महिला आरक्षण कानून तत्काल लागू करना संभव नहीं, केंद्र ने SC में दाखिल किया हलफ़नामा

सरकरा ने कहा कि याचिका में उठाए गए कई मुद्दे योग्य नहीं हैं और इस वजह से सुप्रीम कोर्ट को याचिका को खारिज कर देना चाहिए और उचित आदेश जारी करना चाहिए.

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फाइल फोटो
नई दिल्ली:

महिला आरक्षण मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाबी हलफनामा दाखिल किया है. अपने इस हलफनामे में सरकार ने कहा है कि महिला आरक्षण कानून को तत्काल लागू नहीं किया जा सकता है. अपने इस हलफनामे में सरकार ने कहा है कि जनगणना और परीसीमन की प्रक्रिया को तय कानून और नियमों के तहत निभाया जाना जरूरी है और इस वजह से जया ठाकुर की याचिका सुनवाई योग्य नहीं है. सरकरा ने कहा कि याचिका में उठाए गए कई मुद्दे योग्य नहीं हैं और इस वजह से सुप्रीम कोर्ट को याचिका को खारिज कर देना चाहिए और उचित आदेश जारी करना चाहिए. 

हलफनामे में कहा गया है, केंद्र सरकार संसद, विस के साथ नगर स्थानीय निकायों में महिलाओं की भागीदारी समेत जीवन के हरेक क्षेत्र में महिला सशक्तीकरण और महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास के लिए हर संभव कदम उठाने के लिए प्रतिबद्ध है. सरकार की प्रतिबद्धता इस मसले पर भारत के संविधान के अनुरूप है. सरकार ने कहा कि महिला आरक्षण कानून बनाने में संविधान के मूलभूत ढांचे का उल्लंघन नहीं हुआ. अपने हलफनामे में सरकार ने कहा कि याचिका में निराधार आरोप लगाए गए हैं. 

बिना उचित प्रक्रिया महिला आरक्षण लागू करने की समय सीमा तय नहीं हो सकती

सरकार ने कहा कि याचिका में स्थापित नहीं किया जा सका कि 106वें संविधान संशोधन का कोई हिस्सा असंवैधानिक है या वह संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता है. सरकार ने कहा कि याचिका में महिलाओं के लिए राजनीतिक आरक्षण को तत्काल लागू करने की मांग की है, जबकि अन्य आरक्षण लागू करने पर कोई समय-सीमा प्रदान नहीं की गई हैं. सरकार ने कहा कि बिना उचित प्रक्रिया के महिलाओं के लिए राजनीतिक आरक्षण लागू करने के लिए समय-सीमा तय नहीं की जा सकती है.

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आखिरी बार 2010 में महिला आरक्षण बिल लाने की हुई थी कोशिश

महिलाएं पंचायत राज संस्थाओं और नगर निकायों में पर्याप्त रूप से भाग लेती हैं, लेकिन राज्य विस के साथ संसद में उनका प्रतिनिधित्व अभी भी सीमित है. राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं को उच्च प्रतिनिधित्व प्रदान करना भी लंबे समय से लंबित मांग रही है. लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिला आरक्षण लागू करने के लिए कई प्रयास किए गए हैं. आखिरी बार ऐसा प्रयास 2010 में किया गया था, जब राज्यसभा ने महिला आरक्षण के लिए एक विधेयक पारित किया था, लेकिन वह लोकसभा में पारित नहीं हो पाया था.

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क्या है महिला आरक्षण बिल

मौजूदा सरकार ने संवैधानिक संशोधन कर एक नया कानून पारित किया‌, जिसमें कुल सीटों में से लगभग एक-तिहाई सीटों का प्रावधान महिलाओं के लिए किया जाएगा. लोकसभा, प्रत्येक राज्य की विधानसभा और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा को महिलाओं के लिए आरक्षित किया जाएगा. सरकार ने कहा कि परिसीमन और जनगणना की प्रक्रिया हरेक वर्ग के व्यक्तियों के लिए आरक्षण के लिए सीटों की पहचान आंतरिक रूप से जुड़ी हुई है.

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यह अधिकारियों द्वारा वैज्ञानिक रूप से संचालित प्रक्रियाएं हैं और इनसे एक अलग पवित्रता जुड़ी हुई है. यह प्रक्रियाएं देश में राजनीतिक प्रक्रिया की जड़ तक जाती हैं और इन्हें कानून द्वारा प्रदान किए गए हैं, जिन्हें‌ सावधानीपूर्वक, उचित और गंभीर तरीके से किया जाना आवश्यक है.

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