"उतना अनुचित नहीं...", तलाक-ए-हसन के खिलाफ मुस्लिम महिलाओं की याचिका पर SC की टिप्पणी

पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा था कि पहली नजर में तलाक-ए-हसन उतना अनुचित नहीं लगता. इसमें महिलाओं के पास भी विकल्प होते हैं. हम नहीं चाहते कि ये किसी और वजह से एजेंडा बने.

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यह याचिका गाजियाबाद की पत्रकार बेनजीर हिना ने दायर की है.
नई दिल्ली:

तलाक-ए-हसन के खिलाफ मुस्लिम महिलाओं की याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. दो अलग-अलग पीड़ितों की याचिका पर SC ने दोनों के पति को पक्षकार बनाया और उन्हें नोटिस जारी किया. कोर्ट ने कहा कि हम तलाक-ए-हसन की संवैधानिक वैधता पर विचार करने से पहले याचिकाकर्ताओं को निजी तौर पर राहत देने पर विचार करेंगे. सुप्रीम कोर्ट में पीड़िता बेनजीर हिना निजी तौर पर पेश हुई.

जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि धर्म में यह व्यवस्था दी गई है. जैसे आपके पास खुला का विकल्प है, हम यह देखेंगे कि यह बड़ा मसला है या नहीं. लेकिन आपकी सहायता कैसे मिले, इसी के मद्देनजर हमने नोटिस किया है. सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता से पूछा कि आप साथ रहना चाहेंगी. पीड़िता ने कहा हां. 

पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा था कि पहली नजर में तलाक-ए-हसन उतना अनुचित नहीं लगता. इसमें महिलाओं के पास भी विकल्प होते हैं. हम नहीं चाहते कि ये किसी और वजह से एजेंडा बने. अदालत ने याचिकाकर्ता महिला से कहा कि वो ये बताए कि वो सहमति से तलाक के लिए तैयार है या नहीं? इस मामले को लेकर हाईकोर्ट गए या नहीं? क्या ऐसे और मामले भी लंबित हैं?

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वहीं, याचिकाकर्ता की ओर ये पेश पिंकी आनंद ने कहा था कि महिला का 18.5 महीने का बेटा है. सुप्रीम कोर्ट को याचिका पर सुनवाई करनी चाहिए. तीन तलाक मामले में कुछ सवाल छूट गए थे. याचिका में केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई है कि वह सभी के लिए लिंग तटस्थ धर्म, तलाक के तटस्थ समान आधार और तलाक की समान प्रक्रिया के लिए दिशानिर्देश तैयार करे.

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यह याचिका गाजियाबाद की पत्रकार बेनजीर हिना ने दायर की है. उन्होंने याचिका में आरोप लगाया है कि उनका पति और पति का परिवार उन्हें दहेज के लिए प्रताड़ित करता था. जब उन्होंने इनकार किया तो उसने एक वकील के माध्यम से उसे एकतरफा अतिरिक्त न्यायिक तलाक-ए-हसन दिया.

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बेनजीर हिना ने याचिका दाखिल कर तलाक-ए-हसन को एकतरफा, मनमाना और समानता के अधिकार के खिलाफ बताया है. याचिकाकर्ता के मुताबिक ये परंपरा इस्लाम के मौलिक सिद्धांत में शामिल नहीं है. याचिकाकर्ता की कोर्ट से गुहार है कि उसके ससुराल वालों ने निकाह के बाद दहेज के लिए उसे प्रताड़ित किया. दहेज की लगातार बढ़ती मांग पूरी न किए जाने पर उसे तलाक दे दिया. ये प्रथा सती प्रथा की तरह ही सामाजिक बुराई है. कोर्ट इसे खत्म कराने के लिए इसे गैरकानूनी घोषित करें, क्योंकि हजारों मुस्लिम महिलाएं इस कुप्रथा की वजह से पीड़ित होती हैं.

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जानें क्या है तलाक-ए-अहसन

इस्लाम में तलाक़ के तीन तरीके ज्यादा प्रचलन में थे. एक है तलाक़-ए-अहसन. इस्लाम की व्याख्या करने वालों के मुताबिक- तलाक़-ए-अहसन में शौहर बीवी को तब तलाक दे सकता है जब उसका मासिक धर्म चक्र न चल रहा हो (तूहरा की समयावधि). इसके बाद तकरीबन तीन महीने एकांतवास की अवधि यानी इद्दत के बाद चाहे तो वह तलाक वापस ले सकता है. यदि ऐसा नहीं होता तो इद्दत के बाद तलाक को स्थायी मान लिया जाता है, लेकिन इसके बाद भी यदि यह जोड़ा चाहे तो भविष्य में निकाह यानी शादी कर सकता है इसलिए इस तलाक़ को अहसन यानी सर्वश्रेष्ठ कहा जाता है.

जानें क्या है तलाक-ए-हसन

दूसरे प्रकार का तलाक़ है तलाक़-ए-हसन. इसकी प्रक्रिया भी तलाक़-ए-अहसन की तरह है,  लेकिन इसमें शौहर अपनी बीवी को तीन अलग-अलग बार तलाक कहता है वो भी तब जब बीवी का मासिक धर्म चक्र न चल रहा हो. यहां शौहर को अनुमति होती है कि वह इद्दत की समयावधि खत्म होने के पहले तलाक वापस ले सकता है, यह तलाकशुदा जोड़ा चाहे तो भविष्य में फिर से निकाह यानी शादी कर सकता है. इस प्रक्रिया में तीसरी बार तलाक़ कहने के तुरंत बाद वह अंतिम मान लिया जाता है. यानी तीसरा तलाक बोलने से पहले तक निकाह पूरी तरह खत्म नहीं होता.

तीसरा तलाक बोलने और तलाक पर मुहर लगने के बाद तलाक़शुदा जोड़ा फिर से शादी तब ही कर सकता है, जब बीवी इद्दत पूरी होने के बाद किसी दूसरे व्यक्ति से निकाह यानी शादी कर ले. इस प्रक्रिया को हलाला कहा जाता है. अगर पुराना जोड़ा फिर शादी करना चाहे तो बीवी नए शौहर से तलाक लेकर फिर इद्दत में एकांतवास करे, फिर वो पिछले शौहर से निकाह कर सकती है.

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