SI पेपर लीक मामले में राजस्थान सरकार की सुप्रीम कोर्ट में बड़ी जीत, गिरफ्तारी को सही ठहराया

सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के वकीलों से कहा, इन्होंने समाज में किस तरह का गंभीर अपराध किया है. इन लोगों ने लाखों प्रतिभाशाली लोगों की भावनाओं के साथ खेला है.

विज्ञापन
Read Time: 3 mins
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान SI  पेपर लीक मामले में गिरफ्तारी को सही ठहराया. SOG द्वारा अवैध गिरफ्तारी के आधार पर दाखिल जमानत याचिका खारिज की. यह समाज में पेपर लीक घोटालों जैसे गंभीर अपराधों के लिए एक मिसाल कायम करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने  राजस्थान SI पेपर लीक मामले में आरोपियों द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया. इस मामले की सुनवाई जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस पंकज मित्थल की पीठ ने की.

सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के वकीलों से कहा, इन्होंने समाज में किस तरह का गंभीर अपराध किया है. इन लोगों ने लाखों प्रतिभाशाली लोगों की भावनाओं के साथ खेला है.

याचिकाकर्ता  सुभाष बिश्नोई, राकेश, मनीष,   दिनेश बिश्नोई, सुरेंद्र कुमार बगड़िया,  माला राम  सब-इंस्पेक्टर/प्लाटून कमांडर भर्ती परीक्षा के दौरान बड़े पैमाने पर पेपर लीक में शामिल होने के आरोपी हैं. आरोप है कि उन्होंने पैसे देकर हल किए हुए प्रश्न पत्र प्राप्त किए. आरोपियों का कहना है कि  2 अप्रैल 2024 को एसओजी द्वारा अवैध रूप से गिरफ्तार किया गया था, लेकिन आधिकारिक रूप से 3 अप्रैल 2024 को गिरफ्तार दिखाया गया.

हालांकि, राज्य की ओर से एडिशनल एडवोकेट जनरल शिव मंगल शर्मा ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं ने यह मुद्दा केवल कानूनी परिणामों से बचने के लिए उठाया है -  वे आरोपपत्र में प्रस्तुत सामग्री का सामना नहीं करना चाहते और उनके पुलिस रिमांड के आदेश 4 और 8 अप्रैल को अंतिम रूप ले चुके हैं.

शिव मंगल शर्मा ने आगे दलील दी  कि याचिकाकर्ताओं को उनकी गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर कानूनी रूप से आवश्यक रूप से जयपुर के मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट (सीएमएम) के सामने पेश किया गया था, और CMM ने उनकी पहले की गिरफ्तारी के अस्पष्ट दावों को ठीक से विचार कर खारिज कर दिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने  सहमति जताई और पाया कि याचिकाकर्ताओं ने पहले अपनी गिरफ्तारी की वैधता को चुनौती नहीं दी थी और उनकी मौजूदा दलीलें केवल जांच से बचने का प्रयास थीं. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने नियमित जमानत के लिए आवेदन करने से परहेज किया था और इसके बजाय प्रक्रियात्मक तकनीकी कारणों पर ध्यान केंद्रित किया था, - जो उनके खिलाफ गंभीर आरोपों को कमजोर करने के लिए पर्याप्त नहीं था.

शिव मंगल शर्मा के अनुसार इस फैसले के साथ, याचिकाकर्ताओं को अब नियमित जमानत याचिका दायर करनी होगी और SOG द्वारा उनके खिलाफ एकत्र किए गए साक्ष्यों का सामना करना होगा. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने आपराधिक मामलों को उनके गुणों के आधार पर निपटाने के महत्व को रेखांकित किया है और न्याय में देरी के लिए प्रक्रियात्मक रक्षा तर्कों की अनुमति नहीं दी है. 

Featured Video Of The Day
Russia Ukraine War Explained: Trump की ताजपोशी से पहले क्यों मची होड़
Topics mentioned in this article