फिर तो चुनी गई सरकार राज्यपाल की मर्जी पर निर्भर होगी... सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्यपाल का पद विवेकाधीन शक्तियों के बिना एक पोस्टमैन बनकर रह जाएगा. राज्यपाल पोस्टमैन नहीं हैं. ⁠वह भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं.

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  • राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधेयकों पर फैसला लेने के लिए समय सीमा तय की जा सकती है?
  • सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि राज्यपाल केवल पोस्टमैन नहीं हैं, वे भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं.
  • न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल की शक्तियों की न्यायिक समीक्षा जरूरी है ताकि विधायी प्रक्रिया में संतुलन बना रहे.
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राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधेयकों पर फैसला लेने के लिए समय सीमा तय की जा सकती है? सुप्रीम कोर्ट ने इस पर टिप्पणी की कि कोई भी विधेयक राज्य विधानसभा द्वारा दोबारा पारित करके राज्यपाल को भेजने जाने की स्थिति में वह उसे दोबारा विचार के लिए राष्ट्रपति को नहीं भेज सकते. अदालत ने विधेयकों को मंजूरी देने के संबंध में राज्यपाल की शक्तियों पर केंद्र से सवाल करते हुए ये टिप्पणी की.

तो क्या निर्वाचित सरकारें राज्यपालों की मनमानी पर निर्भर नहीं होंगी- SC

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने  एसजी तुषार मेहता से कहा- आप संविधान सभा की बहसों का हवाला दे रहे हैं, लेकिन देखिए कि उनकी अपेक्षाएं पूरी हुईं या नहीं. उन्होंने दो सत्ता केंद्रों की कल्पना की थी. एक मुख्यमंत्री और एक राज्यपाल. क्या हम उस परिकल्पना पर खरे उतरे हैं? यह राज्यपाल और राज्य के बीच सामंजस्य की आवश्यकता की बात करता है. अब हमें इस बात पर विचार करना होगा कि कैसे कुछ माननीय राज्यपालों ने अपने विवेकाधिकार का प्रयोग किया है, जिसके कारण इतने सारे मुकदमे हुए हैं. यदि विधेयकों को विधानसभा में वापस भेजे बिना रोका जा सकता है तो क्या निर्वाचित सरकारें राज्यपालों की मनमानी पर निर्भर नहीं होंगी? यह सवाल आज विधेयकों को स्वीकृति देने से संबंधित प्रश्नों पर राष्ट्रपति के संदर्भ की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा.

संविधान के अनुसार राज्यपाल के पास 4 विकल्प

भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर की पीठ भारत के सॉलिसिटर जनरल की दलीलें सुन रही थी. इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 200 के अनुसार, राज्यपाल के पास चार विकल्प हैं-  स्वीकृति प्रदान करें, स्वीकृति रोक लें, विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखें, या विधेयक को विधानसभा को लौटा दें. सॉलिसिटर जनरल ने दलील दी कि यदि राज्यपाल कहते हैं कि वह स्वीकृति रोक रहे हैं तो इसका अर्थ है कि "विधेयक समाप्त हो गया है."

'तो क्या वे बिल को हमेशा के लिए रोके रखेंगे'

सॉलिसिटर जनरल के अनुसार, यदि स्वीकृति रोक ली गई है तो राज्यपाल को विधेयक को पुनर्विचार के लिए विधानसभा को लौटाने की आवश्यकता नहीं है. CJI गवई ने तब पूछा कि अगर ऐसी शक्ति को मान्यता दी जाती है तो क्या यह राज्यपाल को विधेयक को अनिश्चित काल तक रोके रखने का अधिकार नहीं देगी? आपके अनुसार, रोके रखने का मतलब है कि विधेयक पारित नहीं हो पाता, लेकिन फिर अगर वह पुनर्विचार के लिए दोबारा भेजने का विकल्प नहीं चुनते हैं तो वह इसे हमेशा के लिए रोके रखेंगे.  एसजी ने कहा कि संविधान ने ही राज्यपाल को यह विवेकाधिकार दिया है. सीजेआई ने कहा- तो क्या हम राज्यपाल को अपीलों पर सुनवाई करने का पूरा अधिकार नहीं दे रहे हैं? बहुमत से चुनी गई सरकार राज्यपाल की मर्जी पर निर्भर होगी.

राज्यपाल पोस्टमैन नहीं- तुषार मेहता

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्यपाल का पद विवेकाधीन शक्तियों के बिना एक पोस्टमैन बनकर रह जाएगा. राज्यपाल पोस्टमैन नहीं हैं. ⁠वह भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं. ⁠उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, जिन्हें राष्ट्र द्वारा अप्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से चुना जाता है. सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि अगर राज्यपाल विधेयकों को रोकने के लिए अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं कर सकते तो उनका पद केवल एक पोस्टमैन बनकर रह जाएगा. जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने कहा कि यहां न्यायिक समीक्षा महत्वपूर्ण हो जाती है. यह राज्यपाल की शक्तियों और विधायी प्रक्रिया के लिए भी प्रतिकूल हो जाती है.  पहले तो वह मना कर सकते हैं, लेकिन साथ ही यह भी कह सकते हैं कि इस हिस्से को संशोधित करें. जस्टिस सूर्यकांत कि अगर आप रोक रहे हैं तो कारणों की बात आती है. अगर आपने इसके लिए कारण बताए हैं  तो आज आप इसे असंवैधानिक बताकर रोक रहे हैं, लेकिन बाद में इसमें बदलाव करके इसे सुधारा जा सकता है 
 

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