वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में आज फिर सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिकता (Waqf Law Hearing In Supreme Court) को लेकर बुधवार को दूसरे दिन भी सुनवाई चल रही है. केंद्र सरकार की तरफ से इस वक्त सुप्रीम कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता अपनी दलीलें रख रहे हैं. सरकार की तरफ से SG मेहता ने कहा कि हमने 1923 से चली आ रही बुराई को खत्म की. हर हितधारक की बात सुनी गई. मेरा कहना है कि कुछ याचिकाकर्ता पूरे मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करने का दावा नहीं कर सकते. हमें 96 लाख प्रतिनिधित्व मिले. जेपीसी की 36 बैठकें हुईं. वक्फ पर इस वक्त सुप्रीम कोर्ट में सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनकर तुषार मेहता क्या दलीलें पेश कर रहे हैं, जानिए सुनवाई से जुड़ी हर एक बात-
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की अहम बातें
- SG तुषार मेहता- कई राज्य सरकारों से परामर्श किया गया वक्फ बोर्ड से परामर्श किया गया. जेपीसी ने हर खंड में दर्ज किया है कि वक्फ बोर्ड किस खंड से सहमत है या नहीं है. विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गई-कुछ सुझाव स्वीकार किए गए या स्वीकार नहीं किए गए. जब धाराओं में संशोधन के लिए सुझाव दिए गए, तो विधेयक को पेश किया गया और अभूतपूर्व बहुमत से पारित किया गया. मेहता ने कहा कि वक्फ, अपने स्वभाव से ही एक धर्मनिरपेक्ष अवधारणा है.
- SG तुषार मेहता- 1923 में कहा गया था कि वक्फ को वक्फ द्वारा बनाया जा सकता है 1955 में भी यही कहा गया था फिर नवंबर 2013 में चुनावों से ठीक पहले इसमें मुस्लिम को शामिल नहीं किया गया, लेकिन कोई भी व्यक्ति वक्फ बना सकता है, उसे मुस्लिम होना चाहिए. उसे 5 साल तक इस्लाम का पालन करना होगा और वह केवल अपनी संपत्ति पर ही वक्फ बना सकता है. किसी और की संपत्ति पर नहीं, ताकि निजी या सरकारी संपत्ति पर होने वाले खतरे को खत्म किया जा सके.
- CJI बीआर गवई- उनका तर्क है कि इस मामले में सरकार अपना दावा खुद तय करेगी
- SG तुषार मेहता- राजस्व अधिकारी तय करते हैं कि यह सरकारी ज़मीन है या नहीं.लेकिन यह सिर्फ़ राजस्व रिकॉर्ड के लिए है. वे टाइटल तय नहीं कर सकते. यह फाइनल नहीं है. अगर आपने खुद को वक्फ बाय यूजर के तौर पर रजिस्टर किया है तो यह दो अपवादों के साथ कह रहा है. विवाद का मतलब होगा कि किसी निजी पक्ष ने मुकदमा दायर किया हो कि यह मेरी संपत्ति है जिसे वक्फ घोषित किया गया है. अगर वक्फ संपत्ति के संबंध में निजी पक्ष के बीच कोई विवाद है तो यह सक्षम अदालत के फैसले द्वारा शासित होगा. हम वक्फ बाय यूजर से निपट रहे हैं. शुरुआती बिल में कहा गया था कि कलेक्टर फैसला लेंगे. आपत्ति यह थी कि कलेक्टर अपने मामले में खुद जज होंगे. इसलिए जेपीसी ने सुझाव दिया कि कलेक्टर के अलावा किसी और को नामित अधिकारी बनाया जाए.
- CJI बीआर गवई- इसका मतलब है कि कलेक्टर सिर्फ पेपर इंट्री होंगे.
- SG तुषार मेहता- हां हमने हलफनामे में भी कहा है कि अगर कोई सरकारी जमीन है तो सरकार मुकदमा दाखिल करेगी.
- CJI बीआर गवई- इसका मतलब है कि कलेक्टर सिर्फ पेपर इंट्री होंगे.
