मोदी सरनेम केस : राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में दायर किया जवाबी हलफनामा, 4 अगस्त को होगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट से राहुल गांधी ने गुजरात हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने की मांग की है. राहुल गांधी ने 2019 मानहानि मामले में दोषसिद्धि पर रोक लगाने की अपनी याचिका पर पूर्णेश मोदी के जवाब पर हलफनामा दाखिल किया है.

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नई दिल्ली:

मोदी सरनेम केस की सुप्रीम कोर्ट में 4 अगस्त को सुनवाई होगी. कांग्रेस नेता राहुल गांधी की तरफ से पूर्णेश मोदी के हलफनामा के जवाब में एक हलफनामा दायर किया गया है. हलफनामा में राहुल गांधी की तरफ से कहा गया है कि उन्हें अहंकारी कहने पर पूर्णेश मोदी की प्रतिक्रिया "निंदनीय" है.'अहंकारी' जैसे निंदनीय शब्दों का उपयोग केवल इसलिए किया गया है क्योंकि  उन्होंने माफी मांगने से इनकार कर दिया है.माफी मांगने के लिए मजबूर करने के लिए आरपी एक्ट के तहत आपराधिक प्रक्रिया और उसके परिणामों का उपयोग करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है.बिना किसी गलती के माफी मांगने के लिए मजबूर करने के लिए कानूनी प्रक्रिया का इस्तेमाल न्यायिक प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग है. इस न्यायालय द्वारा इसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए.

पूर्णेश मोदी की दलीलों के जवाब में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि वह पहले कभी दोषी करार नहीं दिए गए. यह एक स्थापित स्थिति है कि लंबित मामलों को आरोपी के खिलाफ आपराधिक पृष्ठभूमि के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है जब तक कि उसे किसी अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जाता है.अदालत के समक्ष उनकी सफलता की बहुत अच्छी संभावना है . एक निर्वाचित सांसद के रूप में इस अपराध को एक मामूली अपराध और इससे होने वाली अपूरणीय क्षति को देखते हुए यह एक 'असाधारण' मामला है.

सुप्रीम कोर्ट से राहुल गांधी ने गुजरात हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने की मांग की है. राहुल गांधी ने 2019 मानहानि मामले में दोषसिद्धि पर रोक लगाने की अपनी याचिका पर पूर्णेश मोदी के जवाब पर हलफनामा दाखिल किया है. राहुल गांधी ने मामले से जुडे याचिकाकर्ता पूर्णेश मोदी द्वारा राहुल गांधी को अहंकारी कहने पर उनके जवाब की निंदा की है.राहुल गांधी ने अपने हलफनामे मे कहा कि राहुल गांधी के लिए अहंकारी शब्द का इस्तेमाल सिर्फ इसलिए किया गया क्योकि उन्होने इस मामले मे माफी मांगने से इन्कार करते हुए मामले कोर्ट पर छोड़ दिया.

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राहुल गांधी ने अपने हलफनामे मे कहा है कि बिना किसी गलती के माफी मांगने के लिए किसी भी जन प्रतिनिधि को मजबूर नही किया जा सकता है.यह  जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत आपराधिक प्रक्रिया के साथ न्यायिक प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग जैसा है और सुप्रीम कोर्ट को इसे स्वीकार नहीं करना चाहिए. 

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