पीड़ित के साथ नाइंसाफी की भरपाई के लिए किसी बेगुनाह को शिकार नहीं बनाया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

भियोजन का मामला यह था कि वो होली के मौके पर अपनी करीब छह साल की भतीजी को डांस और गाने की परफॉर्मेंस दिखाने के बहाने ले गया और उसके बाद रेप कर उसकी हत्या कर दी. मामला उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती का है.

विज्ञापन
Read Time: 24 mins
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने छह साल की बच्ची से रेप और हत्या मामले में मौत के सजायाफ्ता दोषी को बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा कि अपराध के शिकार व्यक्ति के साथ हुई नाइंसाफी की भरपाई के लिए अदालत किसी बेगुनाह को अन्याय का शिकार नहीं बना सकती. अदालत ने यह टिप्पणी करते हुए छह साल की बच्ची से रेप और हत्या के मामले में मौत की सजा पाए एक व्यक्ति को बरी कर दिया.

अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाहों द्वारा दिए गए बयानों में गंभीर विरोधाभास है. ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों ने इसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया. जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने ये फैसला किया है. आदेश में यह भी कहा कि आरोपी इतना गरीब है कि वह निचली अदालत में भी अपनी पैरवी के लिए एक वकील करने का खर्च उठाने की स्थिति में नहीं था. अदालत में कई बार अनुरोध के बाद उसे एक वकील की सेवा प्रदान की गई थी.

पीठ ने मामले की जांच ठीक से नहीं करने के लिए अभियोजन पक्ष की भी आलोचना की. पीठ ने कहा कि हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि यह छह साल की बच्ची के साथ रेप और हत्या का वीभत्स मामला है. अभियोजन पक्ष ने जांच ठीक से नहीं कर पीड़िता के परिवार के साथ नाइंसाफी की है. बिना किसी सबूत के अपीलकर्ता पर दोष तय किया गया. अभियोजन पक्ष ने अपीलकर्ता के साथ भी अन्याय किया है. अपराध के शिकार व्यक्ति के साथ हुए अन्याय की भरपाई के लिए न्यायालय किसी को अन्याय का शिकार नहीं बना सकता.

Advertisement

दरअसल अभियोजन का मामला यह था कि वो होली के मौके पर अपनी करीब छह साल की भतीजी को डांस और गाने की परफॉर्मेंस दिखाने के बहाने ले गया और उसके बाद रेप कर उसकी हत्या कर दी. मामला उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती का है. सत्र अदालत  ने उसे आईपीसी की धारा-302 और 376 के तहत दोषी ठहराया और मौत की सजा सुनाई थी.

Advertisement

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उसकी अपील को खारिज करते हुए मौत की सजा की पुष्टि की थी. जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. अदालत ने कहा कि आरोपी का शुरू से ही यह कहना था कि उसे एक शक्तिशाली व्यक्ति के इशारे पर फंसाया गया है, जिसकी पत्नी गांव की प्रधान है. रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि इसमें कई विरोधाभास थे. शव को पहले पुलिस द्वारा देखना, शव को ले जाने वाले स्थल के साथ-साथ जांच के आयोजन के स्थान, तिथि और समय के बारे में विरोधाभास थे.

Advertisement

अदालत ने यह भी कहा कि विशेष रूप से इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में क्षेत्राधिकार वाली अदालत में एफआईआर (FIR) भेजने में पांच दिनों की देरी घातक थी. अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष ने आरोपी की चिकित्सक से जांच कराने की भी परवाह नहीं की.

Advertisement
Featured Video Of The Day
UP के Pilibhit में हुई मुठभेड़ में तीन आतंकी ढेर, Gurdaspur थाने पर हाल में फेंका था बम | BREAKING
Topics mentioned in this article