- SG तुषार मेहता- हां हमने हलफनामे में भी कहा है कि अगर कोई सरकारी जमीन है तो सरकार मुकदमा दाखिल करेगी. 3सी प्रावधान के तहत न्याय तक पहुँच से इनकार नहीं किया गया है. यह प्रभावित पक्ष के लिए “किसी भी स्तर पर” 83 के तहत वक्फ ट्रिब्यूनल से संपर्क करने के लिए खुला होगा. जो अंतिम टाइटल बनाएगा या हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट द्वारा में अपील होगी. राजस्व रिकॉर्ड को अपडेट करना केवल यह सुनिश्चित करता है कि अधिकारों के रिकॉर्ड को सही तरीके से बनाए रखा गया है.
- सुप्रीम कोर्ट- आपको पता होना चाहिए कि क्या हो रहा है, बोलने की आज़ादी का अधिकार है. लेकिन ड्यूटी कहां है. ऐसा लगता है कि पूरा देश पिछले 75 सालों से सिर्फ़ अधिकार बांट रहा है, कोई डयूटी की बात नहीं कर रहा. अली खान को सुप्रीम कोर्ट की नसीहत देते हुए पूछा कि क्या ये सस्ती लोकप्रियता पाने का समय है?
- CJI बीआर गवई- जो तस्वीर पेश की जा रही है, एक बार कलेक्टर ने पूरी कार्यवाही शुरू कर दी, तो यह वक्फ नहीं रह जाता और एक बार जांच पूरी हो जाने के बाद, संपत्ति को अपने कब्जे में ले लिया जाएगा.
- SG तुषार मेहता- वैधानिक प्रावधान हैं, अगर टाइटल निर्धारित नहीं होता है, तो हमें मुकदमा करना होगा.
- जस्टिस मसीह- आपके अनुसार जब तक सहारा नहीं लिया जाता, तब तक कब्ज़ा जारी रहता है?
- SG तुषार मेहता- हां, उनके दिखाने का इंतज़ार कर रहा था.
- CJI बीआर गवई- क्या आप इस अदालत में इसकी उम्मीद करते हैं?
- SG तुषार मेहता- तीन हाईकोर्ट से आए थे, इसलिए
- CJI बीआर गवई- यहां भी चुनिंदा रीडिंग हैं.
- CJI बीआर गवई- तो जब तक धारा 83 में दी गई ट्रिब्यूनल कार्यवाही तार्किक अंत तक नहीं पहुंच जाती, तब तक बेदखली नहीं होगी?
- SG तुषार मेहता- हां, कोई भी मुतवली व्यक्ति या 3सी के तहत आदेश से व्यथित कोई भी व्यक्ति अधिनियम में दिए समय के भीतर आवेदन कर सकता है.॥ कोई ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो यह देखे कि वक्फ घोषित की गई संपत्ति को वक्फ संपत्ति माना जा रहा है या नहीं.
- CJI बीआर गवई- क्या 1923 के कानून में पंजीकरण का भी प्रावधान था? सिब्बल ने तर्क दिया था कि पंजीकरण 1954 से हुआ था, 1923 से नहीं.
- SG तुषार मेहता- मैं सीधे धारा से पढ़ रहा हूं. एक अभियान चल रहा है कि 100 साल पुरानी संपत्ति हम कागज़ कहां से लाएंगे. मुझे बताइए कि कागज़ कभी ज़रूरी नहीं थे. यह एक कहानी बनाई जा रही है. अगर आप कहते हैं कि वक्फ 100 साल से पहले बना था तो आप सिर्फ़ पिछले 5 सालों के ही दस्तावेज़ पेश करेंगे. यह महज़ औपचारिकता नहीं थी. अधिनियम के साथ एक पवित्रता जुड़ी हुई थी. 1923 अधिनियम कहता है कि अगर आपके पास दस्तावेज़ हैं तो आप पेश करें, अन्यथा आप मूल के बारे में जो भी जानते हैं, पेश करें
- SG तुषार मेहता- कहते हैं कि 1923, 1954 और 1995 के अधिनियम में प्रावधान था कि कोई भी व्यक्ति पंजीकरण करा सकता है. किसी दस्तावेज की आवश्यकता नहीं थी. झूठी कहानी गढ़ी गई है कि उन्हें दस्तावेज उपलब्ध कराने होंगे या वक्फ पर सामूहिक रूप से कब्जा कर लिया जाएगा. खातों का विवरण हर साल दर्ज किया जाना था, इसके लिए 1923 में वैधानिक ऑडिट की आवश्यकता थी. याचिकाकर्ता ने कहा कि इसका कोई परिणाम नहीं था. यह अदालत के समक्ष था.
