सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुरक्षित रखा फैसला

CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई में पांच वरिष्ठ जजों की संविधान पीठ ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा.  पीठ ने पक्षकारों से कहा कि जिनको कुछ जवाब देना है वो तीन दिनों में दो पेज की लिखित दलीलें दाखिल कर सकते हैं.

विज्ञापन
Read Time: 17 mins
सुप्रीम कोर्ट में 16 दिनों तक इस मामले में मैराथन सुनवाई हुई. (फाइल)
नई दिल्‍ली:

जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली 23 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हुई. सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलील पर फैसला सुरक्षित रखा है. इस मामले में 16 दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा गया है. सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का फैसला संवैधानिक है या नहीं.

CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई में पांच वरिष्ठ जजों की संविधान पीठ ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा.  पीठ ने पक्षकारों से कहा कि जिनको कुछ जवाब देना है वो तीन दिनों में दो पेज की लिखित दलीलें दाखिल कर सकते हैं. CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की संविधान पीठ ने सुनवाई की है.  

याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, दुष्यंत दवे, राजीव धवन, दिनेश द्विवेदी, गोपाल शंकरनारायण सहित 18 वकीलों ने दलीलें रखी, जबकि केंद्र और दूसरे पक्ष की ओर से AG आर वेंकटरमणी, SG तुषार मेहता, हरीश साल्वे, महेश जेठमलानी, मनिंदर सिंह, राकेश द्विवेदी ने दलीलें रखी. 

सरकार ने मुख्य तौर पर राज्य के विभाजन और अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को शिथिल करने के लिए अपनाई गई संसदीय प्रक्रिया को पूरी तरह तर्क संगत और उचित बताया. केंद्र ने कहा कि राज्य की संविधान सभा के विघटन के साथ ही विधानसभा सृजित की गई, जब विधानसभा स्थगित हो तो राष्ट्रपति शासन के दौरान केंद्र को संसद की सम्मति से निर्णय लेने का अधिकार है. इसमें कोई ऐसी प्रक्रिया नहीं है, जो संविधान की मूल भावना के खिलाफ हो और केंद्र राज्य के बीच संघीय ढांचे का उल्लंघन करता हो. 

याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील थी कि केंद्र ने मनमानी करते हुए राज्य विधानसभा के विशेष अधिकार और यहां के विशिष्ट स्वरूप यानी संविधान की अनदेखी की है. राज्य के बंटवारे से राज्य की जनता यानी उनके नुमाइंदों यानी विधानसभा की अनुमति या सम्मति लेनी जरूरी थी. केंद्र सरकार ने ऐसा ना करके केंद्र राज्य संबंधों के नजरिए से राज्य के अधिकारों का अतिक्रमण किया है. चार सालों से जम्मू कश्मीर के लोग अपने चुने हुए नुमाइंदों की विधानसभा से और लोकसभा में अपनी नुमाइंदगी से वंचित हैं. ये लोकतंत्र का गला घोंटने जैसा है. 

16 दिनों में सुप्रीम कोर्ट ने भी कई टिप्पणियां की जिनमें केंद्र से पूछा गया कि उसने किस कानून के तहत ये कदम उठाया? राज्य का बंटवारा मनमाने ढंग से करने के आरोपों पर उसका क्या कहना है? इसकी शक्ति उसे किस कानून से मिली? सरकार जम्मू कश्मीर को उसका पूर्ण राज्य का दर्जा कब मिलेगा और सरकार वहां चुनाव कब कराएगी? जम्मू- कश्मीर को लेकर केंद्र का रोडमैप क्या है ? 

Advertisement

इस पर सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि लद्दाख स्थाई रूप से केंद्र शासित प्रदेश रहेगा. वहां चुनाव हो रहे हैं. जम्मू कश्मीर में मतदाता सूची अपडेट हो रही है. हम तो तैयार हैं. अब आगे चुनाव कार्यक्रम तो निर्वाचन आयोग को ही तय करना है. जम्मू- कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा कब मिलेगा, समय सीमा नहीं बता सकते. 

ये भी पढ़ें :

* राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता बहाली को सुप्रीम कोर्ट में दी गई चुनौती
* "सनातन पर संग्राम" : उदयनिधि स्टालिन की टिप्पणी को लेकर पूर्व जजों और नौकरशाहों ने SC को लिखा खत
* अकबर लोन का 'पाकिस्तान समर्थित' नारे लगाने का मामला: पांच जजों की संविधान पीठ कर रही सुनवाई

Advertisement
Featured Video Of The Day
RSS Chief Mohan Bhagwat और BJP के अलग-अलग बयानों की पीछे की Politics क्या है?