संसदीय समिति ने जमीन मालिक को भूजल उपयोग में सक्षम बनाने वाले कानून में संशोधन करने को कहा

संसद के हाल में संपन्न शीतकालीन सत्र में पेश जल संसाधन संबंधी स्थायी समिति के पंद्रहवें प्रतिवेदन के लिए मांगों (2022-23) की सिफारिशों पर सरकार द्वारा की गई कार्रवाई संबंधी रिपोर्ट में यह बात कही गई.

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(प्रतीकात्मक तस्वीर)

संसद की एक समिति ने सरकार से 140 वर्ष पुराने उस कानून में संशोधन करने को कहा है जो जमीन के मालिक को अपनी संपत्ति के नीचे पानी पर पूर्ण नियंत्रण रखने और अपनी इच्छा के अनुसार भूजल का उपयोग करने में सक्षम बनाता है.

संसदीय समिति ने इस विषय पर सरकार के जवाब को अस्वीकार करते हुए कहा कि कोई भी जल संसाधनों का दोहन करने और प्रदूषित करने के लिए स्वतंत्र नहीं है तथा जल संसाधन विभाग को भारतीय सुखाचार अधिनियम 1882 में संशोधन करने के लिए ठोस प्रयास करना चाहिए.

संसद के हाल में संपन्न शीतकालीन सत्र में पेश जल संसाधन संबंधी स्थायी समिति के पंद्रहवें प्रतिवेदन के लिए मांगों (2022-23) की सिफारिशों पर सरकार द्वारा की गई कार्रवाई संबंधी रिपोर्ट में यह बात कही गई.

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद परबतभाई सवाभाई पटेल की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘यद्यपि भारत सरकार ने भूजल की स्थिति में सुधार के लिए कई कदम उठाए हैं लेकिन संस्थागत ढांचे में अभी भी कुछ अंतर है. इसमें एक अंतर भारतीय सुखाचार अधिनियम 1882 है जो भूजल नियंत्रण में एक रुकावट है.''

इसमें कहा गया है कि यह कानून जमीन के मलिकों को अपनी संपत्ति के नीचे के पानी पर पूर्ण नियंत्रण रखने में सक्षम बनाता है जिससे वे इसका अपनी मर्जी के अनुसार उपयोग कर सकते हैं.

ऐसे में संसदीय समिति ने पूर्व में जल संसाधन विभाग से भारतीय सुखाचार अधिनियम 1882 में संशोधन करने के लिए विधि और न्याय मंत्रालय के सहयोग से प्राथमिकता के आधार पर कदम उठाने का आग्रह किया था.

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इस पर विभाग ने अपने उत्तर में समिति को बताया कि सुखाचार अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन के संबंध में 25 अप्रैल 2022 को आयोजित बैठक में विधि एवं न्याय मंत्रालय ने सूचित किया कि भारतीय सुखाचार अधिनियम 1882 में संशोधन का विषय जल शक्ति मंत्रालय की जिम्मेदारी है और आवश्यकता होने पर वह संशोधन का प्रस्ताव कर सकता है.

रिपोर्ट के अनुसार, इस बैठक में भूजल प्रवाह के मौजूदा वैज्ञानिक ज्ञान और राष्ट्रीय जलभृत प्रबंधन परियोजना के माध्यम से प्राप्त आंकड़ों पर विचार करते हुए प्रश्न उठाया गया था कि भारतीय सुखाचार अधिनियम 1882 में संशोधन अपेक्षित होगा या नहीं.

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इसके मुताबिक, विचार मंथन सत्र के परिणाम से पता चला कि भारतीय सुखाचार अधिनियम 1882 की धारा 7 (बी) (जी) में संशोधन की जरूरत नहीं है और इसकी धारा 7 (बी) (जी) में एक संक्षिप्त स्पष्टीकरण जोड़ा जा सकता है.

इस स्पष्टीकरण में यह कहा जा सकता है कि भूजल एक निश्चित चैनल में बहता है, इसलिए भूमि के मालिक को अपनी जमीन के नीचे बहने वाले पानी का उपयोग जैसा उचित समझे, वैसा करने का कोई अधिकार नहीं है. हालांकि 7 (बी) (जे) में उल्लिखित मालिक का अधिकार वहीं रहता है.

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संसदीय समिति ने हालांकि कहा, ‘‘वह इस तर्क से सहमत नहीं है क्योंकि विधायी और संस्थागत ढांचा प्रदान करके भूजल टेबल के घटते स्तर की समस्या दूर करने के लिए प्रस्तावित उपायों के बारे में कुछ नहीं बताया गया.''

समिति का मानना है कि भूजल के उपयोग का अधिकार सृजित करने तथा जल संसाधनों के दोहन और प्रदूषण करने के लिए कोई स्वतंत्र नहीं है, ऐसे में सुखाचार अधिनियम में संशोधन की आवश्यकता है.

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गौरतलब है कि भूजल स्तर में दीर्घकालिक उतार-चढ़ाव के आकलन के उद्देश्य से केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यू) द्वारा नवंबर 2021 में किए गए विश्लेषण का परिणाम यह दर्शाता है कि 30 प्रतिशत कुओं में जल स्तर में गिरावट दर्ज की गई. जल स्तर के आंकड़ों के विश्लेषण से संकेत प्राप्त होता है कि 15 राज्यों के 41 जिलों में भूजल में प्रति वर्ष औसत गिरावट लगभग एक मीटर है.

केन्द्रीय भूजल बोर्ड के साल 2017 के अध्ययन के मुताबिक, देश में कुल 6,881 ब्लॉक/मंडलों में भूजल स्तर को लेकर कराए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि 1,186 ब्लॉक/मंडलों में भूमिगत जल का अत्यधिक दोहन किया गया है जबकि 313 ब्लॉक/मंडल भूजल की दृष्टि से गंभीर स्थिति में हैं.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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