- CJI बीआर गवई- सिब्बल तकनीकी रूप से सही हैं, जो प्रावधान किया गया था वह एक ब्योरा देना था.
- SG तुषार मेहता- तकनीकी रूप से सही नहीं है, यह सिर्फ पंजीकरण से कहीं अधिक था, इसे अदालत में जाना था. उनके अनुसार, इसका परिणाम यह हुआ कि मुत्तवल्ली जारी नहीं रहेगा, दूसरा आएगा और उसे फिर से जुर्माना देना होगा. यह क़ानून को पढ़ने का एक बेतुका तरीका है.
- जस्टिस मसीह- किसी भी मामले में, यह प्रावधान नहीं है कि वक्फ वक्फ नहीं रह जाता.
- SG तुषार मेहता- 1923 अधिनियम को कलकत्ता हाईकोर्ट में चुनौती दी गई और उसे बरकरार रखा गया. 1954 अधिनियम, स्वतंत्रता के बाद पहला अधिनियम था. एक और परत जोड़ी गई क्योंकि वक्फ पंजीकृत नहीं था. सर्वेक्षण अवधारणा शुरू की गई. आप पंजीकरण करते हैं, यदि आप नहीं करते हैं, तो प्रारंभिक सर्वेक्षण होगा. पहले प्रशासन अदालत के पास था, अब यह बोर्ड के पास आ गया. वक्फ संशोधन अधिनियम के खिलाफ झूठी कहानी फैलाई जा रही है.
- सरकार 140 करोड़ नागरिकों की ओर से संपत्ति की संरक्षक है. राज्य की जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि सार्वजनिक संपत्ति का अवैध रूप से उपयोग न किया जाए. “झूठी कहानी गढ़ी जा रही है कि उन्हें दस्तावेज उपलब्ध कराने होंगे या वक्फ पर सामूहिक रूप से कब्जा कर लिया जाएगा.” वक्फ बाय यूजर एक मौलिक अधिकार नहीं है. इसे क़ानून द्वारा मान्यता दी गई थी. इस पर फैसला कहता है कि यदि अधिकार विधायी नीति के रूप में प्रदान किया जाता है, तो अधिकार हमेशा छीना जा सकता है,यही प्रस्ताव है.
- झूठी और काल्पनिक कहानी गढ़ी जा रही है कि उन्हें दस्तावेज उपलब्ध कराने होंगे या वक्फ पर सामूहिक कब्जा कर लिया जाएगा.
- वक्फ इस्लामिक सिद्धांत है इसमें कोई शक नहीं, लेकिन वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं.
- वक्फ एक इस्लामी अवधारणा है... लेकिन यह इस्लाम का एक अनिवार्य हिस्सा नहीं है. दान हर धर्म का हिस्सा है और यह क्रिश्चियन के लिए भी हो सकता है. हिंदुओं में दान की एक प्रणाली है. सिखों में भी यह मौजूद है. इस्लाम में वक्फ कुछ और नहीं बल्कि दान है.
- वक्फ बाय यूजर 1954 में विधायी नीति के रूप में पेश किया गया था.॥और अब इसे 2025 में वैधानिक नीति में बदलाव और उस शरारत के मद्देनजर हटा दिया गया है.
- अधिकतम दो मुस्लिम सदस्य देने से क्या इसका चरित्र बदल जाएगा? वक्फ बोर्ड धार्मिक चरित्र में शामिल नहीं है. हिंदू बंदोबस्ती में, कमिश्नर मंदिर के अंदर जा सकता है और पुजारी नियुक्त कर सकता है. लेकिन वक्फ बोर्ड किसी भी धार्मिक समारोह को नहीं छूता है.
- केंद्र ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को नकारा
- SG तुषार मेहता- वक्फ बोर्ड का काम पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष है, वक्फ बोर्ड वक्फ की किसी भी धार्मिक गतिविधि को नहीं छूता. जबकि हिंदू बंदोबस्ती मंदिर की हिंदू धार्मिक गतिविधियों में सीधे तौर पर शामिल है और यही अन्य धर्मों से मुख्य अंतर है.
