उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार से यह स्पष्ट करने के लिए कहा कि क्या इस साल जुलाई में किए गए कुछ संशोधनों के मद्देनजर आजीवन कारावास की सजा काट रहे दोषियों की समय से पहले रिहाई पर 2018 की उसकी नीति को पूर्व प्रभाव से लागू किया जा सकता है. उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार से कहा कि पहली नजर में उसका मानना है कि 2018 की नीति उन कैदियों पर लागू होनी चाहिए थी, जिन्होंने 20 से 25 वर्ष कारावास की सजा भुगत ली है और जिनके नाम पर विचार नहीं हुआ है. न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना की पीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया और दो हफ्ते में उससे जवाब मांगा.
पीठ ने कहा कि हालांकि 103 दोषियों ने अदालत का रूख किया है, लेकिन उनकी रिहाई से समाज पर पड़ने वाले प्रभाव को देखते हुए वह प्रत्येक मामले पर गौर नहीं करेगी. पीठ ने कहा, ‘‘प्रथम दृष्ट्या हमारा मानना है कि इन कैदियों पर 2018 की नीति के तहत विचार किया जाना चाहिए, क्योंकि उस वक्त उनके नामों पर विचार नहीं किया गया था.'' इसने कहा, ‘‘संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका के साथ केवल यही सवाल उठाया गया है कि एक अगस्त 2018 की नीति के तहत जिन नामों पर विचार नहीं किया गया था, वह नयी नीति में लागू होगा या नहीं.''
इसने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने एक अगस्त 2018 को एक नयी नीति लागू की थी जो गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती के अवसर पर आजीवन कारावास की सजा पाए कैदियों के समय पूर्व रिहाई से जुड़ी थी. इसने कहा कि 2018 की नीति में 28 जुलाई 2021 को संशोधन हुआ. पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘वर्तमान कार्यवाही का मुद्दा है कि क्या जिन कैदियों के मामलों में विचार किया जाना था और एक अगस्त 2018 की नीति के दौरान उन पर विचार नहीं हुआ, उन पर क्या 28 जुलाई 2021 की नीति लागू होगी.'' सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से पेश हुईं वरिष्ठ वकील गरिमा प्रसाद ने कहा कि इन कैदियों के मामलों में विचार नहीं हुआ है, क्योंकि 2018 की नीति के तहत उन्होंने समय पूर्व रिहाई के लिए आवेदन नहीं दिया.