सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी में मुसलमानों को दिए गए लगभग तीन दशक पुराने 4 प्रतिशत आरक्षण को रद्द करने के कर्नाटक सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई 9 मई तक के लिए स्थगित कर दी. सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर-जनरल, तुषार मेहता ने आश्वासन दिया कि फिलहाल नई नीति के आधार पर कोई भी भर्ती नहीं होगी. कर्नाटक में 10 मई को विधानसभा चुनाव होने हैं.
कर्नाटक में चार प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण कोटा खत्म करने के फैसले का राज्य सरकार ने बचाव किया है. फैसले के खिलाफ चुनौती देने वाली याचिकाओं का राज्य सरकार ने विरोध किया है. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कर्नाटक सरकार ने कहा- 'धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता. सिर्फ इसलिए कि ये फैसला चुनाव से पहले लिया गया, इससे ये साबित नहीं होता कि ये आरक्षण संवैधानिक और स्वीकार्य है.'
हलफनामे में राज्य सरकार ने तर्क दिया- 'अगर पहले से धर्म के आधार पर आरक्षण दिया गया है, तो इसका मतलब ये नहीं कि इस असंवैधानिक आरक्षण को जारी रखा जाए. याचिकाकर्ता को ये साबित करना चाहिए कि धर्म के आधार पर आरक्षण संवैधानिक है. ये याचिकाएं जुर्माने के साथ खारिज की जाए.'
राज्य सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई शुरू होने पर कहा कि वह दिन में जवाब दाखिल करेंगे. उन्होंने पीठ से कहा- 'मैं इसे आज दाखिल करूंगा लेकिन समस्या यह है कि मैं (सॉलिसिटर जनरल) व्यक्तिगत समस्या का सामना कर रहा हूं. मुझे समलैंगिक विवाह से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही संविधान पीठ के सामने भी दलील रखनी है. कृपया इस मामले को किसी और दिन के लिए सूचीबद्ध करें.'
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने मेहता की तरफ से स्थगन के अनुरोध का विरोध करते हुए कहा कि सुनवाई पहले ही 4 बार टाली जा चुकी है. मेहता ने कहा कि अदालत की तरफ से पारित अंतरिम आदेश पहले से ही याचिकाकर्ताओं के पक्ष में है.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 13 अप्रैल को कहा था कि सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में वोक्कालिगा और लिंगायत समुदायों के लिए आरक्षण में दो-दो प्रतिशत वृद्धि करने और ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) मुसलमानों के 4 प्रतिशत आरक्षण को खत्म करने का कर्नाटक सरकार का फैसला प्रथम दृष्टया 'त्रुटिपूर्ण' प्रतीत होता है.
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