ऐसा इसलिए है क्योंकि वक्फ का मतलब केवल संपत्ति का समर्पण है. वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अधिनियम का विरोध करते हुए इसे मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन बताया है. उन्होंने इसे अदालत में चुनौती दी है. केंद्र सरकार ने कोर्ट से अपील की है कि सुनवाई को तीन मुख्य मुद्दों तक सीमित रखा जाए, जबकि याचिकाकर्ता पूरी समीक्षा की मांग कर रहे हैं. अदालत में किन मुद्दों पर दलीलें दी जा रही हैं और कौन जज सुनवाई कर रहे हैं, जानिए.
पहले दिन सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ
वक्फ कानून पर कपिल सिब्बल की दलीलें पढ़िए
वक्फ अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट की 10 प्रमुख बातें
वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की दलीलें पढ़िए
किन 3 मुद्दों पर चल रहीं दलीलें
- अदालत द्वारा वक्फ, वक्फ बाई यूजर या वक्फ बाई डीड' घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने का अधिकार
- राज्य वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना से संबंधित है, जहां उनका तर्क है कि पदेन सदस्यों को छोड़कर केवल मुसलमानों को ही इसमें काम करना चाहिए.
- वक्फ कानून के उस प्रावधान पर, जिसमें कहा गया है कि जब कलेक्टर यह पता लगाने के लिए जांच करते हैं कि संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं, तो वक्फ संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा.
सुनवाई कर रही बेंच में कौन कौन?
- प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई
- न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह
वकील कौन-कौन?
- कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी- कानून की वैधता को चुनौती देने वालों की ओर से पक्ष रख रहे हैं.
- सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता- केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.
‘मजबूत और स्पष्ट' मामले की जरूरत
मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कानून के पक्ष में 'संवैधानिकता की अवधारणा' को रेखांकित करते हुए कहा कि वक्फ कानून को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं को अंतरिम राहत के लिए एक ‘मजबूत और स्पष्ट' मामले की जरूरत है.
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने तीन मुद्दों पर अंतरिम आदेश पारित करने के लिए वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की, जिसमें ‘अदालतों द्वारा वक्फ, उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ या विलेख द्वारा वक्फ' घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने का अधिकार शामिल है.
कपिल सिब्बल की दलील पर CJI ने क्या कहा
मामले की सुनवाई के दौरान जब वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कानून के खिलाफ अपना पक्ष रखना शुरू किया तो प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि प्रत्येक कानून के पक्ष में ‘संवैधानिकता की अवधारणा' होती है अंतरिम राहत के लिए आपको बहुत मजबूत और स्पष्ट मामला बनाना होगा, अन्यथा संवैधानिकता की अवधारणा बनी रहेगी.
सिब्बल ने इस कानून को ‘ऐतिहासिक कानूनी और संवैधानिक सिद्धांतों से पूर्णतः परे' तथा ‘गैर-न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से वक्फ पर कब्जा करने' का साधन बताया.
तुषार मेहता ने अदालत से क्या कहा?
केंद्र सरकार का पक्ष रखने के लिए पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से अनुरोध किया था कि याचिकाओं पर सुनवाई तीन मुद्दों तक सीमित रखी जाए. इनमें से एक मुद्दा यह है कि न्यायालय द्वारा वक्फ, उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ या विलेख द्वारा वक्फ घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने का अधिकार है.
धर्म में धर्मनिरपेक्ष प्रथाओं को नियंत्रित करने की शक्ति होती है
मेहता -धर्म में धर्मनिरपेक्ष प्रथाओं को नियंत्रित करने की शक्ति होती है. संपत्ति का प्रशासन कानून के अनुसार होना चाहिए.
- इस्लाम में वक्फ कुछ और नहीं बल्कि दान है.
- वक्फ में गैर मुस्लिम सदस्यों का होना समावेशी और पंथनिरपेक्ष स्वरूप बनाना है.
- मंदिरों की व्यवस्था मसलन पुजारियों की नियुक्ति, पूजा सेवा की सामग्रियों की खरीद और जांच के लिए सदस्य को मंदिर के भीतर जाना चीजों को छूकर देखना होता है.
