सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को शीर्ष अदालत और हाईकोर्टों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ एक याचिका को सूचीबद्ध करने पर विचार करने पर सहमत हो गया. कॉलेजियम प्रणाली न्यायाधीशों द्वारा ही न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रथा है. वकील मैथ्यूज जे नेदुमपारा ने याचिका की त्वरित सुनवाई के लिए प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष मामले का उल्लेख किया था.
मैथ्यूज ने शीर्ष अदालत के 2015 के फैसले का हवाला दिया, जिसने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम और संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014 को रद्द कर दिया था, जिसके बाद कॉलेजियम प्रणाली फिर से प्रभावी हो गई थी.
पीठ में न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला भी शामिल हैं. पीठ ने वकील को आश्वासन दिया कि वह याचिका पर विचार करने के बाद उनके अनुरोध पर विचार करेगी. याचिका में कहा गया है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली के परिणामस्वरूप हजारों पात्र, मेधावी और योग्य वकीलों को समान अवसर से वंचित कर दिया गया है.
केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रीजीजू ने पिछले महीने कहा था कि देश के लोग कॉलेजियम प्रणाली से खुश नहीं हैं और संविधान की भावना के अनुसार न्यायाधीशों की नियुक्ति करना सरकार का काम है.
भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित ने हालांकि 13 नवंबर को कहा था कि कॉलेजियम प्रणाली में कुछ भी गलत नहीं है. उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा' के साथ साक्षात्कार में कहा था, ‘‘कॉलेजियम प्रणाली यहां मौजूद रहेगी और यह एक स्थापित मानदंड है, जहां न्यायाधीश ही न्यायाधीश को चुनते हैं.''