेस्ट में वन्यजीवों की सुरक्षा कैसे की जाती है? आईए जानते हैं कि मानसूनी सीजन में रिजर्व फॉरेस्ट की सुरक्षा कैसे होती है?

उत्तराखंड में वन विभाग की टीम चला रही ऑपरेशन मानसून

मानसून के सीजन में जानवरों की सुरक्षा का यह उदाहरण उत्तराखंड वन विभाग द्वारा चलाए जा रहे अभियान से जुड़ा है. कमोवेश दूसरे राज्यों में भी वन्यजीवों और जंगलों की सुरक्षा के लिए ऐसे ही अभियान चलाए जाते हैं. उत्तराखंड में इस समय वन्यजीवों को बचाने के लिए वन विभाग की टीम ऑपरेशन मानसून चला रहा है. जानिए इसके बारे में.

पैदल पेट्रोलिंग और ट्रेंड हाथियों पर जंगलों में सवारी

बरसात के दिनों में वन्यजीवों की सुरक्षा खासकर तस्करों से से करने के लिए वन विभाग ऑपरेशन मानसून के तहत काम करता है. इस ऑपरेशन मानसून में जंगलों में पैदल वनकर्मी में पेट्रोलिंग करते हैं. इसके अलावा कॉर्बेट में ट्रेंड हाथियों पर बैठकर भी जंगल की पेट्रोलिंग की जाती है.

ऑल टेरेन व्हीकल वाली गाड़ियों से भी पेट्रोलिंग

जंगलों में चलने के लिए ऑल टेरेन व्हीकल से भी कई जगह पर रिजर्व फॉरेस्ट के एरिया में पेट्रोलिंग की जाती है. वहीं ड्रोन और थर्मल कैमरे के अलावा अन्य प्रकार के कैमरे से भी जंगलों की सुरक्षा की जाती है. ताकि कोई भी वन्य तस्कर बरसात के मौसम का फायदा उठाकर वन्यजीवों का शिकार करने जंगल में ना पहुंच पाए.

पैदल गश्ती करते वन विभाग के कर्मी.

उत्तराखंड में कितने नेशनल पार्क और वाइल्ड लाइफ सेंचुरी

उत्तराखंड में 6 नेशनल पार्क, 7 वाइल्ड लाइफ सेंचुरी, 4 कंजर्वेशन रिजर्व और एक बायो स्फीयर रिजर्व है. यानी रिजर्व फॉरेस्ट का एरिया पहाड़ और मैदानी क्षेत्र में फैला हुआ है. इस लिहाज से खासकर मैदानी क्षेत्रों में पेट्रोलिंग करना बेहद कठिन हो जाता है क्योंकि जंगलों में मानसून में बरसा पानी बाढ़ की स्थिति ला देता है.

मानसून पर चौकियों पर राशन-पानी, दवा पहले ही की जाती स्टोर

यही वजह है कि कितने बड़े रिजर्व फॉरेस्ट में पेट्रोलिंग के लिए वन विभाग कई तरह से गश्त करता है. इसके अलावा मानसून सीजन में जंगलों में कई ऐसी चौकियां होती हैं, जहां पर हर दिन जाना-आसान नहीं होता. इसलिए पहले ही इन चौकियों में वन कर्मियों के लिए राशन पानी दवाइयां और अन्य उपयोगी वस्तुएं रख दी जाती है.

इसके अलावा कई बार जब सामान खत्म हो जाता है तो हाथियों के द्वारा जब नदियों में पानी ज्यादा होता है तो हाथियों पर वन विभाग के कर्मचारी खाने पीने का सामान पहुंचते हैं. यह सब हाथी पार्क प्रशासन के प्रशिक्षित हाथी होते हैं.

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उत्तराखंड वन विभाग के मुखिया ने बताया

उत्तराखंड वन विभाग के मुखिया IFS अधिकारी समीर सिन्हा ने बताया कि मानसून सीजन में कॉर्बेट टाइगर नेशनल पार्क, राजाजी टाइगर नेशनल पार्क और इसके अलावा अन्य वाइल्ड लाइफ सेंचुरी या फिर रिजर्व फॉरेस्ट सब जगह मानसून सीजन को लेकर पहले ही सभी तरह की तैयारी की जा चुकी थी.