- यहां वक्फ मामले में तो ये भी नहीं है,क्योंकि वक्फ बोर्ड और परिषद कोई धार्मिक गतिविधि नहीं करता.
- ये तो संपत्तियों का रिकॉर्ड कीपर है, जो आर्थिक हिसाब किताब, सुपरवाइजिंग, कानूनी मामले भी देखता है.
- वक्फ बोर्ड या परिषद में दो गैर मुस्लिम सदस्यों का होना इसे विस्तार देगा.
- इसमें तो शिया मत और पिछड़े लोगों को भी नुमाइंदगी दी गई है.
मेहता- कानून के मुताबिक बोर्ड में कुल 22 सदस्यों में अधिकतम चार गैर मुस्लिम हो सकते हैं. पदेन अध्यक्ष (अगर अल्पसंख्यक मंत्री गैर मुस्लिम हो), दो सदस्य और एक ज्वाइंट सेक्रेट्री गैर मुस्लिम हो सकते हैं.
तुषार मेहता- यहां तक कि मंत्री भी आम तौर पर मुस्लिम होते हैं और यहां तक कि संयुक्त सचिव भी मुस्लिम हो सकते हैं इसलिए केवल दो गैर मुस्लिम सदस्य हैं. वक्फ कुछ भी हो सकता है.
मेहता- ये कानून किसी भी धर्म की अनिवार्य प्रथा से डील नहीं करता
CJI : सज्जादानशीं मुतवल्ली हो सकते हैं?
एसजी मेहता : अगर उन्हें शक्ति सौंपी जाए तो
- वह पुजारी की तरह हैं
- अगर उन्हें मुतवल्ली नियुक्त किया जाए तो वह धार्मिक कर्तव्यों का पालन नहीं करेंगे बल्कि अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे
एसजी मेहता: ये हिंदुओं या ईसाइयों के लिए क्यों नहीं किया गया
-यह सिद्धांत रूप से गलत है
-जब हिंदू कोड बिल आया, तो व्यक्तिगत अधिकार छीन लिए गए
-कोई दलील नहीं दी गई क्योंकि मुसलमान अपने शरिया कानून द्वारा शासित थे
- इस तुलना की कोर्ट ने भी निंदा की है
मेहता: बॉम्बे और गुजरात में- बॉम्बे और गुजरात पब्लिक ट्रस्ट एक्ट- सभी मंदिर बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट एक्ट के तहत संचालित होते हैं.
- चैरिटी कमिश्नर मुस्लिम हो सकते हैं
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा- हिंदू धार्मिक बंदोबस्त केवल धार्मिक हैं.
- लेकिन मुस्लिम वक्फ में कई धर्मनिरपेक्ष संस्थाएं शामिल हैं, मसलन स्कूल मदरसे, अनाथालय, धर्मशालाएं आदि
- बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट एक्ट महाराष्ट्र में मंदिरों को नियंत्रित करता है
- इसका अध्यक्ष किसी भी धर्म का हो सकता है
- CJI ने पूछा कि महाराष्ट्र में चैरिटी कमिश्नर मुस्लिम थे
- लेकिन पब्लिक ट्रस्ट एक्ट के तहत सभी धार्मिक संपत्तियां नहीं आतीं
एसजी-महाराष्ट्र में सभी हिंदू और जैन मंदिर पब्लिक ट्रस्ट एक्ट के तहत संचालित होते हैं.
- चैरिटी कमिश्नर कोई गैर हिंदू भी हो सकता है
- इस प्रावधान (वक्फ बोर्ड के सदस्यों के संबंध में धारा-9) के कार्यान्वयन पर रोक लगाना बिना सुनवाई के याचिका को अनुमति देने के बराबर होगा.
- मेहता ने दलील दी कि एक वक्फ में दो कार्यालय होते हैं एक सज्जादानशीन का
- ये आध्यात्मिक प्रमुख होता है
- ये धार्मिक कार्य करता और संपन्न कराता है
- दूसरा मुतवल्ली का दफ्तर है यानी प्रशासक या प्रबंधक
- पहला तो इस वक्फ मामले का विषय ही नहीं है
- क्योंकि हमारा यानी इस कानून का धार्मिक और आध्यात्मिक अभ्यास से कोई संबंध नहीं है
- अधिनियम में केवल इतना उल्लेख है कि मुतवल्ली अपनी शक्तियां सज्जादानशीन को सौंप सकता है
- CJI ने पूछा कि क्या मुतवल्ली नियुक्त करने का अधिकार बोर्ड के पास है?
