महानगर मुंबई में रहने वालों को हर दिन शोर-शराबा और ध्वनि प्रदूषण को सहने के लिए अटूट सहनशीलता की जरूरत होती है. ऑटोरिक्शा के इंजनों की लगातार आवाज, ट्रैफिक की आवाज, गाड़ियों को लगातार बजते हॉर्न. ऑफिस टावर्स, अपार्टमेंट इमारतों और एक नई मेट्रो लाइन के निर्माणकार्य से होने वाली जोरदार आवाज... ये सब मुंबईकरों के लिए रोज की बात है. इन सब से शायद आम लोगों को अपनी व्यस्त जिंदगी में कुछ खास फर्क न पड़ता हो, लेकिन एक महिला को फर्क जरूर पड़ता है और उन्हें सालों से फर्क पड़ रहा है. महिला का नाम है सुमैरा अब्दुलाली..
जब पर्यावरणविद् सुमैरा अब्दुलाली ने दो दशक पहले भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई में ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ अभियान शुरू किया, तो दोस्तों, परिचितों और यहां तक कि उनके वकीलों ने भी जोर देकर कहा कि यह एक बेवकूफी भरा काम है. सुमैरा कहती हैं, "लोगों ने मुझे बताया कि यह कोशिश करना भी हास्यास्पद है, क्योंकि भारतीयों को शोर पसंद है."
ब्लूमबर्ग से बातचीत में सुमैरा कहती हैं, '2008 में जब पहली बार हमने ‘नो हॉर्न प्लीज' की मुहिम शुरू की, तो मुंबई पुलिस ने एक कार्यक्रम किया था. इस दौरान मेरी मुलाकात अमिताभ बच्चन से हुई. उन्होंने मेरे काम की प्रशंसा भी की. इसी तरह 2010 में इस ठाणे में आयोजित कार्यक्रम में अभिनेता जावेद जाफरी, सचिन खेडेकर और श्रेयस तलपदे से मुलाकात हुई. उन्होंने बाद में मुझे कुछ मैसेज भी भेजे, जिसका वीडियो हमने बनाया है.'
सुमैरा कहती हैं, 'पर्यावरण और प्रदूषण के क्षेत्र में काम करना मैंने 1998 में शुरू किया था. मगर आगे चलकर मुझे लगा कि यदि कुछ ठोस करना है, तो एक संस्था का होना बहुत जरूरी है. तो मैंने 2006 में ‘आवाज फाउंडेशन' रजिस्टर्ड कराया. आवाज फाउंडेशन के सिद्धांत और काम करने का तराका दूसरे एनजीओ से अलग है. हम किसी से फंड नहीं मांगते और न ही में विदेश से कोई चंदा मिलता है. हम अपने वॉलेंटियर के बल पर ही काम करते हैं.'
सुमैरा अब्दुल ने बताया कि पिछले कुछ सालों में दीपावली के मौके पर ध्वनि प्रदूषण के स्तर में लगातार थोड़ी-थोड़ी कमी आ रही है. सुमैरा ने कहा कि दीपावली, गणेशोत्सव और ईद जैसे त्यौहारों पर महानगर में ध्वनिप्रदूषण का स्तर लगातार घट रहा है. इसके लिए आमलोगों के साथ-साथ मुंबई पुलिस और महाराष्ट्र सरकार का भी धन्यवाद. उम्मीद है आने वाले सालों में हालात और बेहतर होंगे.
उन्होंने आगे कहा, 'पर्यावरण और ध्वनि प्रदूषण क्षेत्र में मेरे कार्यों का बहुत असर पड़ा है. पॉलिसी में बदलाव हुए हैं. 2012 में सेंड मायनिंग पर हमने संयुक्त राष्ट्र में ‘आवाज फाउंडेशन' की ओर से एक डॉक्यूमेंट जारी किया, जबकि 2002 में इस बारे में लोगों को पता ही नहीं था कि यह है क्या और क्यों नहीं करनी चाहिए. आज पूरी दुनिया इस संबंध में जागरूक है. अभी एक महीने पहले भी जब यूएन के प्रमुख मुंबई आए थे, तो हमने उन्हें निवेदन सौंपा कि सेंड माइनिंग के इंटरनेशनल ट्रेड के एजेंडे को शामिल किया जाए, ताकि इससे होने वाले पर्यावरण के नुकसान को रोका जा सके.'