सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को मणिपुर विधानसभा (Manipur) के अध्यक्ष के भारतीय जनता पार्टी (BJP) में कथित दलबदल करने के लिए तीन विधानसभा सदस्यों (विधायकों) को अयोग्य ठहराने के आदेश को खारिज कर दिया. क्षत्रिमयम बीरेन सिंह, येंगखोम सुरचंद्र सिंह और सनसाम बीरा सिंह ने मणिपुर हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें स्पीकर के जून 2020 के अयोग्य घोषित करने के फैसले को बरकरार रखा गया था. न्यायमूर्ति यूयू ललित, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने याचिका पर फैसला सुनाते हुए स्पीकर को मामले पर नए सिरे से विचार करने को कहा है.
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मामले का निपटारा होने तक तीनों विधायक सदन के सदस्य बने रहेंगे. साथ ही अदालत ने अयोग्य ठहराने के लिए दायर याचिका को विधानसभा अध्यक्ष वाई खेमचंद सिंह के पास भेज दिया है, जो इसपर फिर से फैसला करेंगे. बता दें, तीन विधायकों क्षेत्रमयम बीरेन सिंह, येंगखोम सुरचंद्र सिंह और सनसाम बीरा सिंह ने 2 जून, 2021 को मणिपुर उच्च न्यायालय के पारित आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें स्पीकर के जून 2020 के फैसले को बरकरार रखा गया था. याद रहे तीनों विधायक 2017 में कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा के लिए चुने गए थे. हालांकि, उन्होंने कथित रूप से पार्टी की सदस्यता छोड़ कर राज्य की गठबंधन सरकार को मजबूत करने के उद्देश्य से सत्तारूढ़ भाजपा का समर्थन कर दिया था.
ये मामला जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया था. उस समय स्पीकर के समक्ष इन विधायकों को अयोग्यता घोषित करने के लिए याचिकाएं दायर की गईं. भाजपा के विभिन्न कार्यक्रमों में उनकी भागीदारी सहित उनके आचरण को इस बात के प्रमाण के रूप में दिखाया गया था कि वे भाजपा में शामिल हो गए. स्पीकर ने 18 जून, 2020 को अपने फैसले में उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया था.
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील रोहतगी ने कहा, "इस मामले में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं किया गया. मामला अखबारों की खबरों के आधार पर बना है.'' रोहतगी ने कहा कि यह कहा गया कि विधायक भाजपा पदाधिकारियों से मिल रहे थे. लेकिन विधायकों ने कुछ भी स्वीकार नहीं किया है."
उधर उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि अयोग्यता के मामलों के संबंध में दायर सभी दलीलों, समाचार पत्रों की रिपोर्ट और तस्वीरों और डीवीडी को ध्यान में रखते हुए अध्यक्ष ने अयोग्यता आदेश पारित किया था. उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि विधायकों ने ऐसी रिपोर्टों की प्रामाणिकता पर विवाद नहीं किया था.
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इस आधार पर उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि अध्यक्ष के आदेश भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची के प्रावधानों के अनुसार थे और इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं थी. इसके बाद तीनों विधायकों ने इस आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. शीर्ष अदालत के समक्ष पिछली सुनवाई के दौरान, वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया कि अध्यक्ष द्वारा पारित आदेश में प्रक्रियात्मक और वास्तविक अनियमितताएं थीं.
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