भीमा कोरेगांव हिंसा: गौतम नवलखा को 24 घंटे के अंदर हाउस अरेस्ट में भेजा जाए, SC का आदेश

एनआईए ने अपनी अर्जी में कहा है कि गौतम नवलखा के मेडिकल रिकॉर्ड पक्षपात वाले थे, क्योंकि वे एक ऐसे अस्पताल में तैयार किए गए थे, जहां नवलखा के रिश्तेदार एक प्रमुख डॉक्टर 43 साल से काम कर रहे हैं. वो रिपोर्ट तैयार करने में शामिल रहे हैं. एनआईए ने यह भी कहा है कि 10 नवंबर का आदेश इस दलील पर आधारित थी कि हाउस अरेस्ट का स्थान आवासीय प्रकृति का होगा.

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एनआईए ने मुख्य रूप से तीन आधारों पर नवलखा के हाउस अरेस्ट ऑर्डर को रद्द करने की मांग की है
नई दिल्ली:

महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव हिंसा (Bhima Koregaon Violence) मामले में आरोपी गौतम नवलखा (Gautam Navlakha) को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) आदेश दिया है कि ऑर्डर की कॉपी मिलने के 24 घंटे के अंदर गौतम नवलखा को हाउस अरेस्ट ( House Arrest) पर भेजा जाए.

जस्टिस के एम जोसेफ और जस्टिस ह्रषिकेश रॉय की बेंच ने इस मामले में सुनवाई की. दरअसल, बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2018 के एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार किए गए प्रोफेसर आनंद तेलतुंबडे को जमानत दे दी है. हालांकि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के वकील संदेश पाटिल की अपील पर कोर्ट ने आदेश पर एक सप्ताह के लिए रोक लगा दी थी और सुप्रीम कोर्ट में आदेश रद्द करने के लिए याचिका लगाई थी. 

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा, 'हम आदेश वापस नहीं लेंगे, लेकिन दोनों पक्षों को सुनने के बाद हम कुछ और एहतियाती उपाय करने को कह रहे हैं. दूसरे दरवाजे और खिड़की की ग्रिल को सील कर दिया जाए. उसकी चाभी अपने पास रखें. ग्रिल के बगल में बिस्तर न लगाया जाए. सीसीटीवी कैमरा भी दक्षिणी द्वार पर लगाया जाए.'
 

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एनआईए की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने गुजारिश की है कि इस केस में सुप्रीम कोर्ट अपने हाउस अरेस्ट के आदेश को वापस ले. इस केस में ऐसे तथ्य आए हैं जो छिपाए गए हैं. ये हमारी ड्यूटी है कि सारे मामले को अदालत के सामने रखे. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया, 'तथ्य काफी चौंकाने वाले हैं. सब मान रहे थे कि नवलखा का स्वास्थ्य खराब है. उन्होंने कई अस्पतालों में जाने से इनकार कर दिया था. इसके बाद वो जसलोक अस्पताल गए, जहां उन्होंने एक वरिष्ठ डॉक्टर से अपने रिश्ते छिपाए.'

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इसपर जस्टिस जोसेफ ने कहा, 'ये सब दलीलें पहले हो चुकी हैं. ये मामला ऐसा नहीं है कि आपको दलीलें देने का मौका नहीं मिला. पूरी तरह सुनवाई हुई थी. अब क्या पुनर्विचार चाहते हैं?' इसपर एसजी मेहता ने कहा, 'भारी दिल से कह रहे हैं. जेलों में उनके जैसे और भी कैदी हैं. उनको इस तरह हाउस अरेस्ट में नहीं रखा जा सकता. मेडिकल रिपोर्ट देने वाले डॉक्टर नवलखा के रिश्तेदार हैं. इसके अलावा जो भवन नवलखा की नजरबंदी के लिए तय किया गया है वो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का दफ्तर है.'

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जस्टिस जोसफ ने कहा कि तो क्या हुआ? भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी देश की मान्यताप्राप्त पार्टी है. इस पर एसजी तुषार मेहता ने कहा- 'क्या आपकी अंतरात्मा इसे सही मानती है.' जस्टिस जोसफ ने कहा कि हां मुझे इसमें कोई गड़बड़ नहीं दिखती. तुषार मेहता ने कहा कि हमें इसमें गड़बड़ लगी. इसलिए हमने कोर्ट के सामने ये तथ्य रखे हैं.

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वहीं, नवलखा की ओर से वकील नित्या रामकृष्णन ने कहा कि लाइब्रेरी किसी पार्टी की नहीं, बल्कि ट्रस्ट की है. इमारत भी ट्रस्ट की है. यहां किसी बाहरी आदमी का आना जाना नहीं है. सीपीआई मान्यता प्राप्त पार्टी है और माओवाद का हमेशा खंडन करती रही है.सीपीआई माओवादियों के खिलाफ है.

एनआईए ने मुख्य रूप से तीन आधारों पर नवलखा के हाउस अरेस्ट ऑर्डर को रद्द करने की मांग की. एनआईए का कहना था कि तथ्यों को जानबूझकर छिपाया गया है. कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के लिए जानबूझकर काम किया गया है. साथ ही एक्टिविस्ट की मेडिकल रिपोर्ट के संबंध में पक्षपात हुआ, जिसके आधार पर कोर्ट ने हाउस अरेस्ट के आदेश दिए थे. 

एनआईए ने अपनी अर्जी में कहा है कि गौतम नवलखा के मेडिकल रिकॉर्ड पक्षपात वाले थे, क्योंकि वे एक ऐसे अस्पताल में तैयार किए गए थे, जहां नवलखा के रिश्तेदार एक प्रमुख डॉक्टर 43 साल से काम कर रहे हैं. वो रिपोर्ट तैयार करने में शामिल रहे हैं. एनआईए ने यह भी कहा है  कि 10 नवंबर का आदेश इस दलील पर आधारित थी कि हाउस अरेस्ट का स्थान आवासीय प्रकृति का होगा. 

एनआईए के मुताबिक, हालांकि नवलखा द्वारा पसंदीदा स्थान एक राजनीतिक दल के नियंत्रण में एक सार्वजनिक लाइब्रेरी है. इसमें ग्राउंड फ्लोर, पहली मंजिल पर हॉल, एक खुली छत और मुख्य द्वार से तीन प्रवेश द्वार हैं. यह इमारत कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव के नाम पर है, जो इसका प्रबंधन करते हैं. 

एनआईए ने ये भी तर्क दिया कि यह समझ से बाहर है कि माओवादी गतिविधियों के आरोपी व्यक्ति को एक ऐसी इमारत में कैसे नजरबंद किया जा सकता है, जो राजनीतिक दल यानी कम्युनिस्ट पार्टी के नाम से रजिस्टर्ड एक पब्लिक लाइब्रेरी है. नवलखा ने भी अदालत के समक्ष एक अर्जी दायर की है, जिसमें कहा गया था कि अधिकारी 10 नवंबर के आदेश का पालन नहीं कर रहे हैं. 

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