- सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के कपूरथला में दो बच्चों समेत परिवार के चार सदस्यों की हत्या के मामले में आरोपी को सबूतों के अभाव में बरी किया है.
- अदालत ने जांच और गवाहों की गवाही में गंभीर विरोधाभास और खामियों को उजागर करते हुए अभियोजन पक्ष के मामले को अविश्वसनीय माना.
- निचली अदालत और हाईकोर्ट ने आरोपी को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों की कमी के कारण सजा को रद्द कर दिया.
अपने दो बच्चों समेत परिवार के चार सदस्यों की हत्या का दोषी बरी सुप्रीम कोर्ट से बरी हो गया. दोषी को सबूतों के अभाव में मौत की सजायाफ्ता को बरी किया. जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने पंजाब के कपूरथला में हुए हत्याकांड को लेकर ये फैसला सुनाया है.कोर्ट ने बड़े केसों में पुलिस और अदालतों की कार्रवाई पर भी कड़ी टिप्पणियां की.दरअसल, दो दिनों में मौत की सजा के दो दोषी बरी हुए. अदालत ने ये भी कहा कि जब मानव जीवन दांव पर लगा हो और उसकी कीमत खून की हो तो मामले को पूरी ईमानदारी से निपटाया जाना चाहिए. साथ ही ये भी कहा कि आपराधिक मुकदमों में सबूत के मानक को पूरी सख्ती से लागू किए जाने चाहिए.
कोई भी उस तबाही की व्यापकता की कल्पना कर सकता है- SC
जस्टिस नाथ ने फैसले की शुरुआत में कहा कि कोई भी उस तबाही की व्यापकता की कल्पना कर सकता है, जो एक शांत गांव में मची होगी, जहां एक सुबह एक परिवार के चार सदस्यों की मौत की खबर से जागता है, जिनमें दो बच्चे अभी पांच साल के भी नहीं हुए हैं और परिवार के दो अन्य सदस्य गंभीर रूप से घायल थे.. भयावहता को और बढ़ाते हुए, इस पूरी घटना का मुख्य संदिग्ध मृत बच्चों का पिता है. कम से कम कथित चश्मदीद गवाहों का बयान तो यही इशारा करता है. मामला कुछ ही समय में इतना सनसनीखेज हो जाता है कि स्थानीय अखबारों में सुर्खियां बन जाता है और जांच एजेंसियों पर अपराधी को पकड़ने का भारी दबाव होता है. कानूनी व्यवस्था का पतन तब स्पष्ट हो जाता है जब किसी पर दोष मढ़ने की इतनी जल्दबाजी एक घटिया जांच और खराब तरीके से चलाए गए मुकदमे का कारण बनती है.
नतीजा यह है कि अभियोजन पक्ष का मामला ढीला-ढाला है और उसमें हर जगह स्पष्ट खामियां हैं. फिर भी अदालतों का उत्साह ऐसे जघन्य अपराध में न्याय देने के लिए यह सुनिश्चित करता है कि आरोपी व्यक्ति को मौत की सज़ा मिले, भले ही उसके पास पर्याप्त सबूत न हों. यही वह दुख है, जो इस मामले में निहित है.
गवाही में गंभीर विरोधाभास और जांच में स्पष्ट खामियां- SC
पीठ ने फैसले में कहा कि प्रमुख गवाहों की गवाही में गंभीर विरोधाभास और जांच में स्पष्ट खामियों ने अभियोजन पक्ष के मामले को अविश्वसनीय बना दिया है. अदालत ने मामले की जांच के तरीके पर खेद व्यक्त करते हुए कहा, कानूनी व्यवस्था की विफलता तब स्पष्ट हो जाती है जब किसी पर दोष मढ़ने की इतनी जल्दबाजी एक घटिया जांच और खराब तरीके से चलाए गए ट्रायल की ओर ले जाती है. नतीजा यह हुआ कि अभियोजन पक्ष का मामला ढीला-ढाला है और उसमें हर जगह खामियां साफ दिखाई देती हैं. फिर भी अदालतों का इतने जघन्य अपराध में न्याय देने का उत्साह यह सुनिश्चित करता है कि आरोपी व्यक्ति बिना किसी पर्याप्त सबूत के ही मौत की सजा तक पहुंच जाए.
2013 में पंजाब में हुई एक घटना में दो बच्चों सहित एक ही परिवार के चार सदस्यों की हत्या कर दी गई थी और दो अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए थे. निचली अदालत ने आरोपी दोनों बच्चों के पिता - को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत चार मामलों में हत्या का दोषी पाया था और उसे आईपीसी की धारा 308 (गैर इरादतन हत्या का प्रयास) और 325 (स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुंचाना) के तहत भी दोषी ठहराया था. उसे मौत की सजा सुनाई गई थी और हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि और सजा की पुष्टि की थी.
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि दो प्रमुख गवाहों की गवाही में कई महत्वपूर्ण विरोधाभास थे. अदालत ने नोट किया कि अपराध स्थल पर गवाह की उपस्थिति संदिग्ध थी हालांकि FIR में कहा गया था कि वह घर के बाहर मौजूद था और उसने आरोपी को भागते हुए देखा था, लेकिन बाद में उसके बयान में नए विवरण सामने आए, जिनमें अज्ञात व्यक्तियों की मौजूदगी भी शामिल थी. एक और गवाह, जिसने प्रत्यक्षदर्शी होने का दावा किया था, ने इस बारे में असंगत विवरण दिए कि उसने हमला कब और कैसे देखा, जिसमें इस बात पर भी विरोधाभास था कि उसने घटना देखी थी या नहीं.
गवाह का बयान बेहद अस्थिर, हर मोड़ पर अलग-अलग- SC
अदालत ने कहा, ये विरोधाभासी विसंगतियां बताती हैं कि गवाह का बयान बेहद अस्थिर है, हर मोड़ पर अलग-अलग है और बिल्कुल भी विश्वसनीय नहीं है. अभियोजन पक्ष ने एक गवाह को 'नकली गवाह' के रूप में पेश किया था. एक घायल बाल गवाह की गवाही पर अदालत ने कहा कि यद्यपि घटनास्थल पर उसकी उपस्थिति संदेह में नहीं थी, फिर भी उसकी गवाही अभियुक्त को दोषी नहीं ठहराती. जिरह के दौरान गवाह ने स्वीकार किया कि वह हमले के दौरान सो रहा था और उसने यह नहीं देखा कि उस पर या अन्य लोगों पर किसने हमला किया.
फैसले में कहा गया कि इस मामले में इन गवाहों द्वारा अलग-अलग समय पर एक ही घटना के अलग-अलग संस्करण बताए हैं. बयानों को सुविधानुसार वापस लिया गया और फिर से तैयार किया गया, जिससे घटनाओं की श्रृंखला में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए. अदालतों ने जांच और साक्ष्यों की बरामदगी के तरीके पर भी चिंता व्यक्त की. इसने नोट किया कि कथित हत्या के हथियार और खून से सने कपड़ों की बरामदगी का समर्थन किसी भी स्वतंत्र गवाह ने नहीं किया था और यह खुलासा और बरामदगी घटना के दो महीने बाद हुई थी. इसने आगे कहा कि हथियार बाद में खो गया था और हथियार, आरोपी के कपड़ों के बीच कोई डीएनए या निर्णायक फोरेंसिक संबंध स्थापित नहीं हुआ था. अदालत ने कहा कि गवाहों के बयानों में गंभीर विरोधाभासों, अविश्वसनीय बरामदगी और जाँच में हुई चूकों के मद्देनज़र, आरोप संदेह से परे साबित नहीं हुआ.