- एसजी ने जवाब दिया कि नहीं नहीं!
- यह शक्ति वक्फ के पास उपलब्ध है
- बोर्ड केवल राज्य स्तर पर एक पर्यवेक्षी निकाय है
- मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि तो फिर समस्या क्या है?
एसजी- उनका कहना है कि बोर्ड में गैर मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने से धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप होता है
-मुतवल्ली की नियुक्ति में बोर्ड की कोई भूमिका नहीं है.
-यह केवल मुतवल्ली के प्रशासनिक कार्यों की निगरानी करता है.
मेहता ने हिंदुओं से की तुलना
- किसी मठ के हिंदू महंत को राज्य बोर्ड द्वारा हटाया जा सकता है. यदि पाया जाए कि वह अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर रहा है.
- ऐसे में ये कहना गलत है कि सरकार धर्म में हस्तक्षेप कर रही है.
SG- वक्फ बोर्ड का वक्फ के वास्तविक कामकाज से कोई लेना-देना नहीं है.
- मुद्दा केवल यह है कि वक्फ बोर्ड में दो गैर मुस्लिम सदस्य हैं.
- बोर्ड में पहले से ही व्यापक मुस्लिम उपस्थिति है.
- बोर्ड अधिकतम किसी मुतवल्ली को हटा सकता है.
- यदि उसने कानून का उल्लंघन किया हो तो
- सरकार ने हिंदू मंदिरों में सभी धार्मिक पूजा और सेवा की तैयारी और संपन्न करने वाले अर्चकों को नियुक्त करने का अधिकार राज्य बोर्ड को दिया है.
- हमारा कहना है कि वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिम की नियुक्ति अनुच्छेद 25 का उल्लंघन नहीं होगी.
- जब 1956 में हिंदू कोड बिल आया तो हिंदुओं, ईसाइयों, सिखों, बौद्धों, जैनियों के व्यक्तिगत कानून अधिकार छीन लिए गए
- तब किसी ने यह नहीं कहा कि मुसलमान ही क्यों बचे रह गए अन्य क्यों नहीं बचे?
- SG ने दलील दी कि उदाहरण के लिए श्रीनाथजी मंदिर मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड के उस अधिकार को बरकरार रखा, जिसके तहत वह महंत को हटा सकता है, हालांकि वह निस्संदेह आध्यात्मिक प्रमुख है.
- लेकिन इस आधार पर उसे हटाया जा सकता कि वह अपने कार्यों का निर्वहन ठीक से नहीं कर रहा है .
- CJI ने कहा कि लेकिन आज हमारे सामने यह मुद्दा नहीं है.
- SG ने कहा कि मैं तो एक उदाहरण दे रहा हूं.
- इस मामले पर किसी बिंदु पर एक बड़ी बेंच द्वारा विचार किया जाना होगा
SG ने तमिलनाडु बंदोबस्ती अधिनियम का हवाला दिया जो बोर्ड को मठाधिपति को हटाने की भी अनुमति देता है.
- यदि यह पाया जाता है कि उसने अपने पद के सिद्धांतों और नियमों का उल्लंघन किया है.
और यहां हम यह तर्क दे रहे हैं कि क्या वक्फ बोर्ड में एक सूक्ष्म अल्पसंख्यक अनुच्छेद 25, 26 का उल्लंघन करेगा?
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि ये कानून स्टे नहीं करना चाहिए
मेहता - इसमें अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का कोई उल्लंघन नहीं हो सकता.
- यह संविधान का हिस्सा है
कोर्ट ने तुषार मेहता से पूछा कि क्या जेपीसी के सामने सेक्शन 3D रखा गया था? एसजी ने कहा कि हां इसे रखा जाना चाहिए और इसे रखा गया.
संसद के समक्ष शामिल विधेयक रखा गया और पारित किया गया.