सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून (Sedition Law) पर लगी रोक फिलहाल जारी रखी है. सोमवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र के सुनवाई टालने के आग्रह को माना. केंद्र ने अदालत में तर्क दिया कि संसद के शीतकालीन सत्र में इस मामले पर कुछ फैसला लिया जा सकता है. ऐसे में तब तक केंद्र को शीर्ष अदालत के राजद्रोह कानून पर रोक लगाने के आदेश का पालन करना होगा. इसके साथ ही जिन याचिकाओं में पहले नोटिस जारी नहीं हुआ, उनमें भी नोटिस जारी किया गया है. केंद्र 6 हफ्ते में इनका जवाब देगी. सुप्रीम कोर्ट अगले साल जनवरी के दूसरे हफ्ते में इस मामले पर दोबारा सुनवाई करेगा.
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124 A यानी राजद्रोह के खिलाफ याचिकाओं पर CJI यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच सुनवाई कर रही है. सुप्रीम कोर्ट ने मई में राजद्रोह कानून (Sedition Law on Hold) पर रोक लगा दी थी. कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को राजद्रोह कानून की आईपीसी की धारा 124ए के तहत कोई मामला दर्ज नहीं करने का आदेश दिया था. कोर्ट ने सरकार को आईपीसी की धारा 124ए के प्रावधानों पर समीक्षा की अनुमति भी दी है. हालांकि, अदालत ने कहा कि राजद्रोह कानून की समीक्षा होने तक सरकारें धारा 124A में कोई केस दर्ज न करे और न ही इसमें कोई जांच करें.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कि अगर राजद्रोह के मामले दर्ज किए जाते हैं, तो वे पक्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र हैं. अदालतों को ऐसे मामलों का तेजी से निपटारा करना होगा. सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में केंद्र सरकार की ओर से पक्ष रखा. तुषार मेहता ने कहा कि गंभीर अपराधों को दर्ज होने से नहीं रोका जा सकता है. प्रभाव को रोकना सही दृष्टिकोण नहीं हो सकता है. इसलिए, जांच के लिए एक जिम्मेदार अधिकारी होना चाहिए और उसकी संतुष्टि न्यायिक समीक्षा के अधीन है.
उन्होंने आगे कहा कि राजद्रोह के मामले दर्ज करने के लिए एसपी रैंक के अधिकारी को जिम्मेदार बनाया जा सकता है. इनमें कोई मनी लांड्रिंग से जुड़ा हो सकता है या फिर आतंकी से. लंबित मामले अदालत के सामने हैं. हमें अदालतों पर भरोसा करने की जरूरत है. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि संविधान पीठ द्वारा बरकरार रखे गए राजद्रोह के प्रावधानों पर रोक लगाने के लिए कोई आदेश पारित करना सही तरीका नहीं हो सकता है.
बता दें कि राजद्रोह से संबंधित दंडात्मक कानून के दुरुपयोग से चिंतित शीर्ष अदालत ने पिछले साल जुलाई में केंद्र सरकार से पूछा था कि वह उस प्रविधान को निरस्त क्यों नहीं कर रही, जिसे स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने और महात्मा गांधी जैसे लोगों को चुप कराने के लिए अंग्रेजों द्वारा इस्तेमाल किया गया. तब याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए अदालत ने प्रावधान के कथित दुरुपयोग का उल्लेख किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह एक औपनिवेशिक कानून है. यह स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए था. इसी कानून का इस्तेमाल अंग्रेजों ने महात्मा गांधी, तिलक आदि को चुप कराने के लिए किया था. क्या आजादी के 75 साल बाद भी यह जरूरी है?
इस पर केंद्र की ओर से AG आर वेकंटरमनी ने पक्ष रखा था. उन्होंने कहा था कि सरकार बदलाव पर विचार कर रही है. आईपीसी में संशोधन, सीआरपीसी मुद्दा जल्द ही संसद के समक्ष होगा. शीतकालीन सत्र में इस मुद्दे पर कुछ हो सकता है.
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