राष्ट्रपति और राज्यपाल को राज्यों द्वारा भेजे विधेयकों पर फैसला लेने के समयसीमा का मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज अहम टिप्पणियां की. केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राष्ट्रपति और राज्यपालों को इस मामले में समय सीमा में बांधना शासन के विभिन्न अंगों के बीच कार्यक्षमता में असंतुलन के साथ ही संवैधानिक बाधा भी बढ़ाएगा. मेहता ने दलील दी कि लोकतांत्रिक महत्व के मूल मुद्दों जैसे कुछ गलत उदाहरण हो सकते हैं. ऐसा प्रश्न अदालत के सामने पहली बार आया है, इसलिए ये कोर्ट माननीय राष्ट्रपति को बेहतर सलाह दे पाएंगी. संविधान में संघीय संतुलन बनाए रखने की परिकल्पना की गई है. संविधान बनाते समय, संविधान निर्माता दूरदर्शी थे, उन्होंने संभावित दुरुपयोग की भी जांच की. प्रावधान इस प्रकार डिज़ाइन किए गए हैं कि वे संतुलन बनाए रखें. कई समस्याएं हो सकती हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें अंततः न्यायपालिका द्वारा ही हल किया जाना चाहिए. सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि पांच अनुच्छेदों के समग्र अध्ययन से राष्ट्रपति को सलाह देना संभव होगा. डॉ. आंबेडकर ने कहा था कि इसमें समय-सीमा हटा दी जाए और इसे जल्द से जल्द शब्द जोड़ा जाए. इसे उचित कारणों से हटाया गया, क्योंकि यह शक्ति सर्वोच्च संवैधानिक पद के लिए बनाई गई थी. प्रेसिडेंसियल रेफरेंस पर बुधवार को भी सुनवाई जारी रहेगी.
हम केवल कानून पर अपना दृष्टिकोण व्यक्त करेंगे - SC
पहले दिन की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने टिप्पणी की कि हम केवल कानून पर अपना दृष्टिकोण व्यक्त करेंगे, राज्यपाल मामले में दिए गए निर्णय पर नहीं. पहले के निर्णय को रद्द नहीं करेंगे. हम केवल कानून पर अपना दृष्टिकोण व्यक्त करेंगे, तमिलनाडु मामले में दिए गए निर्णय पर नहीं. हम सलाहकार क्षेत्राधिकार में हैं, हम अपीलीय क्षेत्राधिकार में नहीं हैं.जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, अनुच्छेद 143 के तहत, न्यायालय यह राय दे सकता है कि कोई विशेष निर्णय सही कानून नहीं बनाता है, लेकिन वह उस निर्णय को रद्द नहीं करेगा. मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने केरल और तमिलनाडु से पूछा कि राष्ट्रपति द्वारा इस न्यायालय से सलाह लेने में क्या गलत है? क्या आप गंभीरता से इसका विरोध कर रहे हैं? मौखिक टिप्पणी का मतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की पीठ उस पूर्व फैसले को रद्द नहीं करेगी जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए संदर्भ के आधार पर समय सीमा निर्धारित की गई थी और साथ ही केंद्र ने पुनर्विचार याचिका दायर नहीं की है और पीठ का कार्य राष्ट्रपति को सलाह देने तक ही सीमित है.
केवल परामर्श क्षेत्राधिकार में है- SC
पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि वह केवल परामर्श क्षेत्राधिकार में है और तमिलनाडु राज्यपाल मामले में दिए गए निर्णय पर अपील नहीं कर रही है, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए उनकी स्वीकृति के लिए प्रस्तुत विधेयकों पर कार्रवाई करने की समय-सीमा निर्धारित की गई थी. पीठ ने आश्चर्य व्यक्त किया कि अगर राष्ट्रपति स्वयं राष्ट्रपति संदर्भ के माध्यम से इस बारे में राय मांगती हैं कि क्या निश्चित समय-सीमाएं लागू की जा सकती हैं तो इसमें क्या गलत है? क्या राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति को उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए. पीठ ने यह सवाल तब उठाया जब तमिलनाडु और केरल का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने राष्ट्रपति के संदर्भ की स्वीकार्यता पर ही सवाल उठाया.
पीठ ने संदर्भ पर सुनवाई शुरू करते हुए वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल से पूछा कि जब माननीय राष्ट्रपति स्वयं संदर्भ मांग रही हैं तो समस्या क्या है... क्या आप वाकई इसका विरोध करने के लिए गंभीर हैं? वेणुगोपाल ने केरल राज्य का प्रतिनिधित्व किया. तमिलनाडु और केरल ने सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रपति के संदर्भ को खारिज करने का आग्रह किया और इसे "छिपी हुई अपील" और संवैधानिक शक्तियों का संभावित दुरुपयोग बताया. उन्होंने दावा किया कि केंद्र का संदर्भ पुनर्विचार या क्यूरेटिव याचिकाओं जैसी उचित कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार करने का एक प्रयास था.
जो सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को चुनौती देने के स्थापित तरीके हैं.