आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में वोटर लिस्ट से लाखों नागरिकों के नाम कटने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि ये अहम मसला है, उसे हम सुनेंगे और हाल निकालेंगे. इस टिप्पणी के साथ पीठ ने सरकार व अन्य पक्षकारों को नोटिस जारी किया.
याचिकाकर्ता श्रीनिवास कोडाली ने अपनी याचिका में कहा है कि वोटर के रजिस्ट्रेशन और प्रोफाइलिंग के लिए निर्वाचन आयोग जिम्मेदार है, क्योंकि ये कार्य और अधिकार क्षेत्र उसी का है. इसके लिए आयोग आधार कार्ड के साथ वोटर आईडी लिंक करने और रिकॉर्ड रखने के लिए किसी अज्ञात सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करता है.
याचिका में कहा गया, निर्वाचन आयोग राज्य सरकारों को उस सॉफ्टवेयर तक पहुंच मुहैया कराता है, ताकि वो वोटर लिस्ट की प्रतियां छपवा सकें. आयोग ने इस पर निगरानी के लिए टीम भी बनाई है, लेकिन फिर भी राजनीतिक पार्टियां वोटर्स के प्रोफाइल और अपने हित के मुताबिक उनको निशाने पर रखती हैं. उनको चुनाव प्रक्रिया से दूर रखने का एक औजार बनाया जा रहा है. ये स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के दावों पर सवालिया निशान है. इस दावे में सेंधमारी या दखलंदाजी है.
याचिकाकर्ता ने कहा कि ये सब सिर्फ इसलिए संभव हो पा रहा है, क्योंकि इस बाबत कोई असरदार और कारगर कानून नहीं है. इसी वजह से मतदाता सूची का वेरिफिकेशन नहीं हो पाता. याचिका के मुताबिक तेलंगाना में 27 लाख और आंध्रप्रदेश में 19 लाख नाम वोटर लिस्ट से हटाए गए हैं.
सॉफ्टवेयर इंजीनियर श्रीनिवास कोडाली की याचिका में कहा गया है कि निर्वाचन आयोग ने फ़र्जी मतदाताओं की पहचान करने और वोटर लिस्ट में संशोधन के लिए जिस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया है, उसका तरीका पारदर्शी नहीं है. जिनके नाम लिस्ट से कटे है, उन्हें अपना पक्ष रखने का भी मौका भी नहीं दिया. यहां तक कि मतदाता होने की सभी शर्तें पूरी करने वाले इन वोटर्स को आयोग या अन्य किसी एजेंसी ने नाम कटने की सूचना तक नहीं दी, ताकि वो समुचित उपाय कर सकें.
सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों और चुनाव आयोग को नोटिस जारी करते हुए कहा कि ये गंभीर मसला है, हम इस पर सुनवाई करेंगे. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ के सामने याचिकाकर्ता कोडाली ने कहा कि ये जनहित तेलंगाना हाईकोर्ट के सामने भी लगाई थी, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया.