दो साल पहले चीन से लौटे हजारों मेडिकल छात्रों का भविष्य अधर में

चीन से लौटे भारतीय छात्रों की दो साल से मेडिकल की पढ़ाई बिना प्रैक्टिकल सिर्फ ऑनलाइन चल रही, कोविड के समय चीन ने अंतरराष्ट्रीय छात्रों के वीजा रद्द कर दिए थे

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प्रतीकात्मक फोटो.
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  • चीन से लौटे 23,000 छात्रों में अधिकांश मेडिकल छात्र
  • बिना प्रैक्टिकल के मेडिकल की पढ़ाई संभव नहीं
  • तनाव से घिरे कई बच्चे मनोचिकित्सकों की ले रहे हैं मदद
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मुंबई:

यूक्रेन से लौटे हजारों मेडिकल छात्रों का ही नहीं, उनसे दो साल पहले चीन से लौटे हज़ारों मेडिकल छात्रों का भविष्य भी अधर में लटका है. कोविड के फैलाव में उनका वीज़ा चीन ने रद्द किया था, जो कि अब तक रद्द है. ये बच्चे दो साल से बिना प्रैक्टिकल के ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं. वे अब मदद के लिए सड़कों पर प्रोटेस्ट और ऑनलाइन मुहिम का सहारा ले रहे हैं. भारत के किसी भी निजी मेडिकल कॉलेज की तुलना में चीन में फीस एक-चौथाई है. सीट की कमी, ज्यादा फीस जैसी कुछ बातें उन्हें विदेश जाने पर मजबूर करती हैं.

उत्तराखंड के छात्र हर्ष भंडारी चीन की शामिन यूनिवर्सिटी में पढ़ते हैं. उन्होंने कहा कि ‘'सभी के प्रिय प्रधानमंत्री जी से यही आग्रह है कि कृपया चीनी अथॉरिटी से बात कीजिए. जिंगपिंग जी से बात कीजिए. अगर चीन हमें नहीं बुलाता है तो कृपया आप हमारे प्रैक्टिकल यहीं भारत में अरेंज करवा दीजिए. हम सभी आप से ही उम्मीद कर सकते हैं सर कि आप ही हमारी मदद कर सकते हैं. कई बच्चों ने लोन ले लेकर पढ़ा है. क्या करेंगे अब?''

कोविड के फैलाव के कारण चीन ने 2020 के फरवरी महीने से विदेशी छात्रों का वीजा रद्द कर दिया था. इस दौरान भारत लौटे करीब 23,000 बच्चों में सबसे बड़ी संख्या मेडिकल छात्रों की है. बीते दो सालों से वे बिना प्रैक्टिकल के ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं. चीन की शामिन यूनिवर्सिटी में फोर्थ ईयर के मेडिकल छात्र हर्ष भंडारी जैसे हज़ारों छात्र सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं. 

मुंबई की मेर्रयल, जयपुर के प्रज्ज्वल, चीन की निंगबो मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ते हैं. वे बताते हैं कि बिना प्रैक्टिकल ऑनलाइन मेडिकल पढ़ाई मुमकिन नहीं है. वहीं कुछ चीनी ऐप बंद होने से ऑनलाइन पढ़ाई में भी दिक्कत हो रही है. 

चीन की निंगबो मेडिकल यूनिवर्सिटी के चौथे वर्ष के छात्र प्रज्ज्वल शर्मा ने कहा कि ‘'हमारी फ़ील्ड मेडिसिन की फ़ील्ड है. हमें पेशेंट की लाइफ़ से डील करना है. लेकिन हम दो साल से ऑनलाइन क्लासेस कर रहे हैं, बिना प्रैक्टिकल के. साथ ही थियोरेटिकल क्लासेज़ जिन ऐप्स पर चल रहीं थीं उनमें से कुछ को भारत सरकार ने बैन किया है.''

थर्ड ईयर की छात्रा मेर्रयल ने कहा कि,‘'हम ऑनलाइन ढंग से नहीं पढ़ पा रहे हैं, माता पिता भी चिंतित हैं हमारे भविष्य को लेकर की क्या करें…''

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चीन की शंडोंग यूनिवर्सिटी की थर्ड ईयर की छात्रा रचिता ने कहा कि, ‘'सिंगापुर, मंगोलिया और पाकिस्तान के बच्चों को चीनी सरकार की ओर से जवाब अगर मिल सकता है तो हमें क्यों नहीं? हमारी सरकार से अपील है कि वह चीन से बात करे.''

तनाव से गुजर रहे कुछ बच्चे मनोचिकित्सकों का भी रुख कर रहे हैं. मनोचिकित्सक डॉ हरीश शेट्टी ने कहा कि, ‘'चीन से लौटे बच्चे तनाव में हैं. कुछ बच्चों की मैं काउंसलिंग कर रहा हूं. उम्मीद है सरकार से इन्हें मदद मिलेगी.''

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तमिलनाडु के समीर, हिमाचल के गुरजोत, दिल्ली के लोकेश मिश्रा, मुंबई की रचिता जैसे हजारों मेडिकल छात्र सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं. वे बीते साल सितम्बर में दिल्ली में चीनी दूतावास के सामने प्रदर्शन भी कर चुके हैं. ट्विटर पर मुहिम भी चल रही है. छात्रों में नाराज़गी बढ़ी है क्योंकि दूसरी ओर, सिंगापुर, मंगोलिया और पाकिस्तान की सरकार उनके देश के छात्रों को वापस भेजने की तैयारियां कर रही है. इस संबंध में उनकी सरकारों की चीन से वार्ता भी हुई है. पर भारत सरकार की ओर से बच्चों को कोई ठोस जानकारी अब तक हासिल नहीं हो पाई है.

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