"प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट" के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दायर, मौलिक अधिकारों के हनन का आरोप 

इससे पहले भी कई याचिकाएं इस कानून को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हो चुकी हैं. जुलाई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर नोटिस जारी कर केंद्र से जवाब मांगा था. अपनी जनहित याचिका में उन्होंने प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट को खत्म किए जाने की मांग की है.

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नई दिल्ली:

1991 में लागू किए गए पूजा स्थल कानून यानी प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट (Places of Worship Act) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक और याचिका दाखिल हुई है. स्वामी जितेन्द्रनाथ सरस्वती की ओर से दाखिल इस अर्जी में कहा गया है कि 1192 से 1947 के बीच विदेशी हमलावरों ने हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध मत के सैकड़ों धार्मिक स्थलों को ध्वस्त किया था. इतिहास में इसका ब्योरा और प्रमाण सभी दर्ज हैं. 

याचिका में कहा गया कि ये कानून लोगों को ऐसी उन जगहों पर अपने आराध्य देवी देवताओं की सेवा-पूजा करने का अधिकार हासिल करने के लिए कोर्ट जाने से रोकता है. लिहाजा ये कानून नागरिक अधिकारों की रोशनी में अवैध है.

इससे पहले भी कई याचिकाएं इस कानून को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हो चुकी हैं. जुलाई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर नोटिस जारी कर केंद्र से जवाब मांगा था. अपनी जनहित याचिका में उन्होंने प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट को खत्म किए जाने की मांग की है, ताकि इतिहास की गलतियों को सुधारा जाए और अतीत में इस्लामी शासकों द्वारा अन्य धर्मों के जिन-जिन पूजा स्थलों और तीर्थ स्थलों का विध्वंस करके उन पर इस्लामिक ढांचे बना दिए गए, उसे वापस उन्हें सौंपा जा सके, जो उनके असली हकदार हैं.

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अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा है-

  • प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट 1991 के प्रावधान मनमाने और गैर संवैधानिक हैं.
  • उक्त प्रा‌वधान संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26 और 29 का उल्लंघन करता है.
  • संविधान के समानता का अधिकार, जीने का अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 दखल देता है.
  • केंद्र सरकार ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर ये कानून बनाया है.
  • पूजा पाठ और धार्मिक विषय राज्य का विषय है और केंद्र सरकार ने इस मामले में मनमाना कानून बनाया है. 

अधिवक्ता ने कहा, " भारत में मुस्लिम शासन 1192 में स्थापित हुआ, जब मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को पराजित कर दिया था. तब से 1947 तक भारत पर विदेशी शासन ही रहा. इसलिए अगर धार्मिक स्थलों के चरित्र को बरकरार रखने का कोई कट ऑफ डेट तय करना है तो वह 1192 होना चाहिए, जिसके बाद हजारों मंदिरों व हिंदुओं, बौद्धों और जैनों के तीर्थस्थलों का विध्वंस होता रहा. मुस्लिम शासकों ने उन्हें नुकसान पहुंचाया या उनका विध्वंस कर उन्हें मस्जिदों में तब्दील कर दिया.

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क्यों बनाया गया था प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट?
दरअसल, देश की तत्कालीन नरसिंम्हा राव सरकार ने 1991 में प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट यानी उपासना स्थल कानून बनाया था. कानून लाने का मकसद अयोध्या रामजन्मभूमि आंदोलन की बढ़ती तीव्रता और उग्रता को शांत करना था. सरकार ने कानून में यह प्रावधान कर दिया कि अयोध्या की बाबरी मस्जिद के सिवा देश की किसी भी अन्य जगह पर किसी भी पूजा स्थल पर दूसरे धर्म के लोगों के दावे को स्वीकार नहीं किया जाएगा.

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कानून में कहा गया कि देश की आजादी के दिन यानी 15 अगस्त, 1947 को कोई धार्मिक ढांचा या पूजा स्थल जहां, जिस रूप में भी था, उन पर दूसरे धर्म के लोग दावा नहीं कर पाएंगे. इस कानून से अयोध्या की बाबरी मस्जिद को अलग कर दिया गया या इसे अपवाद बना दिया गया, क्योंकि ये विवाद आजादी से पहले से अदालतों में विचाराधीन था. इस ऐक्ट में कहा गया है कि 15 अगस्त, 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस संप्रदाय का था वो आज और भविष्य में, भी उसी का रहेगा. हालांकि, अयोध्या विवाद को इससे बाहर रखा गया क्योंकि उस पर कानूनी विवाद पहले का चल रहा था.

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