"अपराध की कोई फुसफुसाहट भी नहीं..": एडिटर्स गिल्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहली नजर में FIR का अपराध नहीं दिखता है, जिस शिकायत पर FIR दर्ज हुई, उसमें अपराध की फुसफुसाहट भी नहीं है. आप बताइए कि इस केस में IPC 153 (आपसी सद्भाव बिगाड़ने) का मामला कैसे बनता है?

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एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहली नजर में FIR का अपराध नहीं दिखता है.

नई दिल्ली: एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के चार सदस्यों के खिलाफ पुलिस ने मणिपुर हिंसा के दौरान दो समुदायों में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने को लेकर केस दर्ज किया था, जिस पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के सदस्यों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. अब इन लोगों को कोर्ट से राहत मिली है. साथ ही कोर्ट ने सभी की गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा बढ़ा दी है.

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहली नजर में FIR का अपराध नहीं दिखता है, जिस शिकायत पर FIR दर्ज हुई, उसमें अपराध की फुसफुसाहट भी नहीं है. आप बताइए कि इस केस में IPC 153 ( आपसी सद्भाव बिगाड़ने) का मामला कैसे बनता है? सेना ने EGI को बुलाया था. वो गलत हो सकते हैं, सही हो सकते हैं. क्या सिर्फ कोई रिपोर्ट देने से कैसे अपराध बनता है?

सुप्रीम कोर्ट ने शिकायकर्ता से पूछा, क्यों ना EGI के खिलाफ दाखिल FIR रद्द कर दी जाए. सुप्रीम कोर्ट ने दो हफ्ते में इस मामले में जवाब मांगा है. तब तक केस पर कार्रवाई पर रोक रहेगी. साथ ही पत्रकारों को अंतरिम राहत बरकरार रहेगी. इससे पहले अदालत ने 15 सिंतबर तक गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वो FIR रद्द नहीं करेंगे. बस ये तय करेंगे कि ये मामला मणिपुर हाईकोर्ट भेजें या दिल्ली हाईकोर्ट.

वहीं, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा कि उनकी टीम स्वैच्छिक तौर पर नहीं गई थी, बल्कि भारतीय सेना के बुलावे पर गई थी. सेना के निमंत्रण पर स्थानीय मीडिया द्वारा पक्षपातपूर्ण और अनैतिक रिपोर्टिंग की जांच के लिए पत्रकार वहां पहुंचे थे. ये केस FIR का नहीं है.

मणिपुर सरकार की ओर से SG तुषार मेहता ने कहा कि यह याचिका गलत है. मणिपुर हाईकोर्ट कार्य कर रहा है. याचिकाकर्ता हाईकोर्ट जा सकते हैं. अभियोजन आदि पर हाईकोर्ट के समक्ष बहस क्यों की जा सकती है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर को एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के चार सदस्यों को गिरफ्तारी से संरक्षण दिया था. साथ ही मणिपुर सरकार को नोटिस जारी किया था. 

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने पूर्वोत्तर राज्य में जातीय हिंसा के संबंध में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसपर मणिपुर पुलिस द्वारा FIR दर्ज की गई थी. CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने EGI के सदस्यों द्वारा दायर रिट याचिका पर मणिपुर पुलिस को नोटिस जारी किया था.

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एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह सेना के निमंत्रण पर फैक्ट फाइंडिंग मिशन पर गया था. EGI  के लिए सिब्बल ने कहा, "सेना स्थानीय मीडिया द्वारा की जा रही रिपोर्टिंग की गुणवत्ता पर पूरा अध्ययन चाहती थी. दरअसल, एडिटर्स गिल्ड ने दावा किया था कि मणिपुर की जातीय हिंसा पर पक्षपातपूर्ण मीडिया रिपोर्टिंग हुई है. एडिटर्स गिल्ड के जिन सदस्यों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है, उनमें एडिटर्स गिल्ड की अध्यक्ष सीमा मुस्तफा और तीन सदस्य सीमा गुहा, भारत भूषण और संजय कपूर का नाम शामिल है.

सीमा गुहा, भारत भूषण और संजय कपूर ने बीते हफ्ते मणिपुर का दौरा कर यहां हुई मीडिया रिपोर्टिंग का अध्ययन किया था. एडिटर्स गिल्ड के सदस्यों की रिपोर्ट को मणिपुर सरकार ने फर्जी और प्रायोजित बताया और FIR दर्ज कर ली. FIR में बताया गया है कि रिपोर्ट में गलत तथ्य बताए गए हैं. जुलाई में भी मणिपुर सरकार ने तीन महिलाओं के खिलाफ FIR दर्ज की थी. इन महिलाओं की फैक्ट फाइंडिंग टीम ने भी राज्य में जारी हिंसा को सरकार द्वारा प्रायोजित बताया था.

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