मराठा आरक्षण मामला: सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र सरकार की क्यूरेटिव याचिका पर विचार टला

CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बी आर गवई की बेंच ने अब इस मामले में 24 जनवरी को विचार करने का फैसला किया है.

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21अप्रैल 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को रद्द करने के फैसले पर पुनर्विचार से इनकार किया था.
नई दिल्ली:

मराठा आरक्षण को लेकर महाराष्ट्र सरकार की क्यूरेटिव याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल विचार टाल दिया है. अब इस याचिका पर 24 जनवरी 2024 को विचार किया जाएगा. इस मामले पर चार जजों की पीठ को 6 दिसंबर को चेंबर में विचार करना था.

24 जनवरी को विचार करने का फैसला किया
CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बी आर गवई की बेंच ने अब इस मामले में 24 जनवरी को विचार करने का फैसला किया है. 6 दिसंबर 2023 को याचिका पर विचार करने की नई तारीख तय की गई. हालांकि अब 25 दिसंबर को जस्टिस संजय किशन कौल रिटायर हो जाएंगे. उनकी जगह कोई ओर जज बेंच में शामिल होंगे.

आरक्षण रद्द करने का फैसला बरकरार रखा था
 21अप्रैल 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को रद्द करने के फैसले पर पुनर्विचार से इनकार किया था. 5 मई 2021 का आरक्षण रद्द करने का फैसला बरकरार रखा था. मामले में दाखिल पुनर्विचार याचिकाएं खारिज की गई थीं. पांच जजों के संविधान पीठ ने चेंबर में विचार कर फैसला सुनाया था. फैसले में कहा गया था कि रिकॉर्ड के चेहरे पर कोई त्रुटि नहीं मिली है, जिससे मामले पर फिर से विचार करने की जरूरत हो.

नियुक्तियों में छेड़छाड नहीं की जाएगी
2021 में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को दिए आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया था. यह आरक्षण आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर दिया गया था. उस वक्त कोर्ट ने कहा था-50 फीसदी आरक्षण सीमा तय करने वाले फैसले पर फिर से विचार की जरूरत नहीं है. मराठा आरक्षण इस 50 फीसदी सीमा का उल्लंघन करता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीजी मेडिकल पाठ्यक्रम में पहले किए गए दाखिले बने रहेंगे. पहले की सभी नियुक्तियों में भी छेड़छाड नहीं की जाएगी. इन पर फैसले का असर नहीं होगा.

SC के पांच जजों ने यह फैसला सुनाया था
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एस रवींद्र भट की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया था. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ है, जिसमें बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले को सही ठहराया था. हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.

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संविधान पीठ ने सुनवाई 15 मार्च को शुरू की थी
देश की शीर्ष अदालत के तीन जजों की बेंच ने सितंबर 2020 में आरक्षण पर रोक लगाते हुए इसे 5 जजों की बेंच को ट्रांसफर कर दिया था. संविधान पीठ ने मामले में सुनवाई 15 मार्च को शुरू की थी और 26 मार्च को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. इस मुद्दे पर लंबी सुनवाई में दायर उन हलफनामों पर भी गौर किया गया कि क्या 1992 के इंद्रा साहनी फैसले पर बड़ी पीठ की ओर से पुनर्विचार करने की जरूरत है.

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कई राज्यों में 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण दिया जा रहा
कोर्ट ने इस बात पर भी सुनवाई की थी कि क्या राज्य अपनी तरफ से किसी वर्ग को पिछड़ा घोषित करते हुए आरक्षण दे सकते हैं या संविधान के 102वें संशोधन के बाद यह अधिकार केंद्र को है?. सुनवाई के दौरान संवैधानिक बेंच ने सभी राज्यों को नोटिस जारी किया था. कई राज्यों में 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण दिया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट इसके पीछे राज्य सरकारों का तर्क जानना चाह रहा था. वहीं केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र का समर्थन करते हुए कहा था कि संविधान में हुए 102वें संशोधन से राज्य की विधायी शक्ति खत्म नहीं हो जाती हैं. संविधान में अनुच्छेद 342A जोड़ने से अपने यहां सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े तबके की पहचान की राज्य की शक्ति नहीं छिन गई है. दरअसल, मराठा आरक्षण विरोधी कुछ वकीलों ने यह दलील दी थी कि संविधान में अनुच्छेद 342A जुड़ने के बाद राज्य को यह अधिकार ही नहीं कि वह अपनी तरफ से किसी जाति को पिछड़ा घोषित कर आरक्षण दे दें.

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