COVID से मौत पर परिजनों को मुआवजा न मिलने से नाराज SC, बिहार और आंध्र प्रदेश के सचिवों को किया तलब

आंध्र प्रदेश और बिहार के मुख्य सचिवों को सुप्रीम कोर्ट ने तलब किया है और आज ही दो बजे पेश होने को कहा है. जस्टिस एमआर शाह ने कहा वे कानून से ऊपर नहीं हैं.

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आंध्र प्रदेश और बिहार के मुख्य सचिवों को सुप्रीम कोर्ट ने तलब किया है.

नई दिल्ली:

COVID की वजह से अपनों को खोने वालों की मदद के लिए 50 हजार रुपए मुआवजा देने के आदेश के बावजूद यह पैसा बिहार और आंध्र प्रदेश में परिजनों तक न पहुंचाने से सुप्रीम कोर्ट ने खासी नाराजगी जताई है. आंध्र प्रदेश और बिहार के मुख्य सचिवों को सुप्रीम कोर्ट ने तलब किया है और आज ही दो बजे पेश होने को कहा है. जस्टिस एमआर शाह ने कहा वे कानून से ऊपर नहीं हैं. मुख्य सचिव कारण बताएं कि उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए.

बिहार के डेटा पर सवाल उठाते हुए पीठ ने कहा कि इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता कि केवल 12,000 लोगों की मौत COVID के कारण हुई है. जस्टिस शाह ने कहा आप डेटा अपडेट भी नहीं करते. आपके अनुसार केवल 12,000 लोगों की मौत हुई है.​ हम वास्तविक तथ्य चाहते हैं. बिहार को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में हमारे पिछले आदेश के बाद मृतकों की संख्या बढ़ी है.

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पीठ ने बिहार के वकील से कहा अपने मुख्य सचिव को उपस्थित रहने के लिए कहिए. हम यह मानने को तैयार नहीं हैं कि बिहार में केवल 12000 लोगों की मौत हुई हैं. आंध्र प्रदेश सरकार पर नाराज होते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि आंध्र प्रदेश राज्य की ओर से कुल लापरवाही बरती गई है. 14471 मामलों के खिलाफ लगभग 36,000 दावे प्राप्त हुए थे. दुर्भाग्य से 31,000 आवेदन सही पाए गए हैं, लेकिन केवल 11,000 दावेदारों को भुगतान किया गया है.

ऐसा लगता है कि राज्य अदालत के आदेशों पर बिल्कुल भी गंभीर नहीं हैं. लोगों को भुगतान न करने का कोई औचित्य नहीं है. पात्र दावेदारों को भुगतान नहीं करना हमारे पिछले आदेश की अवज्ञा के समान होगा. जिसके लिए मुख्य सचिव उत्तरदायी हैं.

जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा राज्यों के डेटा में गंभीर विसंगति है. कई राज्यों में दर्ज की गई मौतें और आवेदनों की संख्या मेल नहीं खाती.  कुछ राज्यों में आवेदन बहुत अधिक हैं और कुछ में बहुत कम हैं. क्या इसका मतलब यह है कि लोगों को ऑनलाइन मुआवजे के फॉर्म नहीं मिल रहे हैं? क्या हमारे पास एक पैरालीगल स्वयंसेवी प्रणाली होनी चाहिए. गुजरात में 10,000 मौतें हुई हैं, लेकिन 91,000 मुआवजे के दावे हैं. अन्य राज्यों में यह बहुत कम है. ऐसा क्यों हो रहा है इसका कोई न कोई कारण रहा होगा. 

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उन्होंने पूछा, क्या यह जानकारी का अभाव है? क्या लोग दावा दायर करने में असमर्थ हैं?  पंजाब में भी 6000 मौतें, प्राप्त हुए दावे 4000 हैं. जस्टिस शाह ने कहा, प्राप्त आवेदन पंजीकृत मौतों से कम नहीं हो सकते.  ये ब्यौरा सरकार के पास पंजीकृत हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सबसे गरीब तबका है जिसे जानकारी नहीं मिल रही है. जो लोग पढ़-लिख सकते हैं और जिनके पास सोशल मीडिया है, उन्हें मुआवजे के दावों की जानकारी मिल जाएगी.

कोर्ट ने पंजाब, हिमाचल प्रदेश और झारखंड में भी ऐसी ही प्रवृत्ति देखी. पंजाब में मौत की संख्या 16567 बताई गई है, जबकि मुआवजा का दावा करने सिर्फ 8780 लोग ही आए.  हिमाचल में तीन हजार मौत के मुकाबले सिर्फ 650 दावेदार आए जबकि झारखंड मौत का आंकड़ा 5140 है और मुआवजे की अर्जी उनमें से सिर्फ 132 के परिजनों ने ही लगाई. 

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जस्टिस खन्ना ने कहा कि वैसे तो आधार कार्ड संबंधित व्यक्ति के मोबाइल फोन नंबर से कनेक्ट रहता है और मृत्यु प्रमाणपत्र आधार कार्ड से संलग्न रहता है. जब आपके पास संबंधित व्यक्ति के आधार के जरिए फोन नंबर भी है तो उस पर एसएमएस यानी शॉर्ट मैसेज भेज कर परिजनों को मुआवजा का क्लेम करने वाली स्कीम की बाबत बताते क्यों नहीं? राजस्थान ने बताया कि वहां सरकार ने इ कियोस्क का इंतजाम कर रखा है. उनके जरिए आम लोगों को मुआवजे की अर्जी दाखिल करने में मदद की जा रही है.

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