इसमें फॉरेस्ट गार्ड पैदल पेट्रोलिंग करते हैं और पूरे एरिया में हर प्रकार से जांच करते हैं कि कोई भारी व्यक्ति या तस्कर इस क्षेत्र में जहां पर वन्य जीवों की संख्या ज्यादा है. वहां पर तो मौजूद नहीं है. इसके अलावा ड्रोन से सर्च किया जाता है कि जंगल में सुरक्षा किस तरह की है.

वन्यजीव पहले ही जंगल की ऊंचाई वाली जगहों पर चले जाते हैं

समीर सिन्हा बताते हैं कि मानसून सीजन में अक्सर वन्य जीव जंगल के कोर एरिया में चले जाते हैं. क्योंकि वन्य जीव का व्यवहार प्रकृति के अनुरूप ही होता है. जब जंगल में पानी ज्यादा हो जाता है या बाढ़ आ जाती है तो उस दौरान वन्य जीव जंगल के उन हिस्सों में चले जाते हैं जहां ऊंचाई होती है. इसके अलावा वन्य जीव जंगलों के मैदानी क्षेत्रों में या फिर नदी के किनारे वाले क्षेत्रों में नहीं रहते हैं.

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इस मौसम में पेट्रोलिंग सबसे टफः कॉर्बेट पार्क के निदेशक

कॉर्बेट टाइगर नेशनल पार्क के निदेशक साकेत बडोला ने बताया कि यह सीजन फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के लिए बेहद ही महत्वपूर्ण और अलर्ट रहने वाला सीजन है. क्योंकि इस समय जंगलों की अंदर जो सड़कें होती हैं, वह पानी या फिर बाढ़ की वजह से खराब हो जाते हैं, इसलिए पैदल ही पेट्रोलिंग करनी पड़ती है.

पैदल पेट्रोलिंग के लिए एक खास मोबाइल एप भी सक्रिय

कॉर्बेट टाइगर नेशनल पार्क के डायरेक्टर साकेत बडोला ने बताया कि पैदल पेट्रोलिंग के लिए उत्तराखंड वन विभाग ने एक मोबाइल एप्लीकेशन डेवलप किया है. इस एप्लीकेशन में फॉरेस्ट गार्ड को जिस जगह वह पेट्रोलिंग करना होता है और जितने किलोमीटर वह पेट्रोलिंग करता हुआ जंगल में जाता है. उसका पूरा एक मैप बनाता हुआ मोबाइल एप्लीकेशंस में डालता है ताकि यह निश्चित हो जाता है कि उनका फॉरेस्ट गार्ड कहां-कहां पेट्रोलिंग करता हुआ गया है.

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टेक्नोलॉजी और कैमरे का भी इस्तेमाल

कॉर्बेट के निदेशक साकेत बडोला ने यह भी बताया कि जंगल की सुरक्षा और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए टेक्नोलॉजी का भी पूरा प्रयोग किया जाता है. जिसमें ड्रोन कैमरे से सर्विलांस किया जाता है. जंगल में कई जगहों पर अलग-अलग प्रकार के कैमरे लगाए गए हैं. जिन से जंगल में वन्यजीवों की मूवमेंट इसके अलावा अन्य तरह की मूवमेंट पर भी पूरी नजर रखी जाती है.

कॉर्बेट नेशनल पार्क में 500 कर्मी कर रहे पेट्रोलिंग

कॉर्बेट टाइगर नेशनल पार्क के निदेशक साकेत बडोला बताते हैं कि कॉर्बेट टाइगर पार्क और कालागढ़ पार्क में कुल 500 से ज्यादा कर्मचारी मानसून सीजन में पैदल और अन्य तरीकों से पेट्रोलिंग करते हैं. औसतन महीने भर में यह सभी कर्मचारी 50 हजार किलोमीटर तक पैदल चलते हुए पेट्रोलिंग करते हैं.

वहीं इसी तरह राजाजी टाइगर नेशनल पार्क में भी करीबन ढ़ाई सौ से 300 वन कर्मी पेट्रोलिंग करते हैं और इन सबकी पेट्रोलिंग का मकसद सिर्फ एक होता है ताकि जंगलों में वन्यजीवों की सुरक्षा की जा सके.

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